Thursday, 23 June 2016

एक गीत -मछली तो चारा खायेगी

चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -मछली तो चारा खायेगी 

कोई भी 
तालाब बदल दो 
मछली तो चारा खायेगी |
एक उबासी 
गंध हवा के 
नाम वसीयत कर जायेगी |

सत्ता का शतरंज /
बिसातों पर उजले -
काले मोहरे हैं ,
आप हमें 
अनभिज्ञ न समझें 
सबके सब परिचित चेहरे हैं ,
आप सभी 
छल -छद्म करेंगे 
जिससे की सत्ता आयेगी |

आप सदन 
कहते हैं जिसको 
वह लाक्षागृह से बदतर है ,
आज प्रजा की 
चिंता किसको 
राज सभा का दिल पत्थर है ,
राजगुरू को 
लाभ मिलेगा जिससे-
वही युक्ति भायेगी | 

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