Saturday 25 February 2023

एक ग़ज़ल -शोख ग़ज़लों में तसव्वुर को सजाने के लिए

चित्र साभार गूगल 

दैनिक जनसंदेश टाइम्स लख़नऊ 


एक ग़ज़ल -शोख ग़ज़लों में तसव्वुर को सजाने के लिए 


कौन बाक़ी है मेरा राज़ बताने के लिए
अब कोई ख़त भी नहीं घर में छिपाने के लिए

प्यास तो नदियाँ बुझाती हैं ज़माने भर की
वो समंदर है अहं अपना दिखाने के लिए

भूख और प्यास लिए बैठे परिंदे छत पर
नींद ने समझा कि आते हैं जगाने के लिए

खुद से हो जंग तो मैं हारूँ या जीतू लेकिन
घर से निकला तो सभी आये मनाने के लिए

लोग पढ़ लेते हैं जैसे कोई अख़बार हूँ मैं
कुछ नहीं बाकी है अब सुनने सुनाने के लिए

उससे चुपचाप किसी मोड़ पे मिल लेता हूँ
शोख ग़ज़लों में तसव्वुर को सजाने के लिए

फूल तो खुशबू ही देते रहे आदिम युग से
सिर्फ़ पत्थर ही मिले आग जलाने के लिए

ग़म ख़ुशी सारे ही किरदार कहानी में मेरे
हमने कब सोच के लिखा था ज़माने के लिए 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Thursday 23 February 2023

एक गीत -एक चिड़िया शाख पर गाती हुई हुए


चित्र साभार गूगल 

एक गीत -एक चिड़िया शाख पर गाती हुई 


एक चिड़िया
शाख पर गाती हुई 
इस शहर की चुप्पियों को तोड़ती है.


भूख से व्याकुल
मगर संगीतमय है,
साधना के साथ
भाषा, अर्थ -लय है,
नींड़ के निर्माण का 
सपना लिए 
नींद में भी रोज तिनका जोड़ती है.

नहीं छुट्टी है नहीं
इतवार कोई,
नाव बिन माँझी
नहीं पतवार कोई,
इस नदी की
आरती मत छोड़ना
आस्था के साथ रिश्ते जोड़ती है.

घास धानी, हरी
मौसम फूल के,
पाँव में निखरे
महावर धूल के,
रास्ते लम्बे पथिक
विश्राम कर
प्यास भी पगडंडियो को मोड़ती है.

खिलखिलाकर
धूप -बादल हँस रहे,
घने वन में दौड़
चीतल फँस रहे,
शीश पर मटका
दिये भी जल रहे
एक बंजारन कला कब छोड़ती है.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

12 मार्च 2023 को अमर उजाला में प्रकाशित होगया 



चित्र साभार गूगल 


Wednesday 22 February 2023

पद्मश्री शोवना नारायण को गीत संग्रह भेंट करते हुए

पद्मश्री शोवना नारायण जी को गीत संग्रह भेंट करते हुए
. साथ में श्री राजेश प्रसाद निदेशक इलाहाबाद म्यूजियम 


Saturday 18 February 2023

एक गीत -पुण्य बाँटते संगम की जलधार देख लें

चित्र साभार गूगल 


एक -पुण्य बाँटते संगम की जलधार देख लें

आओ साथी
नदी -त्रयी
का प्यार देख लें.
पुण्य बाँटते 
संगम की 
जलधार देख लें.

धूप, हवा से
मौसम से 
बतियाने का दिन,
गंगा की
लहरों पर 
फूल चढ़ाने का दिन
मन की
आँखों से
आओ उस पार देख लें.

रंगों के
दिन लौट रहे
टेसू अबीर के,
छंद पढ़ें
आओ मिलकर
तुलसी कबीर के,
कृष्ण भक्ति
में मीरा के
उदगार देख लें.

नए -नए
जोड़े सूरज
को अर्घ्य दे रहे,
कुछ खाली
कुछ भरी
नाव मल्लाह खे रहे,
घाट -घाट
पर जल पंछी 
पतवार देख लें.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


Wednesday 15 February 2023

एक ग़ज़ल -नज़र रहे तो सारी दुनिया अच्छी है

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -नज़र रहे तो सारी दुनिया अच्छी है


बारिश के मौसम में धूप दिखाता है
साहब को सब पी. ए. ही समझाता है

उस्तादों को चिंता अच्छी महफ़िल की
बंज़ारा हर जंगल -घाटी गाता है

नज़र रहे तो सारी दुनिया अच्छी है
काजल तो आँखों को सिर्फ़ सजाता है

हवा उड़ा ले जाती जिसको मीलों तक
उस बादल से सूरज क्यों ढक जाता है

दरबारी कवियों का रिश्ता महलों से
तुलसी का बस रामकथा से नाता है 

सप्तशती में माँ का सुन्दर वर्णन है
पुत्र कुपुत्र भले हो माता -माता है

सिर्फ़ जंग में नहीं आपदा में सैनिक
सरहद से बाहर भी फ़र्ज़ निभाता है

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

Monday 13 February 2023

एक ग़ज़ल -कभी हँसते हुए ऐसी कहाँ तस्वीर मिलती है


चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

कभी हँसते हुए ऐसी कहाँ तस्वीर मिलती है 

मोहब्बत के फ़सानों में ही अक्सर हीर मिलती है
कभी हँसते हुए ऐसी कहाँ तस्वीर मिलती है

न पहले की तरह मौसम न वैसी धूप, बारिश है
कहाँ फूलों में भी अब फूल सी तासीर मिलती है

सुनहरी वादियाँ, परियों के किस्से बस किताबों में
हरे पत्तों में भी बुलबुल बहुत दिल गीर मिलती है 

सजाकर हम कभी रखते थे ख़त को और रिश्तों को
कहाँ अब हाथ से लिक्खी कोई तहरीर मिलती है

मुंडेरों पर कभी चिड़िया चहकती थी सुबह आकर
मकानों में न अब मिट्टी नहीं शहतीर मिलती है

सुनहरे पंख लेकर ख़्वाब में उड़ते रहे अक्सर
हक़ीक़त में मगर ऐसी कहाँ तस्वीर मिलती है

मिथक को तोड़ने इक संत काशी से चला आया
मगर मगहर को काशी सी कहाँ तक़दीर मिलती है

चित्र साभार गूगल 



कवि जयकृष्ण राय तुषार 

एक गीत -हँसी -ठिठोली, मिलना -जुलना


चित्र साभार गूगल 


एक गीत -हँसी -ठिठोली मिलना -जुलना किस्सा सिर्फ़ हुआ

हँसी -ठिठोली
मिलना -जुलना
किस्सा सिर्फ़ हुआ.
कुशल -क्षेम
पैलगी, कहाँ है
अब आशीष, दुआ.

आभाषी दुनिया
में खोया
अबका सभ्य समाज,
एक अकेला
मन का पंछी
चिंताओं के बाज़,
पिंजरे में
अब राम -राम भी
कहता नहीं सुआ.

घर में
रहकर दूर हो गयीं
ननद और भौजाई,
सिरहाने से
गायब नीरज,
नंदा औ परसाई,
छठे -छमासे
लिए मिठाई
आती कहाँ बुआ.

रामचरित मानस से
ज्यादा
भाती बेब सीरीज,
सुबह पार्क
में मिले दवा का
नुस्खा लिए मरीज़,
परदेसी
यारों से मिलना -
जुलना ख़त्म हुआ.

कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


Thursday 9 February 2023

एक ग़ज़ल -सुनहरे ख़्वाब लेकर

चित्र साभार गूगल 
एक ग़ज़ल -सुनहरे ख़्वाब लेकर

सुनहरे ख़्वाब लेकर नींद में रहता तो अच्छा था
जो देखा था ज़माने से नहीं कहता तो अच्छा था 

बहुत मुश्किल में जीते हैं परिंदे फूल, जंगल के
इन्ही के दरमियाँ झरना कोई बहता तो अच्छा था

शहर के दोस्त, रिश्ते बस जरूरत के मुताबिक हैं
मैं अपने गाँव के माहौल में रहता तो अच्छा था

मेरी छत पर उतर आया था कोई चाँद आहिस्ता
मगर बरसात का मौसम नहीं रहता तो अच्छा था 

बगावत करके मैं भी आ गया उसके निशाने पर
जुबां को सिल के उसके ज़ुर्म को सहता तो अच्छा था

हमारी ख्वाहिशें भी हो गयीं ऊँची हिमालय से
मेरे एहसास का पर्वत नही ढहता तो अच्छा था

कहाँ अब हैँ पुराने लोग जो ठुमरी समझते हैँ
मैं दिल की बात महफ़िल में नहीं कहता तो अच्छा था 

जयकृष्ण राय तुषार 


एक गीत -स्मृतिशेष पिता को याद करते हुए

पिता की कोई तस्वीर मेरे पास नहीं है 


स्मृति शेष  पिता को याद करते हुए 


पिता!

घर की खिड़कियों

दालान में रहना।

यज्ञ की 

आहुति, कथा के

पान में रहना।


जब कभी

माँ को

तुम्हारी याद आयेगी,

अर्घ्य 

देगी तुम्हें

तुम पर जल चढ़ायेगी,

और तुम भी

देवता

भगवान में रहना।


अब नहीं

आराम कुर्सी,

बस कथाओं में रहोगे,

प्यार से

छूकर हमारा मन

समीरन में बहोगे,

फूल की

इन खुशबुओं में

लॉन  में रहना।


माँ!

हुई जोगन

तुम्हारा चित्र मढ़ती है,

भागवत 

के पृष्ठ सा 

वह तुम्हें पढ़ती है ,

स्वर्ग में

तुम भी 

उसी के ध्यान में रहना |


चाँद-तारों से 

निकलकर

कभी तो आना, 

हम अगर

भटकें, हमें फिर

राह दिखलाना,

सात सुर में

बांसुरी की

तान में रहना।


पिता!

हमने गलतियां की हैं

क्षमा करना,

हमें दे

आशीष

घर धन-धान्य से भरना,

तुम

हमारे गीत में

ईमान में रहना।

चित्र साभार गूगल 


Wednesday 8 February 2023

एक ग़ज़ल -मेरी आँखों को नया ख़्वाब दिखाता भी नहीं

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -नया ख़्वाब दिखाता भी नहीं


मेरी आँखों को नया ख़्वाब दिखाता भी नहीं
धूप का चश्मा कोई रंग सजाता भी नहीं

सूखते पेड़, नदी, झील, परिंदो की सदा
कोई मौसम को सही बात बताता भी नहीं

अपनी उम्मीद भी खंडहर सी विराने में कहीं
कोई आता भी नहीं है कोई जाता भी नहीं

भूख से आँधी से, बरसात से लड़ता ही रहा
पाँव भी नंगे रहे हाथ में छाता भी नहीं

दोस्ती, दुश्मनी या प्यार मोहब्बत की क़सम
आज कल कोई सलीके से निभाता भी नहीं

शाम को डूबा था फिर सुब्ह को सूरज निकला
झील में, दरिया में, सागर में समाता भी नहीं

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Tuesday 7 February 2023

एक लोकभाषा गीत -जब तक रही राम कै दुनिया तुलसी के ही गाई

प्रभु श्रीराम 


एक लोकभाषा गीत -जब तक रही राम कै दुनिया तुलसी के ही गाई 

जन -जन कै प्रेरणा पुंज हौ
तुलसी कै चौपाई.
जब तक रही राम कै दुनिया
तुलसी के ही गाई.


रामचरित मानस के समझै
जन -जन इहै सुभीता,
बाल्मीकि कै रामायन ई
वेदव्यास कै गीता,
नर किन्नर, जनजाति पक्षिगन
सबै राम कै साथी
वनवासी प्रभु राम खड़ाऊं
और न घोड़ा, हाथी
असुर समझिहैँ का तुलसी के
राजनीति हरजाई.

सहज सुघर भाषा, बोली में
हौ तुलसी कै बानी,
सबके मन में ज्योति जगावै
का ज्ञानी -अज्ञानी
मात -पिता गुरु -पुत्र भार्या
राजधर्म कै दर्शन
श्लोक, छंद चौपाई के संग
मंगल लोक सुदर्शन,
तुलसी पर संदेह करी जे
चारो युग पछताई.

श्रृंवेरपुर चित्रकूट से
पंचवटी तक गइलैं
जउने डगर राम कै पनही
वोही डगर के धइ लैं
केवट कै संवाद मनोहर
तुलसी बाबा गावैँ
संकटमोचन से बस
अपने मन कै मरम बतावैँ
जेकरे मन में बसी अयोध्या
ऊ तुलसी के पाई.

तुलसी से हनुमान रूद्र कै
भक्ति भाव कै नाता
तुलसी हउवैँ सत्य -सनातन
संस्कृति कै उदगाता
जाति -पंथ कै भेद न कइलै
सबके राह देखउलैं
तुलसी तौ बस राम क महिमा
सच्चे मन से गउलैं
सीता के संग शबरी, सरयू
पावन गंगा माई.

कवि जयकृष्ण राय तुषार
गोस्वामी तुलसीदास 



एक गीत -बीत गयी शाम

चित्र साभार गूगल 


एक सामयिक गीत -


बीत गयी

शाम, मौन

वंशी का स्वर.

फूलों के

वन टूटे

तितली के पर.


राग -रंग

गीत वही

मौसम ही बदले,

झील -ताल

सारस हैं

पंख लिए उजले,

कहकहे

नहीं बाकी

सजे हुए घर.


कदम -कदम

सौदे हैं

निष्ठुर बाज़ार,

उपहारों में

उलझा

राँझे का प्यार,

चलो कहीं

निर्जन में

हँस लें जी भर.


आओ फिर

स्वर दें

कुछ जोश भरे गीतों को,

फिर से

कुछ पत्र लिखें

बिछड़ गए मीतों को,

पटना, दिल्ली

काशी

या हो बस्तर.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Saturday 4 February 2023

एक गीत -देश के लिए



अपार जनसंख्या के बावजूद आज भारत आत्मनिर्भर है और दुनिया में अपनी गौरवशाली छवि को स्थापित करने में सफल है. भारत विश्व गुरु बनने की तरफ अग्रसर है. भारत के कुशल नेतृत्व को निःसंदेह इसका श्रेय जाता है. प्रवासी भारतीयों ने भी भारत के गौरव को बढ़ाया है.हम भारतीयों को भी अपना शत प्रतिशत इस राष्ट्र के लिए योगदान करना चाहिए. राजनीति केवल सत्ता भोग और दलबदल के किये नहीं वरन जनकल्याण और राष्ट्र के उत्थान के लिए उसके गौरव और अभिमान के लिए होनी चाहिए. जय हिन्द जय भारत 

देशगान


घिरते मेघो में प्रखर सूर्य

कौपीन, माथ पर चंदन है.

अनगिन सपूत सेवक तेरे 

भारत माँ तेरा वंदन है.


अब राष्ट्र धर्म ही सर्वोपरि

भयमुक्त प्रजा, दिन खुशदिल है,

वन फूल, खेत में फसलें हैं

हर रात चाँदनी स्वप्निल है

बेटी झाँसी की रानी सी

बेटा नायक अभिनन्दन है.


सत्ता के भूखे दलबदलू

कब समझे मानस, गीता को,

रावण ने अबला नारी बस

समझा था माता सीता को,

भारत माँ तुझको शत प्रणाम

तेरी मिट्टी भी चन्दन है.


जिससे भारत का गौरव है

वह भारत का अभिमान रहे,

परिवार मुक्त हो दल सारे

हर नेता में ईमान रहे,

धृतराष्ट्र, और गांधारी के

घर शकुनि पराजय, क्रन्दन है.


जन -जन के हाथों हो मशाल

हर तिमिर ड़गर आलोकित हो,

अब मातृभूमि के चरणों में

जयचंदों का प्रायश्चित हो,

इस धरती की नदियां अमृत

इसका हर उपवन नंदन है.


सब धर्मों का आदर इसमें

सब धर्मों का सम्मान रहे,

मजहब कोई हो हर बच्चा

भारत माँ की संतान रहे,

भारत में तेरे चरण तले

बीजिंग, अमरीका, लंदन है.


यह भूमि देव ऋषि, मंत्रो की

सरयू की मंगल धारा है,

शबरी से मिलते जहाँ राम

वह भारत कितना प्यारा है,

जो भक्ति, ज्ञान का सागर है

वह कृष्ण यशोदा नंदन है 



स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...