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कब लौटोगी कथा सुनाने
कब लौटोगी
कथा सुनाने
ओ सिंदूरी शाम |
रीत गयी है
गन्ध संदली
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर
चांदनी नहीं है
रात दिशाओं में ,
टूट रहे
आदमकद शीशे
चीख और कोहराम |
माथे बिंदिया
पांव महावर
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक
फूल गूंथने
क्वांरी मांग सजाने ,
हाथों में
जादुई छड़ी ले
आना मेरे धाम |
बंद हुई
खिड़कियाँ ,झरोखे
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के
तारों पर
नंगे पांव डोलना है ,
प्यासे होठों पर
लिखना है
बौछारों का नाम |
सूरज कल भोर में जगाना
नींद नहीं
टूटे तो
देह गुदगुदाना |
सूरज
कल भोर में
जगाना |
फूलों में
रंग भरे
खुशबू हो देह धरे ,
मौसम के
होठों से
रोज सगुन गीत झरे ,
फिर आना
झील -ताल
बांसुरी बजाना |
हल्दी की
गाँठ बंधे
रंग हों जवानी के ,
इन सूखे
खेतों में
मेघ घिरें पानी के ,
धरती की
कोख हरी
दूब को उगाना |
लुका -छिपी
खेलेंगे
जीतेंगे -हारेंगे
मुंदरी के
शीशे में
हम तुम्हें निहारेंगे ,
मन की
दीवारों पर
अल्पना सजाना |
अल्पना सजाना |