चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
उड़ भी सकता हूँ मैं पानी पे भी चल सकता हूँ
सिद्ध हूँ ख़्वाब हक़ीकत में बदल सकता हूँ
कुछ भी मेरा हैं कहाँ घर नहीं असबाब नहीं
जब भी वो कह दे मैं घर छोड़ के चल सकता हूँ
पानियों पर मुझे मन्दिर में या घर में रख दो
मैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ
शौक मेरा था कहाँ पाँव में चुभता हूँ मगर
एक काँटा हूँ कहाँ फूल सा खिल सकता हूँ
मैं भी सूरज हूँ मगर कृष्ण के द्वापर वाला
दिन के रहते हुए भी शाम सा ढल सकता हूँ
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
उम्दा ग़जल।
ReplyDeleteअच्छे अशआर।
हार्दिक आभार आपका सर
Deleteपानियों पर मुझे मन्दिर में या घर में रख दो
ReplyDeleteमैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ ।
वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
आपका हृदय से आभार
Deleteआपका हार्दिक आभार।सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
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