Sunday, 21 February 2021

एक प्रेमगीत-बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर

 

चित्र साभार गूगल

एक प्रेम गीत-बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर


आलमारी में

कहीं फिर

भागवत रख दो सजाकर ।

पास में 

बैठो हमारे 

नेह का कम्बल बिछाकर ।


ये कुशा

गंगाजली रख दो

न कोई मंत्र बोलो ,

धूम्र से 

निकलो हवन के

स्वप्नदर्शी नयन खोलो,

काटना

फिर से चिकोटी

और छिप जाना लजाकर ।


टकटकी

बाँधे हुए मौसम

गगन में चाँदनी है,

पास में

गुलमोहरों के

फूल,पेंटिंग मधुबनी है,

चलो छत पर

टहल आएं

नींद में शिशु को सुलाकर ।


डायरी के

पृष्ठ खोलो

सप्त सुर के पाठ वाले,

इन्हीं शब्दों

से खुलेंगे

सभी धागे गाँठ वाले,

बाँसुरी मैं

छोड़ दूँगा

गीत अधरों पर सजाकर ।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का"   (चर्चा अंक- 3985)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
     आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. प्रेम से सराबोर सुंदर गीत ।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना

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  4. बहुत बहुत सरस और मधुर गीत |बधाई , शुभ कामनाएं |

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