Monday, 8 February 2021

एक प्रेमगीत-झुकी नज़रें गुलमोहर ,मुस्कान वाले दिन

 

चित्र-साभार गूगल

एक प्रेमगीत-

चिट्ठियाँ पढ़ते हुए सुनसान वाले दिन


झुकीं नज़रें

गुलमोहर

मुस्कान वाले दिन ।

याद हैं

अब भी 

मुलेठी पान वाले दिन।


पुस्तकों के

बीच में

तस्वीर रखकर देखना,

राह चलते

आदमी पर

एक कंकड़ फेंकना,

चिट्ठियाँ

पढ़ते हुए

सुनसान वाले दिन ।


आईने को

देखकर

हँसना स्वगत रोना,

मेज पर ही

सिर टिकाकर

देर तक सोना,

याद हैं

सहगल,रफ़ी

अनजान वाले दिन ।


टूटते तारे

हवा में

चाँदनी रातें,

बिना बोले

खिड़कियाँ

करती रहीं बातें,

माँ की

चिन्ताएं, नज़र

लोबान वाले दिन ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


6 comments:

  1. तुषार जी, आपकी ये छोटी-छोटी पंक्तियों के छन्दों वाले गीत तो अद्वितीय होते हैं । एक-एक शब्द मानो मेरे मन को कोमलता से सहलाता चला गया । एक पुराना गीत याद आ गया - 'याद न जाए बीते दिनों की, जाकर न आए जो दिन, दिल क्यों बुलाए उन्हें, दिल क्यों बुलाए ?'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह"  (चर्चा अंक- 3973)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. बहुत सुंदर कोमल रचना।

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