Sunday 23 February 2020

एक गीत -सारे नकली ताल -तबलची


एक गीत--सारे नकली ताल-तबलची
कुरुक्षेत्र
के महारथी
सब गुणा-भाग में ।
धरना भी
प्रीपेड
हुआ शाहीन बाग़ में ।

जनता में
ईमान नहीं
हो गयी बिकाऊ,
लोकतंत्र
जर्जर, दीवारें
नहीं टिकाऊ,
जहरीले थे
और पंख
लग गए नाग में।

बिल्ली
बनकर रोज
प्रगति की राह काटते,
खबरों के
मालिक
अफ़ीम सी ख़बर बाँटते,
सारे नकली
ताल-तबलची
रंग-राग में ।

सत्ता की
मंशा कुछ,
मंशा कुछ विपक्ष की,
यज्ञ कुंड
हो गयी प्रजा
अब नृपति दक्ष की,
स्वप्न
दक्ष कन्या से
जलने लगे आग में ।

बिगड़ी
बोली-बानी
बिगड़ी है भाषाएं,
छंदहीन
हो गईं
किताबों में कविताएं,
गंध
उबासी
नकली फूलों के पराग में।

चित्र -साभार गूगल 

Saturday 22 February 2020

एक गीत -कालिया जी इक मोहब्बत का फ़साना साथ लाये

हिंदी कहानी के चार यार -चित्र साभार गूगल 



ख्यातिलब्ध उपन्यासकार ,संस्मरण लेखक ,कथाकार ,बेहतरीन सम्पादक ,यारों के यार ,हिंदी कहानी के चार यार [ज्ञानरंजन ,काशीनाथ सिंह ,दूधनाथ सिंह और स्मृतिशेष रवीन्द्र कालिया ]और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक पद को सुशोभित कर चुके रवीन्द्र कालिया ने धर्मयुग ,गंगा -जमुना ,वागर्थ ,और नया ज्ञानोदय का बेहतरीन सम्पादन किया था | उनकी धर्मपत्नी ममता कालिया हिंदी की चर्चित कथाकार हैं | रवीन्द्र कालिया के परममित्र ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह भी अब हमारे बीच नहीं हैं | कालिया जी के गुरु महान कथाकार ,नाटककार मोहन राकेश थे |

कालिया जी को याद करते हुए एक गीत -
कालिया जी इक मोहब्बत का फ़साना साथ लाये 

छोड़कर 
जगजीत का संग 
जब इलाहाबाद आये |
कालिया जी 
इक मोहब्बत का 
फ़साना साथ लाये |

शब्द के 
जल से प्रवाहित 
किये गंगा और जमुना ,
आँख 
जालन्धर
रसूलाबाद उनकी नींद ,सपना ,
हमसफ़र 
बन गये 
ममता कालिया का साथ पाये |

चार यारों 
की कलम 
हिंदी कहानी चूमती है ,
कुछ इलाहाबाद 
काशी की 
धुरी पर घूमती है ,
कालिया जी 
कुछ अलग थे 
अनगिनत किरदार पाये |

कई मौसम 
शहर कितने 
बदलकर बदले नहीं ,
कालिया जी 
इस इलाहाबाद 
से निकले नहीं |
ज़िन्दगी 
जिन्दादिली से 
जिए सारे ग़म भुलाये |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
कथाकार ममता कालिया 

Friday 14 February 2020

एक लोकभाषा गीत-प्रेम क रंग निराला हउवै


चित्र-साभार गूगल

एक लोकभाषा गीत-
प्रेम क रंग निराला हउवै

सिर्फ़ एक दिन प्रेम दिवस हौ
बाकी मुँह पर ताला हउवै
ई बाजारू प्रेम दिवस हौ
प्रेम क रंग निराला हउवै

सबसे बड़का प्रेम देश की
सीमा पर कुर्बानी हउवै
प्रेम क सबसे बड़ा समुंदर
वृन्दावन कै पानी हउवै
प्रेम भक्ति कै चरम बिंदु हौ
तुलसी कै चौपाई हउवै
सूरदास,हरिदास,सुदामा
ई तौ मीराबाई हउवै
प्रेम क मन हौ गंगा जइसन
प्रेम क देह शिवाला हउवै

प्रेम मतारी कै दुलार हौ
बाबू कै अनुशासन हउवै
ई भौजी कै हँसी-ठिठोली
गुरु क शिक्षा,भाषन हउवै
बेटी कै सौभाग्य प्रेम हौ
बहिन क रक्षाबन्धन हउवै
सप्तपदी कै कसम प्रेम हौ
हल्दी,सेन्हुर,चन्दन हउवै
आज प्रेम में रंग कहाँ हौ
एकर बस मुँह काला हउवै

प्रेम न माटी कै रंग देखै
प्रेम नदी कै धारा हउवै
ई पर्वत घाटी फूलन कै
खुशबू कै फ़व्वारा हउवै
जइसे सजै होंठ पर वंशी
वइसे अनहद नाद प्रेम हौ
एके ढूंढा नहीं देह में
मन से ही संवाद प्रेम हौ
प्रेम न राजा -रंक में ढूंढा
ई गोकुल कै ग्वाला हउवै
चित्र-साभार गूगल

Sunday 9 February 2020

दो पुराने गीत -कोई गीत लिखा मौसम ने

चित्र -साभार गूगल 


दो गीत -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

एक -मन ही मन ख़ामोश कबूतर 

मन ही मन ख़ामोश 
कबूतर कुछ बतियाता है |
बन्द लिफ़ाफे लेकर 
अब डाकिया न आता है |

क्या इस युग में सब 
इतने निष्ठुर हो जाएंगे , ,
अन्तरंग बातें भी 
यंत्रों से बतियाएंगे 
कोई बनकर अतिथि 
नहीं अब आता जाता है |

साँझ ढले माँ के चौके 
अब धुंआ नहीं होता ,
गागर में सागर क्या 
पनघट कुआँ नहीं होता 
कोई बच्चा अब न 
तितलियों को दौड़ाता है |

चाँद -सितारों की छाया में 
सोना कहाँ गया 
फूलों की घाटी में मन का 
खोना कहाँ गया 
अब न सगुन के समय 
कोई भौंरा मडराता है |

दो -
कोई गीत लिखा मौसम ने 

कोई गीत लिखा मौसम ने 
आज तुम्हारे नाम |

हरे -भरे खेतों में 
सरसों के लहराते फूल 
बहके -बहके पाँव हवा के 
कदम -कदम पे भूल 
कई दिनों के बाद चीरकर 
कोहरा निकला घाम |

अरसे बाद गाँव से आयी 
चिट्ठी खोल रहा 
बनकर होंठ गुलाबी 
हर इक अक्षर बोल रहा 
बहुत दिनों के बाद आज 
फिर हम होंगे बदनाम |

सुधियों के जकड़े -अनजकड़े 
बंधन टूट रहे 
हलद पुते हाथों से 
पीले कंगन छूट रहे 
तेरी आहट से उदासियाँ 
हुईं आज नीलाम |

चित्र -साभार गूगल 



एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...