चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
आईना हूँ सच कह दूँ तो नाराज़ न होना
ऐ हुस्न की मलिका कभी 'मुमताज़ 'न होना
दुनिया का तमाशा हो तो ये ताज़ न होना
सब अपनी मोहब्बत का फ़साना लिए बैठे
अब ऐसे फ़सानों का तू हमराज़ न होना
अब राजा प्रतिज्ञा में न वनवास कभी दे
अब मेरी अयोध्या कभी बेताज न होना
ये सारे कसीदागो क़सीदा ही पढ़ेंगे
आईना हूँ सच कह दूँ तो नाराज़ न होना
आकाश में उड़कर के इसी नीड़ में आना
जो खत्म न हो ऐसी भी परवाज़ न होना
कुछ कहना है कुछ सुनना भी बरसों पे मिले हैं
अब लाज-शरम, चुप्पी का कोलाज न होना
तुलसी, ये नए फूल सहन में ही लगा दो
पूजा के लिए माली का मोहताज़ न होना
जयकृष्ण राय तुषार
ताजमहल -चित्र साभार गूगल |
ये सारे कसीदागो क़सीदा ही पढ़ेंगे
ReplyDeleteआईना हूँ सच कह दूँ तो नाराज़ न होना ।
बहुत खूब। सुंदर ग़ज़ल
हार्दिक आभार आपका |सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |सादर प्रणाम
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार और सादर अभिवादन
Deleteवाह!बहुत खूब!
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर जयकृष्ण राय तुषार जी...मन खुश हो गया पढ़ कर
ReplyDelete