चित्र साभार गूगल |
एक प्रेम गीत-बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर
आलमारी में
कहीं फिर
भागवत रख दो सजाकर ।
पास में
बैठो हमारे
नेह का कम्बल बिछाकर ।
ये कुशा
गंगाजली रख दो
न कोई मंत्र बोलो ,
धूम्र से
निकलो हवन के
स्वप्नदर्शी नयन खोलो,
काटना
फिर से चिकोटी
और छिप जाना लजाकर ।
टकटकी
बाँधे हुए मौसम
गगन में चाँदनी है,
पास में
गुलमोहरों के
फूल,पेंटिंग मधुबनी है,
चलो छत पर
टहल आएं
नींद में शिशु को सुलाकर ।
डायरी के
पृष्ठ खोलो
सप्त सुर के पाठ वाले,
इन्हीं शब्दों
से खुलेंगे
सभी धागे गाँठ वाले,
बाँसुरी मैं
छोड़ दूँगा
गीत अधरों पर सजाकर ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का" (चर्चा अंक- 3985) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आपका
Deleteप्रेम से सराबोर सुंदर गीत ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार आदरणीया
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बहुत सरस और मधुर गीत |बधाई , शुभ कामनाएं |
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