Monday, 8 February 2021

एक ग़ज़ल-माँ का वह चूल्हा-धुँआ हर शाम होना चाहिए

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

माँ का वह चूल्हा-धुँआ हर शाम होना चाहिए


इश्क़ के आगाज़ का अंजाम होना चाहिए 

हर बड़े शायर को कुछ बदनाम होना चाहिए


शायरी में इश्क़ ,खुशबू,हुस्न की बातें थीं कल

अब ग़ज़ल में कुछ सबक,पैग़ाम होना चाहिए


बाद मरने के, लबों पर हैं निराला और मज़ाज

कुछ तो जिंदा शायरों पे काम होना चाहिए


प्रेम भी जीवन का दर्शन है मगर इक शर्त पर

इसमें राधा,गोपियाँ,इक श्याम होना चाहिए


हर किले में दर्ज है शाहों,महाराजों के नाम

दर्ज तो कारीगरों का नाम होना चाहिए


घी, नमक,रोटी खिला देती थी अक्सर प्यार से

माँ का वह चूल्हा,धुँआ, हर शाम होना चाहिए


कैक्टस,गमले हरेक घर में,कटे पुरखों के पेड़

वन में कुछ हो, बाग़ में तो आम होना चाहिए

कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


कवि/ शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 08 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. इश्क़ के आगाज़ का अंजाम होना चाहिए
    हर बड़े शायर को कुछ बदनाम होना चाहिए

    शायरी में इश्क़ ,खुशबू,हुस्न की बातें थीं कल
    अब ग़ज़ल में कुछ सबक,पैग़ाम होना चाहिए

    वाह..
    बेहतरीन..🙏

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