Wednesday 21 April 2021

एक गीत -टोकरी भरकर गुलाबी फूल लाऊँगा

 

चित्र -साभार गूगल 

मित्रों हम सभी एक अदृश्य महामारी से जूझ रहे हैं इस पर हमको विजय भी पाना है इसके लिए मनोबल को ऊँचा रखना भी सावधानी के साथ आवश्यक है | इस सांकेतिक प्रेम गीत के माध्यम से मनोबल को बढ़ाने की एक तुच्छ कोशिश |आप सभी सपरिवार स्वस्थ रहें यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है |सादर 

एक गीत -

टोकरी  भरकर  गुलाबी फूल लाऊँगा 

टोकरी 
भरकर 
गुलाबी फूल लाऊँगा |
इस 
हवा को मैं 
सुगन्धों से सजाऊँगा |

हँसो चम्पा !
डरो मत 
यह समय बीतेगा ,
आदमी 
इस वायरस से 
जंग जीतेगा ,
मैं -तुम्हारे
वायलिन
पर गीत गाऊँगा |

हरे पत्तों 
से हवा 
माँगो नदी से जल ,
लौट आयेंगे 
गगन में 
वृष्टि के बादल ,
इसी 
माटी पर 
हरेपन को सजाऊँगा |

फिर हँसेंगे  
बाजरे 
और धान खेतों में ,
दौड़ते 
होंगे हिरन 
दिनमान रेतों में  ,
चाँदनी 
में फिर 
तुम्हें किस्से सुनाऊँगा |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -सिरफिरा बादल नदी की प्यास लिखता है

 




चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -

सिरफिरा बादल नदी की प्यास लिखता है 

सूर्य का 
सारा सफ़र 
आकाश लिखता है |
सिरफिरा 
बादल 
नदी की प्यास लिखता है |

धूप के 
दिन हैं 
हरापन पेड़ पर कम है ,
चक्रवातों 
आँधियों 
का ख़ैर मकदम है ,
रोज 
बंजारा कहीं 
उपवास लिखता है |

बोतलों में 
बन्द पानी 
हवा बिकती है ,
दूर तक 
वातावरण में 
मृत्यु हँसती है ,
बोन्साई 
पेड़ का 
उपहास लिखता है |

पर्वतों की 
शक्ल 
बदली है पठारों में ,
ख़ुशबुओं में 
भी मिलावट 
है बहारों में ,
गीत में 
भौंरा कहाँ 
अनुप्रास लिखता है |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


Monday 19 April 2021

एक गीत -फूँक दो फिर शंख मौसम बंद कानों में

 

चित्र साभार गूगल 

मित्रों ! यह गीत नहीं वरन आप  सभी के कुशल क्षेम के लिए ईश्वर से प्रार्थना है |

एक गीत -

फूँक दो फिर  शंख मौसम  बंद कानों में 

फूँक दो फिर 
शंख मौसम 
बंद कानों में |
महामारी 
हँस रही 
बैठी मसानों में |

बहो माँ
भागीरथी 
संजीवनी लेकर ,
स्वस्ति वाचन 
करेंगे हम
अर्घ्य फिर देकर ,
अभय हो 
जाएँ हिरण 
फिर बियाबानों में |

घाटियाँ 
महकें 
सुहागिन सांध्य बेला हो ,
छन्न से 
यह तिमिर टूटे 
पथ उजेला हो ,
तितलियों के 
पंख 
मत काटो उड़ानों में |

प्रकृति का 
सौंदर्य 
जल ,बादल हमें दे दो ,
पर्व ,उत्सव 
गीत और 
मादल हमें दे दो ,
भींगना है 
अभी बारिश 
हरे धानों में |

प्रलय रोको 
अभी बेला 
खिल रही होगी ,
गले चम्पा से 
विहँसकर 
मिल रही होगी ,
अभी 
जीवन राग 
बाकी है पियानों में |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


Monday 12 April 2021

एक ग़ज़ल-ग़ज़ल ये गीत ये किस्सा कहानी छोड़ जाऊँगा

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

ग़ज़ल ये गीत ये किस्सा कहानी छोड़ जाऊँगा

तुम्हारा प्यार ये चेहरा नूरानी छोड़ जाऊँगा


अभी फूलों की खुशबू झील में सुर्खाब रखता हूँ

किसी दिन गुलमोहर ये रातरानी छोड़ जाऊँगा


हमारी प्यास इतनी है कि दरिया सूख जाते हैं

किसी दिन राख, मिट्टी, आग- पानी छोड़ जाऊँगा


अभी चिड़ियों की बंदिश सुन रहा हूँ पेड़ के नीचे

कभी हल बैल ये खेती किसानी छोड़ जाऊँगा


सफ़र में आख़िरी ,नेकी ही अपने साथ जाएगी

ये शोहरत और दौलत ख़ानदानी छोड़ जाऊँगा


कभी सुनना हो मुझको तो मेरा दीवान पढ़ लेना 

किताबों में मैं फूलों की निशानी छोड़ जाऊँगा 


दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना 

इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा 


मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर 

ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा 


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Sunday 11 April 2021

एक प्रेम गीत -फूलों में ,घाटी में कोई बैठा रेगिस्तान में

 

चित्र -साभार गूगल 

एक प्रेम गीत- फूलों में ,घाटी में कोई बैठा रेगिस्तान में

फूलों में,
घाटी में, कोई
बैठा रेगिस्तान में ।
ढाई अक्षर
प्रेम का
किसने बोला मेरे कान में ।

अलबम में
अनगिन छवियाँ
पर कोई भाती है,
फूल से
उड़कर तितली
मेरे ऑंगन आती है,
कुछ तो
शेर मोहब्बत -
वाले होते हर दीवान में ।

मैसेन्जर को
खोल के कोई
कहता हाय हैलो ,
भींग रहा है
लोनावाला
चुपके से निकलो,
याद अजन्ता
और एलोरा की
आती सुनसान में ।

दैहिक प्यार
क्षणिक है
मन का प्यार अनूठा है,
क्षितिज कहाँ
है इन्द्रधनुष
का किस्सा झूठा है,
परिचित से
दूरी जाने क्यों
मन लगता अनजान में ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -कविता क्या है ?

 

एक गीत-कविता क्या है ?

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -कविता क्या है ? भाषा के घर तबला,वंशी वीणा और शहनाई है । तुलसी,सूर कबीर का तन मन कविता मीराबाई है । बंजरपन में धान उगाती अँधियारे में दीपक-बाती, जीवन का हर रंग लिए यह झील में नीला चाँद सजाती, गर्भवती की उम्मीदों की यह पहली उबकाई है । हम-तुम जितने रंग बदलते उतने रंग बदलती है, पहली बार क्रौंच वध होने पर यह स्वतः निकलती है, वृंदावन का निर्गुण है यह गोकुल की अमराई है । शब्द-अर्थ लय-बिम्ब प्रतीकों की यह सुन्दर थाली है, उज्जयिनी पटना,प्रयाग यह काशी, वैशाली है, पन्त,प्रसाद निराला,दिनकर हरिशंकर परसाई है। तितली,फूल रंगोली,कोहबर सबका सुख दुःख लिखती है, कवि का मन जिस रंग से रंगता उसी रंग में दिखती है, गीत/अगीत ग़ज़ल, दोहा संग भजन और चौपाई है । कवि-
जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल 


Friday 9 April 2021

है नरक सा दिन सुहानी शाम फिर से लौट आओ

 

एक गीत-

चित्र साभार गूगल
एक सामयिक गीत

चाँद-तारों से

सजी 

इस झील में चप्पू चलाओ ।

है नरक सा

दिन सुहानी

शाम फिर से लौट आओ ।


बैगनी,पीले

गुलाबी फूल

अधरों को सिले हैं,

महामारी के

हवा में बढ़ रहे

फिर हौसले हैं,

जो हमें

संजीवनी दे

वह मृत्युंजय मन्त्र गाओ ।


हँसो मृगनयनी

कि इस 

वातावरण का मौन टूटे,

देखना

इस बार मंगल

कलश कोई नहीं फूटे,

रेशमी साड़ी

पहनकर

फिर शगुन का घर सजाओ।


काम पर

लौटी नहीं 

ये तितलियाँ कैसी ख़बर है,

बदलकर

बदला न मौसम

हर तरफ़ टेढ़ी नज़र है,

भूख की

चिन्ता किसे

बुझते हुए चूल्हे जलाओ ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Sunday 4 April 2021

एक ग़ज़ल -तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है



चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है 

तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
ये उड़ते परिंदो के ठिकाने का शजर है 

हाथों में किसी बाघ की तस्वीर लिए है 
यह देख के लगता है कि ये बच्चा निडर है 

ये भौंरा बयाबाँ में किसे ढूँढ रहा है 
जिस राह से आया है वहीं फूलों का घर है 

वो डूब के मर जाता तो छप जाते रिसाले 
बचकर के निकल आया कहाँ कोई ख़बर है 

वंशी हूँ तो होठों से ही रिश्ता रहा अपना 
पर आज गुलाबों की तरह किसका अधर है 

रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर 
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है 

परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर 
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है 

जयकृष्ण राय तुषार 
 
चित्र साभार गूगल 

Friday 2 April 2021

एक गीत -रामराज्य की तस्वीरों में रंग अभी भी भरना है

चित्र -साभार गूगल 

 


एक गीत -
रामराज्य की तस्वीरों में रंग अभी भी भरना है 

रामराज्य की 
तस्वीरों में रंग 
अभी भी भरना है |

अभी नींव की 
ईंट रखी है 
अभी मंगलाचरण हुआ है ,
अभी राम के 
पुण्य धाम का 
दुनिया को स्मरण हुआ है ,
अभी कलश में 
सरयू जी के 
पावन जल को भरना है |

सिंहासन पर 
संत विराजे 
साथ में गोरखबानी है ,
यज्ञ धूम 
संध्या वंदन से 
बोझिल शाम सुहानी है ,
भारत माँ के
अभिनन्दन में 
शंखनाद भी करना है |

अभी हवा में 
ब्रहमकमल की
खुशबू थोड़ी महकी है ,
अभी डाल पर 
सोने की चिड़िया 
थोड़ी सी चहकी है ,
अभी व्यास से 
रिक्त गुफ़ाओं 
का खालीपन भरना  है |

अभी आसुरी 
लंकाओं की 
काया को जलना होगा ,
पंचवटी में 
माया मृग को 
माया से छलना होगा ,
जो भी है 
मारीचि, राम के 
हाथ उसे भी मरना है |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल-इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल-

इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है ये झील भी सूखी कोई तालाब नहीं है इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है इस बार अँधरे में सफ़र कैसे कटेगा अब साथ में चलता हुआ महताब नहीं है मौसम की महामारी से सब कैद घरों में अब पास-पड़ोसन से भी आदाब नहीं है हर प्यास को दिखता है चमकता हुआ पानी सहरा का तमाशा है ये सैलाब नहीं है अब आँखें हक़ीकत को परखने में लगी हैं अब नींद भी आती है मगर ख़्वाब नहीं है यकृष्ण राय तुषार


एक ग़ज़ल -खुशबू ये हरापन तो मोहब्बत के लिए है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -

खुशबू ये हरापन तो मोहब्बत के लिए है 


मौसम का नज़रिया वही हालात वही है 

मायूस सी ख़बरें लिए दिन -रात वही है 


बस आग ,धुआँ ,आँधी है जंगल की कहानी 

कहने का तरीका नया हर बात वही है 


सख़्ती है मगर जुर्म की तादाद नहीं कम 

कानून की लाचारी हवालात वही है 


हर खेत की तक़दीर है मौसम के हवाले 

सूखा भी वही ,बाढ़ भी ,बरसात वही है 


मिलने के लिए पहले मिला करते थे हर दिन 

बेफिक्र हो जब दिल तो मुलाक़ात वही है 


हर मोड़ पे चुपचाप मिले वक़्त था ऐसा 

कह दो तो सुना दूँ तुम्हें जज़्बात वही है 


फलदार हो शाखें या बबूलों पे नशेमन 

चिड़ियों का तराना अभी हज़रात वही है 


खुशबू ये हरापन तो मोहब्बत के लिए है 

आँधी के लिए फूलों की औकात वही है 

कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...