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भारत सरकार द्वारा मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली को गणतन्त्र दिवस के मौके पर पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाना केवल निदा फ़ाज़ली का सम्मान नहीं वरन यह भारतीय संस्कृति ,हमारी गंगा -जमुनी तहजीब को भी सम्मान मिला है |निदा फ़ाज़ली आधुनिक उर्दू शायरी के कबीर हैं | निदा फ़ाज़ली चाहे अदब हो या सिनेमा शायरी को कभी हल्का नहीं होने देते हैं |निदा साहब भाषा की सहजता के भी कायल हैं |हम सभी कलमकार उनको पद्मश्री दिए जाने पर उन्हें सलाम और प्रणाम करते हैं |उनका परिचय हमारे सुनहरी कलम से ब्लॉग पर मौजूद है |हम उनके सम्मान स्वरूप उनकी दो चर्चित ग़ज़लें आपके साथ साझा कर रहे हैं |
पद्मश्री निदा फ़ाज़ली जी की दो ग़ज़लें -
एक [पाकिस्तान से लौटकर लिखी गई ग़ज़ल ]
इन्सान तो हैवान यहाँ भी है वहां भी
अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहां भी
खूंख्वार दरिन्दों के फ़क़त नाम अलग हैं
शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहां भी
रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत
हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहां भी
हिन्दू भी मज़े में हैं मुसलमाँ भी मज़े में
इन्सान परेशान यहाँ भी है वहां भी
उठता है दिलो-जां से धुआं दोनों तरफ़ ही
ये मीर 'का दीवान यहाँ भी है वहां भी
दो
सफ़र में धूप तो होगी ,जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो