Tuesday 22 July 2014

एक गीत -औरतें होंगी तभी तो यह सदी होगी

चित्र /पेंटिंग्स -गूगल से साभार 
मित्रों इस गीत में मुझे कुछ संशोधन करना पड़ा इसे और अच्छा बनाने की एक कोशिश है |क्षमा सहित 
एक गीत -
औरतें होंगी तभी तो यह सदी होगी 

औरतें होंगी 
तभी तो 
यह सदी होगी |
हिमशिखर 
होंगे तभी 
उजली नदी होगी |

ये गगन के 
मेघ जितना 
जल भरे होंगे ,
इस धरा के 
आवरण 
उतने हरे होंगे ,
जब कभी 
मरुथल हँसेगा 
त्रासदी होगी |

मौन सुर 
केवल रुदन के 
गीत गाते हैं ,
अब सड़क को 
हादसों के 
दृश्य भाते हैं ,
निर्वसन 
होती सदी 
यह द्रौपदी होगी |

कलमुंहे दिन 
बेटियों के लिए 
कब मंगल हुए ,
सभ्यता 
किस अर्थ की 
यदि ये शहर जंगल हुए ,
फूल की 
हर शाख 
काँटों से लदी होगी |

किसी 
सीता को 
अगर आंसू बहेगा ,
हमें भी 
इतिहास यह 
रावण कहेगा ,
घन तिमिर 
के शून्य में 
क्या कौमुदी होगी |


Sunday 20 July 2014

एक गीत -इस रक्तरंजित सुब्ह का मौसम बदलना

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -
इस रक्तरंजित सुबह का मौसम बदलना 

इस रक्त रंजित 
सुब्ह का 
मौसम बदलना |
या गगन में 
सूर्य कल 
फिर मत निकलना |

द्रौपदी 
हर शाख पर 
लटकी हुई है ,
दृष्टि फिर 
धृतराष्ट्र की 
भटकी हुई है ,
भीष्म का भी 
रुक गया 
लोहू उबलना |

यह रुदन की 
ऋतु  नहीं ,
यह गुनगुनाने की ,
तुम्हें 
आदत है 
खुशी का घर जलाने की ,
शाम को 
शाम -ए -अवध 
अब मत निकलना |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...