चित्र -गूगल से साभार |
मुझको मत कवि कहना मैं तो आवारा हूँ
ना कोई
राजा हूँ
ना मैं हरकारा हूँ |
यहाँ -वहाँ
गाता हूँ
मैं तो बंजारा हूँ |
मैं तो बंजारा हूँ |
साथ नहीं
सारंगी
ढोलक ,करताल नहीं ,
हमको
सुनते पठार
श्रोता वाचाल नहीं ,
छेड़ दें
हवाएं तो
बजता इकतारा हूँ |
धूप ने
सताया तो
सिर पर बस हाथ रहे ,
मौसम की
गतिविधियों में
उसके साथ रहे ,
नदियों में
डूबा तो
स्वयं को पुकारा हूँ |
झरनों का
बहता जल
चुल्लू से पीता हूँ ,
मुश्किल से
मुश्किल क्षण
हंस -हंसकर जीता हूँ ,
वक्त की
अँगीठी में
जलता अंगारा हूँ |
फूलों से
गन्ध मिली
रंग मिले फूलों से ,
रोज -नए
दंश मिले
राह के बबूलों से ,
मौसम के
साथ चढ़ा
और गिरा पारा हूँ |
महफ़िल तो
उनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना