एक प्रेमगीत-आखेटक चुप्पियाँ तोड़कर
आज हँसेंगे
सारा दिन हम
आखेटक चुप्पियाँ तोड़कर ।
इस नीरस
पठार की आंखों में
सपने आगत वसंत के,
कुछ तुम
कुछ हम गीत पढ़ेंगे
नीरज,बच्चन और पन्त के,
बिना पुरोहित
कथा सुनेंगे
आज बैठना गाँठ जोड़कर ।
प्यासी हिरणी
प्यासा जंगल
यहां नहीं चम्पई पवन है,
बंजारों की
बस्ती में कुछ
अब भी बाकी प्रेम अगन है,
आओ सबकी
प्यास बुझा दें
इस हिमनद की धार मोड़कर।