Tuesday 2 March 2021

एक ग़ज़ल -नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल  -

नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है

ज़माने भर को मलबा और पत्थर कब दिखाती है
नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है

बहुत गुस्से जब हो तब भँवर में खींच लेती है
वगरना डूबती कश्ती,मुसाफ़िर को बचाती है

भले वह मायके में हो हरेक बर्तन में हँसती है
मेरी यादों की इक बुलबुल हमारे साथ गाती है


हवा संग धूल भी लाता है पर मैंने खुला रक्खा
इस रौशनदान में आकर मुझे चिड़िया जगाती है

हमारी ख़्वाहिशें रहती हैं बस सोने के फ्रेमों में
ये चिड़िया घर बनाने के लिए तिनका जुटाती है

तुम्हें दिल्ली पहुँचना है तो कैसे हमसफ़र होंगे
हमारी ट्रेन नौचंदी ,मुरादाबाद जाती है

अगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
सुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है

बदलते दौर में खंज़र कमर से बाँधकर रखना
भली लड़की को यह दुनिया ही बेचारी बनाती है
सुप्रसिद्ध अभिनेत्री नृत्यांगना सुधा चन्द्रन जी 


24 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को     "चाँदनी भी है सिसकती"  (चर्चा अंक-3994)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर आपकी सोच और आपका कार्य बहुत ही प्रशंसा के योग्य है |हार्दिक आभार

      Delete
  2. क्या बात है तुषार जी 👌👌👌शानदार रचना, लाजवाब शेर। हर शेर कमाल है पर ये बेमिसाल है-------
    अगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
    सुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है
    बदलते दौर में खंज़र कमर से बाँधकर रखना
    भली लड़की को यह दुनिया ही बेचारी बनाती है

    सादर शुभकामनाएँ 🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके खूबसूरत कमेंट्स और बेजोड़ साहित्यिक समझ को सादर प्रणाम।आपका रेणु जी हृदय से आभार।

      Delete
  3. ज़माने भर को मलबा और पत्थर कब दिखाती है
    नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है👌👌👌👌👌👌🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत बहुत हृदय से आभार।सादर प्रणाम

      Delete
  4. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  7. वो घर से दूर रहकर भी हरेक बर्तन में हँसती है
    मेरी यादों की इक बुलबुल हमारे साथ गाती है

    यादों को उतार लाये इस ग़ज़ल में . बहुत खूब .

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अदरणीया |यह शेर पत्नियों के मायके जाने पर पति जब किचन में बेबस होता तब वह हर बर्तन में खिलखिलाती है |

      Delete
  8. यादों की बुलबुल और बर्तन में नदी की कल्पना बहुत मौलिक प्रतीत हुई, सुंदर रचना !

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय बर्तन में पत्नियों की खनक गूंज रही है जब घर से वह बाहर या मायके में होती है तब वह पति को किचन के हर बर्तन में खिलखिलाती नज़र आती है और तब उसकी अहमियत समझ में आती है |हार्दिक आभार आपका

      Delete
  9. Replies
    1. डॉ0 शरद जी आपको सादर प्रणाम |हार्दिक आभार सहित

      Delete
  10. बहुत सुन्दर तमाम भावनाओं को समेटे हुए..खूबसूरत ग़ज़ल

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक आभार भाई संजय जी

      Delete
  11. अगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
    सुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है

    prerna wali line

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...