Sunday 29 December 2019

एक गीत - नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ -


चित्र -साभार गूगल 


एक गीत नववर्ष -बाग़ को चन्दन करे 

धुन्ध को 
फिर से पराजित 
सूर्य का स्यन्दन करे |
अब अयोध्या 
और सरयू 
राम का वन्दन करे |

वर्ष नूतन 
आ रहा तो 
आचरण भी नव्य हो ,
देश के 
उत्थान का 
वातावरण भी भव्य हो ,
बेटियों को 
हर पिता दे 
मान -अभिनन्दन करे |

संस्कारित हो 
नई पीढ़ी 
सुशासन में पले ,
राह में सबकी 
अकम्पित 
ज्योति दीपक की जले ,
एक वासंती 
परी हर 
बाग़ को चन्दन करे |

बाँसुरी के 
होंठ 
वन्देमातरम का गीत हो ,
राष्ट्र का 
वैभव बढ़े दुश्मन ,
हमारा  मीत हो ,
हर असैनिक 
और सैनिक 
राष्ट्र का वन्दन करे |

माघ -मेला 
और संगम 
संत -जन का आगमन हो ,
विश्व मंगल 
यज्ञ -आहुति 
और सबका पुण्य -मन हो ,
शुभ्र गंगा 
की लहर में 
विहग स्पन्दन करे |

चित्र -साभार गूगल 

Tuesday 24 December 2019

एक गीत -राष्ट्रधर्म से बड़ा नहीं कुछ



चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -राष्ट्रधर्म से बड़ा नहीं कुछ 

राष्ट्रधर्म से 
बड़ा नहीं कुछ 
मत बेचो ईमान को |

जाति -धर्म से 
उपर उठकर 
बदलो हिन्दुस्तान को |

गंगा की 
अमृत धारा में 
विष का अर्क न घोलो ,
सिंह गर्जना 
करके भारत-
माता  की जय बोलो ,

तोड़ न 
पाये सारी दुनिया 
भारत के अभिमान को |

दुश्मन के 
नापाक इरादे 
खतरनाक हैं संभलो ,
जयचंदों 
के षड्यन्त्रों को 
"पृथ्वी " बनकर कुचलो ,

कभी न पहुंचे 
ठेस तिरंगे -
जन गण के सम्मान को |
चित्र -साभार गूगल 



Sunday 22 December 2019

एक गीत -राम- कृष्ण -गंगा की धरती भारत ! इसे प्रणाम करो




एक गीत -राम -कृष्ण -गंगा की धरती भारत !
इसे प्रणाम करो 

राम-कृष्ण 
गंगा की धरती भारत !
इसे प्रणाम करो |
जिस मिटटी में 
जन्म लिए 
यह जीवन उसके नाम करो |

हमें प्रज्ज्वलित 
करना है फिर 
बुझती हुई मशालों को ,
दन्तहीन 
करना होगा 
अब सारे विषधर व्यालों को ,
इसे द्वारिका पुरी 
बना दो 
या सरयू का धाम करो |

खतरे में है 
देश हमारा 
पढ़े -लिखे गद्दारों से ,
षड्यन्त्रों की 
बू आती है 
मजहब की दीवारों से ,
देश विरोधी 
गतिविधियों से 
इसको मत बदनाम करो |

भारत सबका 
आश्रयदाता 
सबसे साथ निभाता है ,
एक साथ सूफ़ी 
गुरुवाणी 
कीर्तन मौसम गाता है ,
संविधान का 
आदर करना 
सीखो मत संग्राम करो |

सभी चित्र -साभार गूगल 

Saturday 7 December 2019

एक गीत -स्वर्णमृग की लालसा


चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -स्वर्णमृग की लालसा 

स्वर्ण मृग की 
लालसा 
मत पालना हे राम !
दोष 
मढ़ना अब नहीं 
यह जानकी के नाम |

आज भी 
मारीच ,रावण 
घूमते वन -वन ,
पंचवटियों 
में लगाये 
माथ पर चन्दन ,
सभ्यता 
को नष्ट करना 
रहा इनका काम |

लक्ष्मण रेखा 
विफल 
सौमित्र मत जाना ,
शत्रु का 
तो काम है 
हर तरफ़ उलझाना ,
चूक मत करना 
सुबह हो ,
दिवस हो या शाम |

Friday 6 December 2019

एक गीत -कैक्टस का युग



चित्र -साभार -गूगल 

एक गीत - कैक्टस का युग 

कैक्टस का
युग कहाँ 
अब बात शतदल की ?
हो गयी 
कैसे विषैली 
हवा जंगल की |

फेफड़ों में
दर्द भरकर 
डूबता सूरज ,
हो गया 
वातावरण का 
रंग कुछ असहज ,
अब नहीं 
लगती सुरीली 
थाप मादल की |

भैंस के 
आगे बजाते 
सभी अपनी बीन ,
आज के 
चाणक्य ,न्यूटन 
और आइन्स्टीन ,
कोयले की 
साख बढ़ती 
घटी काजल की |

रुग्ण सारी 
टहनियों के 
पात मुरझाये ,
इस तुषारापात में
चिड़िया 
कहाँ गाये ,
मत बनो 
चातक बुझाओ 
प्यास बादल की |

भोर का 
कलरव 
लपेटे धुन्ध सोता है ,
एक लोकल 
ट्रेन जैसा 
दिवस होता है ,
किसे 
चिन्ता है 
हमारे कुशल -मंगल की |

सभी चित्र साभार गूगल 

Thursday 28 November 2019

एक ताजा गीत-नदी में जल नहीं है


एक गीत-नदी में जल नहीं है

धुन्ध में आकाश,
पीले वन,
नदी में जल नहीं है ।
इस सदी में
सभ्यता के साथ
क्या यह छल नहीं है ?

गीत-लोरी
कहकहे
दालान के गुम हो गये,
ये वनैले
फूल-तितली,
भ्रमर कैसे खो गये,
यन्त्रवत
होना किसी
संवेदना का हल नहीं है ।

कहाँ तुलसी
और कबिरा का
पढ़े यह मंत्र काशी,
लहरतारा
और अस्सी
मुँह दबाये पान बासी,
यहाँ
संगम है मगर
जलधार में कल-कल नहीं है ।

कला-संस्कृति
गीत-कविता
इस समय के हाशिये हैं,
आपसी
सम्वाद-निजता
लिख रहे दुभाषिये हैं,
हो गए
अनुवाद हम पर
कहीं कुछ हलचल नहीं है ।

सभी चित्र साभार गूगल


Wednesday 23 October 2019

एक गीत-बापू ! रहे हिमालय


एक गीत -बापू ! रहे हिमालय
बापू रहे
हिमालय ,उनका
दर्शन गोमुख धारा है ।
यह जलती
मशाल जैसा है
जहाँ-जहाँ अँधियारा है ।

रंगभेद के
प्रबल विरोधी
गिरमिटिया कहलाते थे,
चरखा-खादी
लिए साथ में
रघुपति राघव गाते थे,
सत्य अहिंसा
मन्त्र उन्ही का
मानवता का नारा है ।

छुआछूत
अभिशाप बताते
रहे स्वदेशी को अपनाते,
हिन्दू-मुस्लिम
सिक्ख-ईसाई
सादर सबको गले लगाते,
आज़ादी के
अनगिन तारों में
गाँधी ध्रुवतारा है ।

लड़े गुलामी
और दासता की
अभेद्य प्राचीरों से,
एक लुकाठी
लड़ी हजारों
बन्दूकों-शमशीरों से,
चम्पारण
दांडी का नायक
विजयी था,कब हारा है?

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

Wednesday 14 August 2019

एक देशगान-आज़ादी का पर्व बड़ा है


एक देशगान-आज़ादी का पर्व बड़ा है

आज़ादी का पर्व बड़ा है
मज़हब के त्योहारों से ।
आसमान को भर दो
अपनी खुशियों के गुब्बारों से ।

मातृभूमि के लिए मरा जो
वह सच्चा बलिदानी है,
जो दुश्मन से हाथ मिलाए
खून नहीं वह पानी है,
भारत माँ से माफ़ी माँगें
कह दो अब ग़द्दारों से ।

अनगिन फूलों का उपवन यह
यहाँ किसी से बैर नहीं,
जो सरहद पर आँख दिखाए
समझो उसकी खैर नहीं,
काँप गया यूनान,सिकन्दर
पोरस की तलवारों से ।

फिर बिस्मिल,आज़ाद
भगत सिंह बन करके दिखलाना है,
वन्देमातरम, वन्देमातरम
वन्देमातरम गाना है,
फहरायेंगे वहाँ तिरंगा
कह दो चाँद सितारों से ।
चित्र-साभार गूगल


एक गीत-खिला-खिला केसर का एक फूल लाना

चित्र-गूगल से साभार

एक गीत-खिला-खिला केसर का एक फूल लाना

खिला-खिला
केसर का
एक फूल लाना ।
ओ माली !
ज़न्नत को
नज़र से बचाना ।

शतदल की
गंध उठे
मीठी डल झील से,
पदमा सचदेव
लिखें
कविता तफ़सील से,
बंजारे
घाटी के
बाँसुरी बजाना ।

हाथ में
तिरंगा ले
नीलगगन उड़ना,
आतंकी
आँधी से
ले त्रिशूल लड़ना,
बर्फ़ानी बाबा
हर
आग से बचाना ।

ख़त्म हो
कुहासा अब
घाटी में धूप खिले,
मसजिद में
हो अज़ान
मन्दिर में दीप जले,
गुरद्वारे
जाकर
गुरुग्रन्थ को सजाना ।

चित्र-साभार गूगल


Sunday 11 August 2019

एक गीत -आज़ादी का अर्थ नहीं है



विश्व नेता -माननीय मोदी जी 

कश्मीर  पर भारत सरकार द्वारा लिया गया निर्णय बहुत ही सराहनीय है, लेकिन विपक्ष के कुछ सांसद अपने ही देश के ख़िलाफ़ बयान देकर राष्ट्र की अस्मिता से खिलवाड़ ही नहीं सही मायने में राष्ट्रद्रोह कर रहे हैं । सरकार के साहसिक निर्णय के साथ पूरा देश है ।
एक गीत -आज़ादी का अर्थ नहीं है --
भारत नहीं डरा धमकी से
नहीं डरा हथियारों से ।
वक्त सही है निपटेगा अब
देश, सभी ग़द्दारों से ।

जिसे तिरंगे से नफ़रत हो
देश छोड़कर जाये ,
आज़ादी का अर्थ नहीं
दुश्मन से हाथ मिलाये,
मुक्त हुई डल झील की
कश्ती अब क़ातिल पतवारों से ।

जयचन्दों के पुरखों की
यह भारत अब जागीर नहीं,
सरहद पर ब्रह्मोस खड़ा है
लकड़ी की शमशीर नहीं,
आतंकी साम्रज्य मिटेंगे
अभिनन्दन के वारों से ।

संसद में भी कैसे-कैसे
चेहरे चुनकर आते हैं,
रावलपिंडी और करांची
की प्रशस्ति बस गाते हैं,
इनको मिलती है ख़ुराक
कुछ टी0वी0 कुछ अख़बारों से
जय हिंद जय भारत

चित्र -गूगल से साभार 

Friday 9 August 2019

एक गीत -अब बारूदी गन्ध न महके

चित्र -गूगल से साभार 



एक गीत -अब बारूदी गन्ध न महके 

अब बारूदी 
गन्ध न महके 
खुलकर हँसे चिनार |
हवा डोगरी 
में लिख जाये 
इलू -इलू या प्यार |

जलपरियाँ 
लहरों से खेलें 
गयीं जो कोसों-मील ,
फिर कल्हण 
की राजतारंगिणी 
गाये यह  डल झील ,
नर्म उँगलियाँ 
छेड़ें हर दिन
संतूरों के तार |

कली -कली 
केसर की 
घाटी में '' नूरी '' हो जाये ,
मौसम 
सूफ़ी रंग में  रंगकर 
गली -गली फिर गाये ,
नफ़रत 
अपनी जिद को
छोड़े मांगे प्रेम उधार |

शाल बुनें
कश्मीरी सुबहें 
महकें दिन -संध्याएँ ,
लोकरंग 
में रंगकर निखरें 
सारी ललित कलाएँ ,
नये परिंदों से 
अब बदले 
घाटी का संभार |
चित्र -साभार गूगल 

Monday 3 June 2019

एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गातीं अबाबीलें


चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गाती अबाबीलें 

ढूँढता है 
मन हरापन 
सूखतीं झीलें |
कटे छायादार 
तरु अब 
 ठूँठ ही जी लें |

धूप में 
झुलसे हुए
चेहरे प्रसूनों के ,
घर -पते 
बदले हुए हैं 
मानसूनों के ,
कहीं देखा 
गाछ पर 
गाती अबाबीलें |

खेत -वन 
आँगन 
हवा में भी उदासी है ,
कृष्ण का 
उत्तंग -
बादल भी प्रवासी है ,
प्यास 
चातक चलो 
अपने होंठ को सी लें |

मई भूले 
जून का 
चेहरा लवर सा है ,
हर तरफ़ 
दावाग्नि 
मौसम बेख़बर सा है ,
सुबह -संध्या 
दिवस चुभती 
धूप की कीलें |


चित्र -साभार गूगल 

Thursday 16 May 2019

एक प्रेमगीत-सात रंग का छाता बनकर

चित्र-साभार गूगल

एक प्रेमगीत- सात रंग का छाता बनकर

सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
मौसम के
अलिखित गीतों को
पंचम  सुर-लय में गाती हो ।

जब सारा
संसार हमारा
हाथ छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
हो रात-चाँदनी ,
चौरे पर दिया -बाती हो ।

कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बिजली
मेघों की गर्जन से
हरियाली से भरी धरा है,
बार-बार
पढ़ता घर सारा ,
तुम तो एक सगुन पाती हो ।

भूखी-प्यासी
कजरी गैया
पल्लू खींचे, तुम्हें पुकारे,
माथे पर
काजल का टीका
जादू,टोना,नज़र उतारे,
सबकी प्यास
बुझाने में तुम
स्वयं नदी सी हो जाती हो ।


चित्र-साभार गूगल

एक गीत-नदियाँ सूखीं मल्लाहों की प्यास बुझाने में

चित्र-

एक गीत- 
नदियाँ सूखीं मल्लाहों की प्यास बुझाने में

राजनीति की
बिगड़ी भाषा
कौन बचाएगा ?
आगजनी
में सब शामिल हैं
कौन बुझाएगा ?


राजनीति का,
बच्चों का
स्कूल बचाना होगा,
पंख तितलियों के
आँधी से
फूल बचाना होगा,
शहरों में
अब गीत
मौसमी जंगल गाएगा ।

राहजनी में
रामकृष्ण के
सपनों का बंगाल,
ख़त्म हुई
कानून व्यवस्था
लगता यह पाताल,
विधि के
शासन का पीपल
कब तक मुरझाएगा ।

संस्कार
शब्दार्थ खो
गए नये जमाने में,
नदियाँ सूखीं
मल्लाहों की
प्यास बुझाने में,
इनके पेटे से
मलबा को
कौन हटाएगा ?

सबके
अपने-अपने नभ हैं
प्यासे बादल छाए,
कालिदास का
विरही बादल
अपनी व्यथा सुनाए
राजमयूरों को
बागों में
कौन नचाएगा ?
चित्र साभार गूगल



Saturday 11 May 2019

एक गीत-पियराये पत्तों से





चित्र-साभार गूगल

एक गीत-पियराये पत्तों से

पियराये
पत्तों से
हाँफती जमीन ।
उड़ा रहीं
राख-धूल
वादियाँ हसीन ।

दूर कहीं
मद्धम सा
वंशी का स्वर,
पसरा है
जंगल में
सन्नाटा-डर,
चीख रहे
पेड़ों को
चीरती मशीन ।

सूख रहीं
हैं नदियाँ
सौ दर्रे ताल में,
अधमरी
मछलियाँ
हैं मौसम के जाल में,
फूलों में
गन्ध नहीं
भ्रमर दीन-हीन ।
चित्र-साभार गूगल

Friday 10 May 2019

एक गीत-मौसम का सन्नाटा टूटे

चित्र-साभार गूगल

एक गीत-
मौसम का सन्नाटा टूटे

हँसना
हल्की आँख दबाकर
मौसम का सन्नाटा टूटे ।
हलद पुती
गोरी हथेलियों
से अब कोई रंग न छूटे ।

भ्रमरों के
मधु गुँजन वाले
आँगन में चाँदनी रात हो,
रिश्तों में
गुदगुदी समेटे
बच्चों जैसी चुहुल,बात हो,
दीप जले
तुलसी चौरे पर
कोई मंगल कलश न फूटे ।

माथे पर
चन्दन सा छूकर
शीतल पवन घरों में आए,
जब-जब छाती
फटे झील की
तानसेन मल्हार सुनाए,
धानी-हरी
घास पर कोई
नंगे पाँव न काँटा टूटे ।

वंशी का
माधुर्य हवाएँ
लेकर लौटें वृन्दावन से,
कृष्ण बसे तो
निकल न पाए
प्रेममूर्ति राधा के मन से,
राग-द्वेष
नफ़रत को कोई
आकर के ओखल में कूटे ।
चित्र-साभार गूगल

एक गीत-फूलते कनेरों में

गीत कवि माहेश्वर तिवारी अपनी धर्मपत्नी 
श्रीमती बाल सुन्दरी तिवारी के साथ

हिंदी के सुपरिचित गीतकवि श्री माहेश्वर तिवारी को समर्पित 
एक गीत-
फूलते कनेरों में

एक दिया
जलता है
आज भी अंधेरों में ।
पीतल की
नगरी में
फूलते कनेरों में ।

छन्द रहे
प्राण फूँक
आटे की मछली में,
घटाटोप
मौसम में
कौंध रही बिजली में,
शामिल है
सूरज के साथ
वह सवेरों में ।

बस्ती या
गोरखपुर या
उसकी काशी हो,
महक उठे
शब्द-अर्थ
गीत नहीं बासी हो,
"नदी का
अकेलापन
मीठे झरबेरों में ।

आसपास
नहीं कोई
फिर भी बतियाता है,
एक कँवल
लहरों में
जैसे लहराता है,
ओढ़ता
बिछाता है
गीत वह बसेरों में ।

बारिश की
बूँदों सा
ऊँघते पठारों में,
केसर की
खुशबू वह
धुन्ध में चिनारों में,
गीतों को
बाँध दिया
सप्तपदी फेरों में ।
कनेर के फूल चित्र साभार गूगल


Sunday 5 May 2019

एक गीत -वैरागी दिवस



चित्र -साभार गूगल 
एक गीत -वैरागी दिवस 


वैरागी 
दिवस बिना
पैलगी-प्रणाम ।
पगडण्डी
ढूँढ  रही
बेला की शाम ।



स्वप्न हुए
नागर सब
कटे -बँटे रिश्ते ,
घर में
सम्वाद कहाँ
बाहरी फ़रिश्ते ,
चिट्ठियाँ 
वो गयीं कहाँ 
बैरंग -बेनाम ।

नए -नए
खेल हुए
कहाँ गदा भीम की,
कहाँ कथा -
पीपल की 
बात कहाँ नीम की ,
मौसम का 
रखरखाव 
ए० सी० के नाम।

बदल तो
जरूरी है
पर इतना याद रहे,
शहर
बसे बेटों का
माँ से सम्वाद रहे ,
याद रहें
पेड़ों के
स्वाद भरे आम ।
पवित्र पीपल वृक्ष -चित्र -साभार गूगल 

Friday 19 April 2019

एक गीत-अनवरत जल की लहर सी

चित्र-गूगल से साभार

एक गीत-अनवरत जल की लहर सी


समय का
उपहास कैसे
सह रही हो तुम ।
अनवरत
जल की
लहर सी बह रही हो तुम ।

भागवत
की कथा हो
या गीत मौसम के,
किसी
भी दीवार पर
जाले नहीं ग़म के,
किस
तरह की
साधना में रह रही हो तुम।

खिल रहे
मन फूल जैसे
रातरानी गंध वाले,
बिना
कांजीवरम के
भी रंग हैं तेरे निराले,
बिना
शब्दों के बहुत
कुछ कह रही हो तुम ।

गाल पर
जूड़े बिखर कर
सो रहे होंगे,
बीज
सपनों के नयन
फिर बो रहे होंगे,
छाँह
आँगन में
सजाकर दह रही हो तुम।

Monday 15 April 2019

एक गीत -जागो मतदाता भारत के



चित्र -साभार गूगल 


एक विक्षोभ से उपजा गीत-जागो मतदाता भारत के 
फिर एक
महाभारत होगा
दुर्योधन खुलकर बोल रहा ।
द्रौपदी हो
गयी अपमानित
कौरव सिंहासन डोल रहा ।


संसद में
कचरा मत फेंको
इतिहास तुम्हें गाली देगा,
अच्छे फूलों की
खुशबू तो
अच्छा उपवन, माली देगा,
जागो मतदाता
भारत के
यह वक्त तुम्हें ही तोल रहा ।

भाषा-बोली
आचरण हीन,
प्रतिनिधि कैसे बन जाते हैं,
मत राष्ट्रगीत
की बात करो
ये राष्ट्रगान कब गाते हैं ?
इस राजनीति
के गिरने में
बस वोट बैंक का रोल रहा ।

तमगे
लौटाने वाले चुप
नारीवादी ख़ामोश रहे ,
कुछ अमृत पी
कुछ मदिरा पी
दरबारों में मदहोश रहे ,
हंसो के
मानसरोवर में
कोई तो है विष घोल रहा |

यह मौन
तुम्हारा सुनो भीष्म
सर शैय्या पर लज्जित होगा,
हे द्रोण ! कृपा !
अश्वस्थामा !
तू भी कल अभिशापित होगा,
गांधारी
पट्टी बांधे है
धृतराष्ट्र मुखौटा खोल रहा ।

Sunday 14 April 2019

एक प्रेम गीत -हरी घास मेड़ों की



चित्र -साभार गूगल 

एक प्रेमगीत -हरी घास मेड़ों की 

जूड़े में 
बेला फिर 
गूँथ रही शाम |
मौसम 
ने आज लिखा 
चिट्ठियाँ अनाम |

टहनी की 
कलियों ने 
पाँव छुए फूल के ,
हँसकर के  
गोड़ रंगे 
नाउन फिर धूल के ,
पिंजरे में 
एक सुआ 
कहे राम -राम |

महुआ के 
फूल चुए 
बीन रहा कोई ,
चुपके से 
अलबम को 
छीन रहा कोई ,
खिड़की से 
झाँक कोई 
कर गया प्रणाम |

आम के 
टिकोरे हैं 
कहीं छाँह पेड़ों की ,
पायल से
 बात करे 
हरी घास मेड़ों की ,
सोया है 
चाँद कोई  
लगा रहा बाम |
चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -आकाशी गुब्बारों को

चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -
आकाशी गुब्बारों को 

किसको चुनें
जातियों को या 
रंग -बिरंगे नारों को |
आज़ादी 
थक गयी उड़ाकर 
आकाशी गुब्बारों को  |

राजनीति में 
जुमलेबाजी- 
भाषण कुछ अय्यारी है ,
लोकतंत्र में 
कुछ परिवारों 
की ही ठेकेदारी है ,
गंगाजल से 
धोना होगा 
संसद के गलियारों को |

केवल  -अपनी 
भरे तिजोरी 
जो भी आते -जाते है ,
अपने -अपने 
धर्मग्रन्थ की 
झूठी कसमें खाते हैं |
अंधी न्याय 
व्यवस्था देती 
न्याय कहाँ लाचारों को |

नक्सलवादी-
भ्रष्टाचारी 
कुछ नेता अभिमानी हैं ,
कुछ भारत में 
रहकर के भी 
दिल से पाकिस्तानी हैं ,
गले लगाते 
कलमकार ,
कुछ अभिनेता, गद्दारों को |

राष्ट्रधर्म -
ईमान हमारा 
सदियों से ही खोया है ,
चीरा -टाँके 
लगे हमेशा 
संविधान भी रोया है ,
सब अपना 
दायित्व भूलकर 
याद रखे अधिकारों को |

आँख -कान 
कुछ बन्द न रखना 
इनकी -उनकी सुनियेगा ,
जिसका 
अच्छा काम रहा हो 
उसको प्रतिनिधि चुनियेगा ,
कद -काठी 
सब नाप-जोख के 
रखना चौकीदारों  को |

चित्र -साभार गूगल 

चित्र -साभार गूगल 


स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...