चित्र -गूगल से साभार |
खार से रिश्ता भले खार की सूरत रखना
फूल से मिलना तो फूलों सी तबीयत रखना
जब भी तकसीम किया जाता है हँसते घर को
सीख जाते हैं ये बच्चे भी अदावत रखना
हम किसे चूमें किसे सीने पे रखकर रोयें
दौर -ए -ईमेल में मुमकिन है कहाँ खत रखना
जिन्दगी बाँह में बांधा हुआ तावीज नहीं
गर मिली है तो इसे जीने की कूवत रखना
रेशमी जुल्फ़ें ,ये ऑंखें ,ये हँसी के झरने
किस अदाकार से सीखा ये मुसीबत रखना
चाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना
अपना अस्तित्व मिटा देने की फितरत रखना
जिसके सीने में सच्चाई के सिवा कुछ भी नहीं
उसके होठों पे उँगलियों को कभी मत रखना
जब उदासी में कभी दोस्त भी अच्छे न लगें
कैद -ए -तनहाई की इस बज्म में आदत रखना
इसको सैलाब भी रोके तो कहाँ रुकता है
इश्क की राह, न दीवार, न ही छत रखना
[ मेरी यह ग़ज़ल नया ज्ञानोदय के ग़ज़ल महाविशेषांक में प्रकाशित है ]
[ मेरी यह ग़ज़ल नया ज्ञानोदय के ग़ज़ल महाविशेषांक में प्रकाशित है ]
चाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना
ReplyDeleteअपना अस्तित्व मिटा देने की फितरत रखना
गहरी अभिव्यक्ति...
जिन्दगी बाँह में बांधी हुई ताबीज नहीं
ReplyDeleteगर मिली है तो इसे जीने की कूव्वत रखना
....बहुत खूब...बेहतरीन गज़ल...सभी शेर उम्दा..
चाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना
ReplyDeleteअपना अस्तित्व मिटा देने की फितरत रखना
वाह ...बहुत खूबसूरत गजल
खार से रिश्ता भले खार की सूरत रखना
ReplyDeleteफूल से मिलना तो फूलों सी तबीयत रखना
क्या बात है !बेहतरीन नज्म ,नूरी ख्यालों के साथ .....आफरीन /
बहुत खूबसूरत ,भाव और शिल्प दोनों में ही ...
ReplyDeleteमुआ ये ईमेल :)
वाह, बेहतरीन भाव, कोई सीमायें नहीं भावों की।
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल है.. तमाम उर्दू लफ्जों के बीच संस्कृतनिष्ठ हिंदी शब्द 'अस्तित्व' खटक रहा है थोड़ा। अगर यहां वज़ूद होता तो कैसा रहता?
ReplyDeleteजिन्दगी बाँह में बांधी हुई ताबीज नहीं
ReplyDeleteगर मिली है तो इसे जीने की कूव्वत रखना
जिसके सीने में सच्चाई के सिवा कुछ भी नहीं
उसके होठों पे उँगलियों को कभी मत रखना
हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ....
''फूलो से मिलना हो तो फूलो सी तवीयत रखना ''अच्छी गजल के लिए बधाई ..
ReplyDeleteआदरणीय दीपिका जी यहाँ अस्तित्व वजूद से अधिक मुखर है |कहीं कहीं उर्दू शब्द बहुत अच्छे अर्थ देते हैं और कहीं हिंदी |शब्दों के साथ बहुत लिबरल होना चाहिए |लेकिन आपका सुझाव के लिए आभार |ब्लॉग पर आप सभी का आभार जिन्होंने यहाँ आकर मेरा उत्साहवर्धन किया है |
ReplyDeleteजब उदासी में कभी दोस्त भी अच्छे न लगें
ReplyDeleteकैद -ए -तनहाई की इस बज्म में आदत रखना ...........tushar ji bahut hi sunder gajal ................dil bhavbhihor ho gaya padhkar ..urdu shabdo ka samavesh bhi bahut accha laga . waah ..............behatarin gajal ke liye hardik badhai .
शशि जी बहुत -बहुत शुक्रिया |
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ये पगडंडियों का ज़माना है .
सभी शेर बहुत कमाल और खास लगे. सही कहा ईमेल के ज़माने में हाथों लिखा खत अब कहाँ.... अपनापन जो खत में होता था ईमेल में कहाँ...
ReplyDeleteहम किसे चूमें किसे सीने पे रखकर रोयें
दौर -ए -ईमेल में मुमकिन है कहाँ खत रखना
जिन्दगी बाँह में बांधी हुई ताबीज नहीं
गर मिली है तो इसे जीने की कूव्वत रखना
दाद स्वीकारें.
bahut sundar khoobsurat rachna...
ReplyDeleteचाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना
ReplyDeleteअपना अस्तित्व मिटा देने की फितरत रखना
बहुत उम्दा है
जब भी तकसीम किया जाता है हँसते घर को
ReplyDeleteसीख जाते हैं ये बच्चे भी अदावत रखना
..सच है
बेहतरीन गज़ल
@ दौर -ए -ईमेल में मुमकिन है कहाँ खत रखना
ReplyDeleteसही है ....
:)
उम्दा ग़ज़ल है
ReplyDeleteहर शेर नायाब
बधाई स्वीकारें
तुषार जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
हर एक अश'आर कामयाब!
आखिरी वाला नायाब!
आशीष
--
द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!
जिन्दगी बाँह में बांधी हुई ताबीज नहीं
ReplyDeleteगर मिली है तो इसे जीने की कूव्वत रखना
क्या बात है, बहुत शानदार ग़ज़ल, हर दृष्टि से।
PHOOL SI GAZAL.. BAHUT KHOOBSURAT
ReplyDeleteअच्छी भाषा में अच्छी भावनाओं की यह प्रस्तुति पसंद आई। इसे पढ़कर ताज़गी का एहसास होता है।
ReplyDelete-----देवमणि पाण्डेय
हम किसे चूमें किसे सीने पे रखकर रोयें
ReplyDeleteदौर -ए -ईमेल में मुमकिन है कहाँ खत रखना
जिन्दगी बाँह में बांधी हुई ताबीज नहीं
गर मिली है तो इसे जीने की कूव्वत रखना
प्रभाव शाली रचना के लिए बधाई !
ReplyDeleteजिन्दगी बाँह में बांधा हुआ तावीज नहीं
ReplyDeleteगर मिली है तो इसे जीने की कूवत रखना
...लाज़वाब।
चाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना
ReplyDeleteअपना वजूद मिटा देने की फितरत रखना
जिन्दगी बाँह में बांधा हुआ तावीज नहीं
गर मिली है तो इसे जीने की कूवत रखना
अच्छी रचना के लिए ढ़ेरों बधाइयाँ !!!!