चित्र साभार गूगल |
एक गीत-नीड़ तो मैं टहनियों पर ही बनाऊँगा
नीड़ तो मैं
टहनियों पर
ही बनाऊँगा ।
गीत
लेकिन सिर्फ़
माटी के सुनाऊँगा ।
हम परिंदे
आग और
तूफ़ान से खेले,
बाज के
पंजे
हवा के बीच में झेले,
वक्त की
हर चोट पर
मरहम लगाऊँगा ।
छाँह मिलनी
चाहिए
रेतों, पठारों को,
चाहिए
कितना हरापन
हरसिंगारों को,
देखना
मैं धूप को
दरपन दिखाऊँगा ।
युगों से
भटका हुआ
मन चाँद-तारों में,
है असल
संजीवनी
चीड़ों-चिनारों में,
स्वप्न में
परियाँ नहीं
तुमको बुलाऊँगा ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
कवि जयकृष्ण राय तुषार
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर गीत।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार सर
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