Sunday 25 February 2024

एक गीत -जंगल कुछ दिन मौन रहेगा

चित्र साभार गूगल 



एक गीत -इस चिड़िया के उड़ जाने पर


इस चिड़िया के
उड़ जाने पर
जंगल कुछ दिन मौन रहेगा.
धूप -छाँह, बारिश
मौसम के
इतने किस्से कौन कहेगा.

दरपन -दरपन
चोंच मारती
ढके हुए परदे उघारकर,
सूर्योदय से
प्रमुदित होकर
हमें जगाती है पुकारकर,
धूल भरी आँधी में
टहनी टहनी
उड़कर कौन दहेगा.

इसी नदी में
हँसकर -धंसकर
हमने उसे नहाते देखा,
आँख मूँदकर
मंत्र बोलकर
घी का दिया जलाते देखा,
खुले हुए
जूड़े से गिरकर कब 
तक जल में फूल बहेगा.

हिरण भागते
मोर नाचते
वन का है चलचित्र सुहाना,
पथिकों से मत
मोह लगाना
जीवन यात्रा आना -जाना,
प्यार तुम्हारे
हिस्से में था
बिछुड़न प्यारे कौन सहेगा.

कवि गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 

Thursday 22 February 2024

एक होली गीत -रंग वो क्या जो छूट गया

चित्र साभार गूगल 


यह गीत 24 मार्च को अमर उजाला 
के मनोरंजन पृष्ठ पर प्रकाशित हो गया 



एक होली गीत -रंग वो क्या जो छूट गया


रंग वो क्या जो छूट गया
फिर क्या होली के माने जी.
असली रंग मिले वृंदावन
या गोकुल, बरसाने जी.

मन तो रंगे किशोरी जू से
लोकरंग से नश्वर काया,
श्याम रंग की चमक है असली
बाकी सब है उसकी माया,
यमुना में भी रंग उसी का
आओ चलें नहाने जी.

इत्र, ग़ुलाल, फूल टेसू के
निधि वन, गोकुल गलियों में
देव, सखी बनकर आते हैं
महारास, रंगरलियों में,
स्याम से मिलने चलीं गोपियाँ
सौ सौ नए बहाने जी.

कोई ब्रज रज, कोई लट्ठ मारती
कोई रंग, यमुना जल से,
कोई सम्मुख पिचकारी लेके
कोई रंग फेंके छल से,
सूरदास, हरिदास समझते
नन्द नंदन के माने जी.

कवि गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार
बरसाने की लट्ठमार होली चित्र साभार गूगल 


Wednesday 21 February 2024

एक गीत -हर पथ में पावन राग लिए

माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी 


एक गीत -बजता सुन्दर इकतारा है


शिव भक्त राम का सेवक है
वह संतों का रखवाला है.
दुनिया उसकी जय बोल रही
इस युग का मुरलीवाला है.

काशी, उज्जयिनी, महाकाल
सबकी आभा लौटाता है,
रघु कुल की प्राण प्रतिष्ठा से
भी उसका गहरा नाता है,
दुनिया का तम हर लेता है
सूरज की ऐसी ज्वाला है.

सम्मान सभी को देता है
सबके मस्तक का चंदन है,
भारत की सुप्त धमनियों में
वह लोहू का स्पंदन है,
षड़यंत्र न उसको तोड़ सके
ऐसे मनकों की माला है.

सबका साथ विकास सभी का
उसका पावन नारा है,
तूफ़ान कठिन कितना भी हो
वह मांझी कभी न हारा है,
संतुलन विश्व का साधे है
वह नीलगगन का तारा है.

जिसमें भारत की संस्कृति हो
उस देशगान को सुनना है,
भारत माता के मंदिर का
बस उसे पुजारी चुनना है,
हर पथ में पावन राग लिए
बजता सुन्दर इकतारा है.

कवि /गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


Monday 12 February 2024

एक ग़ज़ल -मौसम रातरानी हो गया

चित्र साभार गूगल 

स्मृतिशेष कथा लेखिका उषाकिरण खां 


इस ग़ज़ल के मतले का शेर कथा लेखिका उषाकिरण खां को समर्पित है

एक ग़ज़ल -मैंने दिल से कुछ कहा 

भाप में तब्दील इक दरिया का पानी हो गया
एक किस्सागो शहर का ख़ुद कहानी हो गया

खुशबुओं की शाल ओढ़े आ गया छत पर ये कौन 
चाँद निकला और मौसम रातरानी हो गया

इक खड़ाऊं रखके भी सारी अयोध्या थी ग़रीब
राम जब लौटे  नगर फिर राजधानी हो गया

राग, बंदिश, ताल, सुर, लय का पता कुछ भी न था 
मिल गयी महफ़िल तो गायक खानदानी हो गया

मन के सारे रंग भी फूलों से फागुन में खिले
बाग का मंज़र गुलाबी, पीला, धानी हो गया

मांगकर छल से भिखारी देवता भी बन गए
देने वाला कर्ण जैसा वीर दानी हो गया

इस सियासत को समझने का सलीका और है
मैंने दिल से कुछ कहा कुछ और मानी हो गया

कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


Saturday 10 February 2024

एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है


चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है 

जंगल पर कब्जा है लकड़ी चोरों का
ज़ुर्म अकेले कहाँ है आदमखोरों का

सावन में भी कहाँ घटाएँ निकली थीं
नृत्य मयूरी देखे कैसे मोरों का

वर्षो की साधना,नहीं आलाप मधुर
अब संगीत समागम केवल शोरों का 


जो उड़ान पर उसे गिराने की साजिश
दोष नहीं उड़ती पतंग की डोरों का

फल वाले  पेड़ों पर सारे पंछी हैं 
कोई देता साथ कहाँ कमजोरों का 


सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है
किस्सा पढ़कर देखो चाँद -चकोरों का

थैले में सामान फ्लैट में आता है
गया ज़माना क्विंटल वाले बोरों का

आज़ादी है संविधान की शोहरत है
दिल दिमाग़ पर कब्जा अब भी गोरों का 


कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 



Friday 9 February 2024

एक ग़ज़ल -तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिए साहब

संगम शाही स्नान चित्र साभार गूगल 


आज मौनी अमावस्या का पावन स्नान पर्व है सभी कल्पवासियों, स्नानर्थियों को शुभकामनायें.माँ गंगा, यमुना, सरस्वती सबका कल्याण करें.


एक पुरानी ग़ज़ल


फक़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिए साहब

तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिए साहब


यहाँ पर जो सुंकू है वो कहाँ है भव्य महलों में

ये संगम है यहाँ तम्बू लगाकर देखिए साहब


हथेली पर उतर आयेंगे ये संगम की लहरों से

मोहब्बत से परिंदो को बुलाकर देखिए साहब


ये गंगा फिर बहेगी तोड़कर मजबूत चट्टानें

जो कचरा आपने फेंका हटाकर देखिए साहब


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Saturday 3 February 2024

एक गीत -मन की खुशबू कहाँ पुरानी होती है

चित्र साभार गूगल 


एक गीत -मन की खुशबू कहाँ पुरानी होती है 

मन की

खुशबू कहाँ

पुरानी होती है.

चित्रों की

भी प्रेम -

कहानी होती है.


फूल नहीं

देखा

खुशबू पहचान गया,

भौँरा

जंगल, बस्ती

सबको जान गया,

फागुन की

हर शाम 

सुहानी होती है.


वंशी की

आवाज़

नदी की लहरों में,

अक्सर

चाँद रहा

मेघोँ के पहरों में,

आँखों की

भी बोली

बानी होती है.


पहली-

पहली भेंट 

युगों के किस्से हैं '

धूप -छाँह

सुख दुःख

जीवन के हिस्से हैं,

किस्मत वाली

बिटिया

रानी होती है.


कवि /गीतकार

 जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...