Sunday 31 July 2022

एक ग़ज़ल -राम को जब कोई हैवान भुला देता है


प्रभु श्रीराम 


एक ग़ज़ल --
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता  है

शांत मौसम में हरा पेड़ गिरा देता है
ये वही जाने किसे, कौन सज़ा देता है

सब उजाले में शहँशाह समझते खुद को
रात में नींद में इक ख़्वाब डरा देता है

उसका घर वैसा ही है जैसा बना है मेरा
आदतन फिर भी वो शोलों को हवा देता है

बुझ गए जब भी दिए दोष हवाओं का रहा
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता है

स्वर्ण की जलती हुई लंका ही मिलती है उसे
राम को जब कोई हैवान भुला देता है 

कवि -शायर जयकृष्ण राय तुषार 


Thursday 28 July 2022

ग़ज़ल -इस बनारस का हरेक रंग निराला है अभी

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -

इस बनारस का हरेक रंग निराला है अभी 


इस बनारस का हरेक रंग निराला है अभी

सुबहे काशी भी है, गंगा भी, शिवाला है अभी


जिन्दगी पाँव का घूँघरू है ये टूटे न कभी

कोई महफ़िल में तुझे चाहने वाला है अभी


तेज बारिश है, घटाएँ भी हैं, सूरज भी नहीं

किसकी तस्वीर से कमरे में उजाला है अभी


डर की क्या बात चलो आओ सफ़र में निकलें

धूप के साथ नदी, वन में गज़ाला है अभी


कल इसी गोले को ये दुनिया कहेगी सूरज

शाम को झील में जो डूबने वाला है अभी


आरती करते हुए कौन है पारियों की तरह

मैं ग़ज़ल कह दूँ मगर हाथ में माला है अभी


चलके धरती से गगन देखना नीला होगा

चाँद की छत से नहीं देखना काला है अभी


भूख की बात मैं कविता में लिखूँ तो कैसे

मेरे हाथों में गरम चाय का प्याला है अभी

कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Tuesday 26 July 2022

एक ग़ज़ल -मौसम का कुछ असर ही नहीं




एक ग़ज़ल -
ख़ुशी से हाथ मिलाता कोई बशर ही नहीँ

नए ज़माने पे मौसम का कुछ असर ही नहीं
सुना है फूल, परिंदो का ये नगर ही नहीं

नुकीले काँटों के चुभने का दर्द मुझको पता
वो नंगे पाँव किया था कभी सफ़र ही नहीं

मेरे ख़तों का न आया कोई जवाब उनका 
सुना है उनपे मोहब्बत का कुछ असर ही नहीं

छतों पे चाँदनी आकर गगन में लौट गयी
मैं अपनी क़ैद में बैठा मुझे ख़बर ही नहीं

तुम्हारे लाँन में गमले हजार रंग के हैं
मगर परिंदो के लायक कोई शज़र ही नहीं 

हरेक मोड़ पे पूजा, नमाज़ के झगड़े
ख़ुशी से हाथ मिलाता कोई बशर ही नहीं

हमारे संतों ने दुनिया को ज्ञान ज्योति दिया
तमाम वेद,गणित में महज सिफ़र ही नहीं

शायर /कवि जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल 


Monday 25 July 2022

एक देशगान -पीठ शारदा पी. ओ. के. में

शक्तिपीठ शारदा की पाकिस्तान में दुर्दशा 


भारत की प्राचीन विद्या का महान केंद्र और शक्ति पीठ माँ शारदा का मंदिर पी. ओ. के. में आज यह शक्ति पीठ खंडहर में तब्दील हो गया है. भगवान महकाल अमरनाथ की गुफा में कश्मीर में माँ शारदा पीठ की मुक्ति मोदी जी और भारत के महान सैनिक कर सकते हैं. वन्देमातरम


एक गीत -पीठ शारदा पी. ओ. के. में


पीठ शारदा

पी. ओ. के. में

अमरनाथ कश्मीर में.

जिन्ना, नेहरू

किसने लिक्खा

भारत की तक़दीर में.


मातृभूमि को

खंडित करने का

अंदाज अनोखा था,

सन 47 का

बँटवारा 

भारत माँ से धोखा था,

यह कैसी

आज़ादी जिसमें

हाथ -पाँव जंज़ीर में.


पंचशील के

गद्दारों को

तगड़ा सबक सिखाना है,

बीजिंग के

सीने पर चढ़कर

वन्देमातरम गाना है,

फिर से

बिजली चमके

पोरस के तरकश, शमशीर में.


दुष्ट पडोसी

आतंकी है

हर दिन है शैतानी में,

अग्नि बाण से

ज्वालामुखियाँ

भर झेलम के पानी में,

प्रलय करे

ऐसी जलधारा

हो गंगा के नीर में.


अबकी रहे

तिरंगा घर -घर

देशगान की शाम हो,

उसको भय क्यों

जिसके घर में

विश्व विजेता राम हो,

कोई फिर से

प्राण फूँक दे

सोए गोगा वीर में.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

भारतीय वायुसेना 


Sunday 24 July 2022

एक गीत -अब देवास कहाँ सुनता है निर्गुण गीत नईम के


चित्र साभार गूगल 


एक गीत -अब देवास कहाँ सुनता है निर्गुण गीत नईम के 


कोयल चैत न 

सावन कजली

झूले गायब नीम के.

परदेसी हो

गए पुरोहित

काढ़े नहीँ हक़ीम के.


ऐसे मौसम में

मन कैसे

गोकुल या बरसाना हो,

विद्यापति को

कौन सूने

जब यो यो वाला गाना हो,

तुलसी, कबिरा

भूल गए

अब दोहे कहाँ रहीम के.


कला, संस्कृति

अपनी भूली

अंग्रेजी मुँह चाट रही,

सोफ़े पसरे

दालानों में

धूप में झिलँगा खाट रही,

कहाँ कबड्डी

गिल्ली डंडा

कहाँ अखाड़े भीम के.


पत्तल, दोने

रंग न उत्सव

नदी में लटकी डाल कहाँ,

आल्हा, बिरहा

नाच धोबिया

नौटंकी, करताल कहाँ,

बिखर गए हैं

कलाकार सब

बंजारों की टीम के.


लोकरंग में

डूबी संध्या

कहाँ पहाड़ी राग है

फूलों की 

घाटी में  हर दिन 

बादल फटते,आग है,

अब देवास

कहाँ सुनता है

निर्गुण गीत नईम के.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार



सभी चित्र साभार गूगल

कवि गीतकार नईम 

Friday 22 July 2022

एक देशगान -आज़ादी के अमृत महोत्सव पर

तिरंगा 


आज़ादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने पर 13 अगस्त से 15 अगस्त हर घर में तिरंगा फहराना चाहिए.भारत सरकार की मंशा है. राष्ट्र के प्रति हमारा भी पावन कर्तव्य है. वन्देमातरम 


एक देशगान -घर घर उड़े तिरंगा


आज़ादी का

वर्ष पचहत्तर

घर -घर उड़े तिरंगा.

इसके सम्मुख

कान्तिहीन है

इंद्रधनुष सतरंगा.


तेजस्वी हो

सूर्य गगन का

अँधेरा खो जाये,

सोने की

चिड़िया भारत

अब विश्व गुरु हो जाये,

बुद्ध, कृष्ण

की धरती भारत

रहे न झगड़ा, दंगा.


रामचरित की

भूमि यहीं है

इसमें रामकाथाएं,

यज्ञ, हवन की

आहुति इसमें

पढ़ती मंत्र दिशाएं

भारत माँ के

अधरों पर

बहती हैं यमुना, गंगा 



कला, संस्कृति

वेद मनोहर

तुलसी की चौपाई,

अनुसूया

सीता, गीता संग

इसमें मीराबाई,

सब धर्मों में

राष्ट्र प्रेम हो

मन हो सबका चंगा.


बोली भाषा

अनगिन संस्कृति

अनगिन रूपों वाली,

संग -संग

रहते भील, गोरखा

गढ़वाली, संथाली,

जम्मू, काशी

केरल, पटना

कामाख्या, होशंगा.


देव, प्रकृति

नारी, ऋषियों की

होती इसमें पूजा,

सबकी चिंता

करने वाला

राष्ट्र न कोई दूजा,

वृद्ध जनों का

आदर बचपन

रहे न भूखा नंगा.


चन्दन, केसर

की खुशबू हो

वन में फूल खिले,

वीर शहीदों

की गाथा को

घर घर मान मिले 

शौर्य हमारा

दावानल हो

दुश्मन बने पतंगा.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू 


Thursday 21 July 2022

एक गीतिका -महामाहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के लिए

महामाहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी 


भारत के इतिहास में आज अविस्मरणीय दिन होगा जब समाज के सबसे पिछड़े तबके की एक स्त्री भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होगी जिसे भारत में महामहिम राष्ट्रपति कहा जाता है. धन्य हैं मोदी जी जिन्होंने समाज के हर वर्ग को सम्मान दिया.

एक गीतिका


धुंध में जलते दिए की सूर्य बनने की कहानी

द्रौपदी मुर्मू तुम्हारे स्वागतम में राजधानी


भारतीय इतिहास स्त्री मान की यह स्वर्ण बेला

फिर शिलालेखों में लिखना लोक की यह सत्यबानी


एक वन की नदी कैसे बन गयी है महासागर

आदिवासी लाडली अब हो गयी दुर्गा भवानी


मौसमों का दंश वह बनफूल बन सहती रही

रास्तों में हमसफ़र थे धूप, बारिश, आग -पानी 


श्रेष्ठ भारत भूमि यह जिसमें सभी का मान है

धन्य हैं मोदी कि जिसने तोड़ दी जड़ता पुरानी


जयकृष्ण राय तुषार

एक लोकभाषा कविता -भ्रष्टाचारी सत्याग्रह में



एक सामयिक भोजपुरी कविता


भ्रष्टाचारी सत्याग्रह में

खादी चोला गान्ही जी.

का एनकर क़ानून अलग हौ

सच सच बोला गान्ही जी.


चीन -पाक से यारी एनकर

खतरनाक मंसूबा हौ

सत्ता गईल ई तब्बो समझै

भारत एनकर सूबा हौ

का ई नेता खइले हउवन

भाँग क गोला गान्ही जी.


ना एनके हौ राम से मतलब

ना कान्हा औ गोपी जी

सत्तर साल से तुष्टिकरण कै

सर पर रखलें टोपी जी

ईडी देखिके फटल हौ

इनके पेट में गोला गान्ही जी.


10 जनपथ से ईडी दफ़्तर तक

ई कवन तमाशा हौ

संविधान में सबै बराबर

ना ई फुटल बताशा हौ

कहाँ लिखल हौ कोर्ट -कचहरी

हल्ला बोला गान्हीं जी


जनता समझै सबकर करनी

समझै का -का खेला हौ

अपने अपने लाभ के ख़ातिर

जंतर मंतर मेला हौ

टोना टोटका रानी के दरबार में

होला गान्ही जी 




Sunday 17 July 2022

सम्मान -डॉ 0 शिवबाहादुर सिंह भदौरिया सम्मान 2022

डॉ शिवबाहादुर सिंह भदौरिया सम्मान 2022

कल लालगंज, रायबरेली में डॉ0 शिव बहादुर सिंह भदौरिया सम्मान 2022 ग्रहण करते हुए और काव्य पाठ करते हुए. मेरे अतिरिक्त डॉ भावना तिवारी, गणेश गंभीर, अर्जुन सिंह चाँद, दिनेश प्रभात सम्मानित किए गए. कवि गोष्ठी में आदरणीय शैलेन्द्र शर्मा, राजेंद्र तिवारी, शुभम श्रीवास्तव ओम के अतिरिक्त स्थानीय कवियों ने भी काव्य पाठ किया. बैसवारा की शाम यादगार रही. सादर

सम्मान ग्रहण करते हुए 


काव्य पाठ करते हुए 



मंच 


Thursday 14 July 2022

एक गीत -शब्द -जल में चाँदनी की छवि शिकारे की


निराला 


बैसवारे की मिट्टी में विख्यात कवि लेखक संपादक हुए हैं जिनमें निराला, रामविलास शर्मा, रसखान, नूर, मुल्ला दाऊद रमई काका, शिव मंगल सिंह सुमन, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, रूप नारायण पांडे माधुरी के संपादक आदि. इसी मिट्टी को समर्पित एक गीत 


एक गीत -शुभ्र दीपक ज्योति यह गंगा किनारे की

तैरती 
जल ज्योति
यह गंगा किनारे की.
कीर्ति
सदियों तक
रहेगी बैसवारे की.

जायसी
दाऊद यहाँ
रसखान का माधुर्य,
नूर का है
नूर इसमें
शब्द साधक सूर्य,
भूमि यह
शर्मा, सनेही
और दुलारे की.

शिव बहादुर
जी की
पुरवा बह रही इसमें,
शब्द साधक
सुमन शिव मंगल
रहे जिसमें,
स्वर्ण, चन्दन
हलद इसमें
चमक पारे की.

यह द्विवेदी
भगवती की
यज्ञशाला है,
यहीं जन्मा
एक फक्कड़
कवि निराला है.
माधुरी
माधुर्य लाई
चाँद तारे की.

वाजपेई
सुकवि रमई
और चित्रा हैं,
बैसवारी
अवस्थी
इसमें सुमित्रा हैं,
डलमऊ 
की स्वप्न छवि
सुन्दर नज़ारे की.

वतन के खातिर
यहाँ पर
पर्व है बलिदान,
बेनीमाधव जी
का इसमें
शौर्य, गौरव गान,
फूल की
यह गंध
ज्वाला भी अँगारे की.

आज भी
यह एक चन्दन
वन कथाओं का
एक अनहद
नाद इसमें
है ऋचाओं का,
शब्द जल में
चाँदनी की
छवि शिकारे की.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार
रसखान 




Thursday 7 July 2022

एक ग़ज़ल -न बादल है न पानी है

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -न बादल है न पानी है


ये बारिश का ही मौसम है कि ये झूठी कहानी है

तुम्हारे गाँव में सावन न बादल है न पानी है


अब खेतोँ में भी पहले की तरह मंज़र कहाँ कोई

कहाँ अब बाजरे पर झूलती चिड़िया सुहानी है


न बारिश में बदन भींगा न पैरों में सना कीचड़

कृत्रिमता से भरे फूलों में नकली खाद पानी है


अब सखियों के बिना झूला, न मेंहदी का नशा कोई

बिछड़कर अब कोई शिमला, कोई केरल, पिलानी है


नदी की हाँफती लहरों में कितनी दूर जाओगे

नया मल्लाह है लेकिन हरेक नौका पुरानी है


बदलते दौर में खतरा है रिश्तों का सिमट जाना

अब बच्चों की किताबों में कहाँ दादी औ नानी है

जयकृष्ण राय तुषार



चित्र साभार गूगल

Friday 1 July 2022

एक सामयिक गीत -शाम जुलाई की

भगवान जगन्नाथ जी 


एक ताज़ा गीत -शाम जुलाई की 


भीनी -सोंधी

गंध लिए है

शाम जुलाई की.

गूंज रही

आवाज़ हवा में

तीजनबाई की.


जगन्नाथ प्रभु

की मंगल

रथयात्रा जारी है,

मन मीरा

चैतन्य हो गया 

भक्ति तुम्हारी है,

तुमने कर दी

कथा अमर

प्रभु सदन कसाई की.


धूल भरे

पत्तों पर बूंदे

गंगासागर की,

लौटी सगुन

घटाएँ फिर से

सूने अम्बर की,

पटना वाली

भाभी करतीं

बात भिलाई की.


थके -थके से

पेड़ सुबह

अब देह तोड़ते हैं,

इंद्रधनुष

छाते घर से 

स्कूल छोड़ते हैं,

लुका -छिपी है

धूप -चाँह

बिजली, परछाई की.


बेला महकी

हरसिंगार

रातों को जाग रहे,

मोर नाचते

वन में

बेसुध चीतल भाग रहे,

मेहंदी से

फिर रौनक़ लौटी

हलद कलाई की.


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...