Thursday 30 April 2020

एक गीत -कौन है मुल्क बता जैसा वतन है मेरा

चित्र -साभार गूगल 

अपनी मातृभूमि भारत माता को समर्पित एक देश गीत -
एक गीत -कौन है मुल्क बता ? जैसा वतन है मेरा 

अनगिनत रंग के 
फूलों का चमन है मेरा |
कौन है मुल्क बता 
जैसा वतन है मेरा ?

आरती ,पूजा बिना 
जिसकी कोई शाम नहीं ,
पूरी दुनिया में कहीं 
कृष्ण नहीं ,राम नहीं ,
इसकी खुशबू नहीं कम 
हो ये जतन है मेरा |

बाइबिल ,ग्रन्थ है 
कुरआन है ,गीता जिसमें ,
राम की गाथा में 
हनुमान हैं ,सीता जिसमें ,
सारे रंगों को 
समेटे ये गगन है मेरा ।

इसमें हर रंग के 
मौसम हैं ,फ़साने कितने ,
जंगे आज़ादी ने 
गाये हैं तराने कितने ,
जब तलक साँस 
तिरंगे को नमन है मेरा |

सूर ,तुलसी ,नज़ीर 
मीरा है रसखान यहाँ ,
पढ़के सोते हैं सभी 
मीर का दीवान यहाँ ,
अहले महफ़िल के लिए 
शेरो सुखन है मेरा |


पर्वतों ,घाटियों 
नदियों की फ़िज़ाएँ हैं यहाँ,
मौसमी गीत 
परिंदों की सदाएँ हैं यहाँ,
तितलियों ,भौरों से 
आबाद चमन है मेरा |

साधुओं,संतों फ़रिश्तों 
का ये बुतखाना है ,
जो भी भटके हैं उन्हें 
प्यार से समझाना है , 
माँ के चरणों में 
हरेक गीत -भजन है मेरा |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 

Wednesday 22 April 2020

एक गीत -चलो प्रिये ! गठरी ले




चित्र -साभार गूगल 
यह गीत गाँव की तरफ शहर से पलायन करने वाले छोटे कलाकारों,कामगारों और मजदूरों को समर्पित है
एक गीत -चलो प्रिये ! गठरी ले फिर अपने गाँव चलें 

चलो प्रिये !
गठरी ले 
फिर अपने गाँव चलें |
कुछ 
घोड़ागाड़ी से 
कुछ नंगे पाँव चलें |

चिड़ियों के 
नये -नये 
जोड़े फिर आयेंगे ,
पेड़ पर 
बबूलों के 
घोंसले बनायेंगे ,
पत्थरदिल 
शहरों से 
पीपल की छाँव चलें |

गाय -बैल ,
पिंजरे के 
तोते को खोलेंगे ,
छोटों को 
स्नेह ,बड़ों 
को प्रणाम बोलेंगे ,
कठवत में 
धोयेंगे 
दादी के पाँव चलें |

रिश्ते जो 
टूट गये 
फिर उनकों जोड़ेंगे ,
ठनक गये 
खेतों की 
मिटटी को फोड़ेंगे ,
घर के 
मुंडेरों पर सुनें 
काँव -काँव चलें |

आछी के 
फूल जहाँ 
मेहँदी के पात हरे ,
हँसती है 
भोर-साँझ
माँग में सिन्दूर भरे ,
आम और 
महुआ के 
फूलों के ठाँव चलें |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 


चित्र -साभार गूगल 

Monday 20 April 2020

एक गीत -जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़

पवित्र नर्मदा नदी -चित्र साभार गूगल 

एक गीत -
जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़ 

जंगल में 
हिरनों की चीखें 
सुनते कहाँ पहाड़ |

विन्ध्य ,सतपुड़ा 
मौन नर्मदा 
किससे कहे निमाड़ |

झरने लगे 
ज़हर फूलों से 
मौसम सोया है ,
नदियों के 
समीप ही 
जलकर जंगल रोया है ,

संकट में 
अपने ही घर के 
खुलते नहीं किवाड़ |

शहर न जाना 
छिपकर बैठे 
कितने आदमखोर ,
साँपों से 
गठबंधन करके 
नाच रहे कुछ मोर ,

घर में भी 
महफूज नहीं हम 
कौन लगाये बाड़ |

झरनों की 
जलती लहरें हैं 
लावा फूटा है ,
समरसता 
तक जाने वाला 
हर पुल टूटा है ,

संध्याएँ 
सहमी ,विक्षिप्त दिन 
सुबहें लगें उजाड़ |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 

Sunday 5 April 2020

एक गीत -एक दिए की लौ में होगी हँसकर सारी बात

माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी
यशस्वी प्रधानमन्त्री ,भारत सरकार 




विशेष -आज मेरा यह गीत माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी के दीप प्रज्ज्वलन के आह्वान को समर्पित है |यह गीत उन योद्धाओं को भी समर्पित है जो प्रशासन,पुलिस,चिकित्सा,या किसी भी रूप में  इस जंग में शामिल हैं |यह कविता उन महान दानवीरों को भी समर्पित है जिन्होंने दिल खोलकर सरकार की मदद किया। आज रात नौ बजे नौ  मिनट मोदी जी के साथ दिए रहे हाथ |सादर प्रणाम सहित 


चित्र-साभार गूगल

एक गीत -एक दिए की लौ में होगी हँसकर सारी बात 

एक दिए की 
लौ में होगी 
हँसकर सारी बात |
हम जीतेंगे 
और मिलेगी 
कोरोना को मात |

जन -जन बाती 
बनें देश की 
मन में रहे हुलास ,
जम्मू ,केरल ,
पटना ,काशी 
या प्रयाग ,देवास ,

गाँव ,शहर 
के संग खड़े हों 
वन में कोल ,किरात |

खुली खिड़कियों 
से देखेंगे 
तारों भरा गगन ,
मन के जोगी
आज लगाना 
माथे पर चन्दन ,

झीने घूँघट 
में ही आना 
आज चाँदनी रात |

साथ भागवत 
लाना लेकिन 
सुनना मेरे गीत ,
पंचम दा सा 
देना मेरे 
गीतों को संगीत ,

यादगार हो 
सभी कुँवारे 
सपनों की बारात |

इन्द्रधनुष हो 
नये क्षितिज पर 
सभी दिशाओं में ,
जीवन का 
हर मन्त्र मिलेगा 
वेद ऋचाओं में ,

ऋतुएँ जब भी 
लगें उबासी 
होना तुम परिजात |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 


चित्र -साभार गूगल 

Wednesday 1 April 2020

एक गीत -मेरे इन गीतों में रंग नहीं मेरा है



कृष्ण भक्त मीराबाई -चित्र -साभार गूगल 



एक गीत -
मेरे इन गीतों में रंग नहीं मेरा है 

मेरे इन गीतों में 
रंग नहीं मेरा है |
मुझसे लिखवाता जो 
कौन वह चितेरा है ?

फूलों से गन्ध मिली 
मन लिए हवाओं से ,
सारा  श्रृंगार मिला 
रूपसी कथाओं से 
सुबहों का उजियारा 
रात का अँधेरा है |

गीत मैं चुराता हूँ 
धूप कभी बादल से ,
अधरों की मधुर हँसी 
नयनों के काजल से ,
भौरों सा मन अपना 
फूल पर बसेरा है |

जीवन का सुख दुःख 
ही गीत है रुबाई है ,
अनुभव के पृष्ठों पर 
अश्रु रोशनाई है ,
चित्र सब हमारे हैं 
रंग रूप तेरा है |

जब तक मन वृन्दावन 
बाँसुरी बजाता है ,
मीराबाई गाती 
सूरदास गाता है ,
निर्गुण मन के पथ पर 
जोगी का फेरा है |

जयकृष्ण राय तुषार 




चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...