काशी |
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काशी |
चित्र साभार गूगल |
एक गीत-चाँदनी निहारेंगे
रंग चढ़े
मेहँदी के
मोम सी उँगलियाँ ।
धानों की
मेड़ों पर
मेघ औ बिजलियाँ ।
खुले हुए
जूड़े और
बच्चों के बस्ते,
हँसकर के
खिड़की से
सूर्य को नमस्ते,
फूलों का
माथ चूम
उड़ रहीं तितलियाँ ।
ढूँढ रहे
अर्थ सुबह
रातों के सपने,
रखकर
ताज़ा गुलाब
पत्र लिखा किसने,
आटे की
गोली सब
खा गयीं मछलियाँ ।
आहट
दीवाली की
किस्से रंगोली के,
दिन लौटे
दिए और
पान-फूल रोली के
चाँदनी
निहारेंगे छत
आँगन-गलियाँ ।
एक गीत-हिंदी रानी माँ सी
पखवाड़ा भर
पूजनीय है
बाकी दिन है दासी ।
सिंहासन अब
उसे सौंप दो
हिंदी रानी माँ सी ।
किसी राष्ट्र का
गौरव उसकी
आज़ादी है भाषा ,
संविधान के
षणयंत्रों से
हिंदी बनी तमाशा,
पढ़ती रही
ग़ुलामों वाली
भाषा दिल्ली,काशी ।
कैसा है
वह राष्ट्र न
जिसकी अपनी बोली-बानी,
टेम्स नदी में
ढूंढ रहे हम
गंगाजल सा पानी,
गढ़ो राष्ट्र की
मूरत सुंदर
सीखो संग तराशी ।
बाल्मीकि,
तुलसी,कबीर हैं
निर्मल जल की धारा,
भारत अनगिन
बोली,बानी का
है उपवन प्यारा,
अपनी संस्कृति
और सभ्यता
कभी न होगी बासी ।
जयकृष्ण राय तुषार
एक देशगान-उस भारत का अभिनन्दन है
जिसका पानी
गंगाजल है
हर पेड़ जहाँ का चन्दन है।
जिसकी झीलों में
कमल पुष्प
उस भारत का अभिनन्दन है।
जिसकी सुबहें
सोने जैसी
दिन रजत ,ताम्र संध्याएँ हैं,
जिसके हिमगिरि
नभ,चाँद सुभग
वेदों संग परीकथाएँ हैं,
जिसके सागर में
रत्न सभी
जिसका हर उपवन नन्दन है।
जहाँ राम कृष्ण
शिव तिरुपति हैं
ऋषियों मुनियों के पुण्य धाम,
जहाँ सत्य अहिंसा
परम धर्म
जहाँ गौ को माँ का दिए नाम,
जिसमें अनगिन
ऋतुएँ, मौसम
सूरज का मणिमय स्यंदन है।
जहाँ एकलव्य
उद्दालक हैं
शिबि,कर्ण, दधीचि से दानवीर,
जहाँ व्यास पाणिनि
शंकर हैं
जहाँ बाल्मीकि,तुलसी,कबीर,
जहाँ सीता,गीता
सावित्री और
अनुसूया का वन्दन है।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
भारत माता |
एक सियासी ग़ज़ल मौजूदा स्थिति पर
मुल्क को मुल्क बनाते हैं बस इन्सान मियां
बम औ बंदूक से दुनिया है परेशान मियां
नाम हमदर्दी का साज़िश है बड़े लोगों की
बन्द बोतल से निकल आये हैं शैतान मियां
औरतों,बच्चों को क़ातिल के हवाले करके
अपने ही मुल्क से धोखा किये अफ़गान मियां
ख़्वाब कश्मीर का अब देखना छोड़ो प्यारे
सन इकहत्तर को नहीं भूलना इमरान मियां
हम अहिंसा के पुजारी है मगर याद रहे
है निहत्था नहीं कोई मेरा भगवान मियां
चित्र साभार गूगल बेटियों /स्त्रियों पर लगातार लैंगिक अपराध से मन दुःखी है. कभी स्त्रियों के दुख दर्द पर मेरी एक ग़ज़ल बी. बी. सी. लंदन की न...