चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल
कुछ हुनर कुछ दुश्मनों से धन मिला ख़ैरात का
हर गली धरना,प्रदर्शन चल रहा हज़रात का
बादलों में छिपके जो दिन में अँधेरा कर गया
वह भी सूरज आसमानी था मगर बरसात का
कैक्टस से इस क़दर हमको मोहब्बत हो गई
धर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का
आजकल सब भीड़ में शामिल हुए जाते हैं बस
पूछते भी हैं नहीं जलसा यहाँ किस बात का
तर्क से मिल बैठ के मसलों का हल होता रहे
अब तमाशा बन्द होना चाहिए उत्पात का
लोकशाही को भी संजीदा बनाना चाहिए
दर्द उसको भी समझना चाहिए सुकरात का
एक ही भाषण सियासत जेब में रखती रही
पुल का उद्घाटन हो या जलसा किसी बारात का
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल परिजात |
जयकृष्ण राय तुषार
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
पारिजात के प्रति मोह जगाती सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर |हिमालय ही तो पारिजात का उपवन है |
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteलोकशाही को भी संजीदा बनाना चाहिए
ReplyDeleteदर्द उसको भी समझना चाहिए सुकरात का
एक ही भाषण सियासत जेब में रखती रही
पुल का उद्घाटन हो या जलसा किसी बारात का
वाह !!! बहुत खूब !
हार्दिक आभार आपका
Deleteआज के हालातों पर सटीक बयान
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार अनीता जी
Deleteकैक्टस से इस क़दर हमको मोहब्बत हो गई
ReplyDeleteधर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का
जब लोग काँटों से ही प्यार करने लगेंगे तो फूलों का अस्तित्व तो समाप्त होगा ही,
लाज़बाब सृजन,सादर नमन आपको
आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteक्या बात बहुत ही फिलौसोफिकल मूड में हैं