Wednesday, 17 September 2025

एक गीत -सारा जंगल सुनता है

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -सारा जंगल सुनता है

चित्र साभार गूगल



चिड़िया जब 
गाती है मन से 
सारा जंगल सुनता है.

नए बाग में 
नए फूल जब 
विविध रंग में खिलते हैं,
भौरे, तितली 
खुशबू अक्सर 
इनसे उनसे मिलते हैं,
वल्कल पहने 
मौसम 
टहनी से फूलों को चुनता है.

कभी कभी
तो सपने मन के
इंद्र धनुष हो जाते हैं,
कभी स्वनिर्मित
महासुरंगो में
जाकर खो जाते हैं,
बूढ़ी आँखों
से बुनकर मन
जाने क्या क्या बुनता है.

कलम वही जो
कविताओं में
सबकी पीड़ा लिखती है,
धुंधले पंन्नों पर
सोने के
अक्षर जैसी दिखती है,
वृंदावन अब
अपने मन की
वंशी केवल सुनता है.

कवि-जयकृष्ण राय तुषार




चित्र साभार गूगल


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