Sunday, 28 February 2021

एक ग़ज़ल-यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का

 

चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल-

यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का


अब कोई पत्थर नहीं दिखता पुराना मील का

जब से जारी हो गया नक्शा नई तहसील का


राम की इच्छा हो तो पानी पे पत्थर तैरते

शाप था वरदान कैसे हो गया नल-नील का


वक्त पर फिर से युधिष्टिर आ गए अच्छा हुआ

यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का


इन अँधेरों की भयावहता क्षणिक है मत डरो

नष्ट कर देगा इन्हें आलोक इक कंदील का


मेरी उसके साथ में तस्वीर चर्चाओं में है

शुक्रिया उसका कहूँ या कैमरे की रील का


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


6 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. सच है यदि समय अनुकूल हो तो कोई भी सरल बन पड़ता है

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  3. वाह!!!
    लाजवाब गजल
    वक्त पर फिर से युधिष्टिर आ गए अच्छा हुआ

    यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का
    एक से बढ़कर एक शेर।

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  4. वाह , बहुत कुछ समेट लिया इस ग़ज़ल में ।।

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