Monday, 13 December 2021

एक गीत लोकभाषा-काशी

 

 हर हर महादेव 

हर हर महादेव ।काशी के प्राचीन और वर्तमान वैभव अध्यात्म के नमन

काशी पर कुछ लिखना मुझ जैसे अदना कवि के लिए संभव नहीं फिर भी एक कोशिश-


काशी अनादि,सत्य,सनातन महान हौ

काशी सजल हौ आज अनोखा विहान हौ


घर-घर सजल हौ फूल की

खुशबू से इत्र से

गलियारा भरि गइल हौ

अतिथि,इष्ट-मित्र से

डमरू बजत हौ

घाट-घाट शंखनाद हौ

गंगा के घाट-धार में

कलकल निनाद हौ


रुद्राक्ष हौ गले में भरल मुँह में पान हौ

काशी सजल हौ आज अनोखा विहान हौ


चौरासी घाट से सजल ई

शिव क धाम हौ

बस हर हर महादेव इहाँ

सुबह शाम हौ

अवधूत,संत शिव की

शरण मे गृहस्थ हौ

गाँजा चिलम औ

भाँग के संग काशी मस्त हौ


कबीरा, रैदास औ इहाँ तुलसी क मान हौ

काशी सजल हौ आज अनोखा विहान हौ


मोदी में आस्था भी हौ

श्रद्धा अपार हौ

ई काशी विश्वनाथ कै

अद्भुत श्रृंगार हौ

पंचकोशी मार्ग हौ इहाँ

भैरव क मान हौ

अध्यात्म तंत्र-मंत्र

इहाँ मोक्ष ज्ञान हौ


संगीत औ शास्त्रार्थ में एकर बखान हौ

काशी सजल हौ आज अनोखा विहान हौ

काशी नहीं भागै न

परालै तूफ़ान से

शिव के त्रिशूल पर

हौ टिकल आन-बान से

काशी नहीं अनाथ

इहाँ सारनाथ हौ

भक्तन के शीश पर

इहाँ गंगा कै हाथ हौ


घर-घर में इहाँ वेद-पुरानन क ज्ञान हौ

काशी सजल हौ आज अनोखा विहान हौ


कवि -जयकृष्ण राय तुषार



Sunday, 12 December 2021

एक ग़ज़ल-अच्छी चीजें सबको अच्छी लगती हैं

चित्र साभार गूगल


एक ताज़ा ग़ज़ल-

अच्छी चीजें सबको अच्छी लगती हैं


राग ,रंग,सुर,ताल बदलकर गाता है

खुशबू,बारिश,धूप का मौसम आता है


कोई दरिया खारा कोई मीठा है

प्यास बुझाता कोई प्यास बढ़ाता है


अच्छी चीजें सबको अच्छी लगती हैं

बच्चा भी खिड़की से चाँद दिखाता है


सबको शक था कौन है उसके कमरे में

अक्सर वह आईने से बतियाता है


तुलसी,ग़ालिब,मीर पढ़ो या खुसरो को

बाल्मीकि ही छन्दों का उद्गाता है


जब भी तन्हा दिल में ज्वार उमड़ता है

सागर भी साहिल से मिलने आता है


कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


चित्र साभार गूगल

Sunday, 5 December 2021

एक ग़ज़ल-कितना अच्छा मौसम यार पुराना था

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

कितना अच्छा मौसम यार पुराना था


कितना अच्छा मौसम यार पुराना था

घर- घर में सिलोन रेडियो गाना था


खुशबू के ख़त होठों के हस्ताक्षर थे

प्रेम की आँखों में गोकुल,बरसाना था


कौन अकेला घर में बैठा रोता था

सुख-दुःख में हर घर में आना-जाना था


रिश्तों में खटपट थी तू-तू ,मैं मैं भी

फिर भी मरते दम तक साथ निभाना था


महबूबा की झलक भी उसने देखी कब

बस्ती की नज़रों में वह दीवाना था


कहाँ रेस्तरां होटल फिर भी मिलना था

गाँव के बाहर पीपल एक पुराना था


गाय, बैल,चिड़ियों से बातें होती थी

बेज़ुबान पशुओं से भी याराना था


घर भर उससे लिपट के कितना रोये थे

बेटे को परदेस कमाने जाना था


बरसों पहले गाँव का ऐसा मंज़र था

नदियाँ टीले जंगल ताल मखाना था

कवि-जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल

Wednesday, 1 December 2021

एक ग़ज़ल-कोई गा दे मुझे पीनाज़ मसानी की तरह

 

सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका 
पीनाज़ मसानी

एक ग़ज़ल-

कोई गा दे मुझे पीनाज मसानी की तरह 


धूप के साथ में बारिश की कहानी की तरह

तुम हो सहरा में किसी झील के पानी की तरह


कोई पानी नहीं देता उसे मौसम के सिवा

फिर भी जंगल है हरा रात की रानी की तरह


वक्त ने छीन लिया वेश बदलकर सब कुछ

ज़िन्दगी हो गयी है कर्ण से दानी की तरह


मैं भी कहता हूँ ग़ज़ल डूब के तन्हाई में

कोई गा दे मुझे पीनाज़ मसानी की तरह


कब ठहरता यहाँ यादों का सुहाना मौसम

सिर्फ़ कुछ देर रहा आँख के पानी की तरह

कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


आज़मगढ़ के गौरव श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल कुंद

 श्री जगदीश प्रसाद बरवाल कुंद जी आज़मगढ़ जनपद के साथ हिन्दी साहित्य के गौरव और मनीषी हैं. लगभग 15 से अधिक पुस्तकों का प्रणयन कर चुके कुंद साहब...