चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है
ज़माने भर को मलबा और पत्थर कब दिखाती है
नदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है
बहुत गुस्से जब हो तब भँवर में खींच लेती है
वगरना डूबती कश्ती,मुसाफ़िर को बचाती है
भले वह मायके में हो हरेक बर्तन में हँसती है
मेरी यादों की इक बुलबुल हमारे साथ गाती है
हवा संग धूल भी लाता है पर मैंने खुला रक्खा
इस रौशनदान में आकर मुझे चिड़िया जगाती है
हमारी ख़्वाहिशें रहती हैं बस सोने के फ्रेमों में
ये चिड़िया घर बनाने के लिए तिनका जुटाती है
तुम्हें दिल्ली पहुँचना है तो कैसे हमसफ़र होंगे
हमारी ट्रेन नौचंदी ,मुरादाबाद जाती है
अगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
सुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है
बदलते दौर में खंज़र कमर से बाँधकर रखना
भली लड़की को यह दुनिया ही बेचारी बनाती है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को "चाँदनी भी है सिसकती" (चर्चा अंक-3994) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सर आपकी सोच और आपका कार्य बहुत ही प्रशंसा के योग्य है |हार्दिक आभार
Deleteक्या बात है तुषार जी 👌👌👌शानदार रचना, लाजवाब शेर। हर शेर कमाल है पर ये बेमिसाल है-------
ReplyDeleteअगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
सुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है
बदलते दौर में खंज़र कमर से बाँधकर रखना
भली लड़की को यह दुनिया ही बेचारी बनाती है
सादर शुभकामनाएँ 🙏🙏
आपके खूबसूरत कमेंट्स और बेजोड़ साहित्यिक समझ को सादर प्रणाम।आपका रेणु जी हृदय से आभार।
Deleteज़माने भर को मलबा और पत्थर कब दिखाती है
ReplyDeleteनदी प्यासे परिंदो को तो बस पानी पिलाती है👌👌👌👌👌👌🙏🙏
आपका बहुत बहुत हृदय से आभार।सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteवो घर से दूर रहकर भी हरेक बर्तन में हँसती है
ReplyDeleteमेरी यादों की इक बुलबुल हमारे साथ गाती है
यादों को उतार लाये इस ग़ज़ल में . बहुत खूब .
हार्दिक आभार अदरणीया |यह शेर पत्नियों के मायके जाने पर पति जब किचन में बेबस होता तब वह हर बर्तन में खिलखिलाती है |
Deleteयादों की बुलबुल और बर्तन में नदी की कल्पना बहुत मौलिक प्रतीत हुई, सुंदर रचना !
ReplyDeleteआदरणीय बर्तन में पत्नियों की खनक गूंज रही है जब घर से वह बाहर या मायके में होती है तब वह पति को किचन के हर बर्तन में खिलखिलाती नज़र आती है और तब उसकी अहमियत समझ में आती है |हार्दिक आभार आपका
Deleteखूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteडॉ0 शरद जी आपको सादर प्रणाम |हार्दिक आभार सहित
Deleteबहुत सुन्दर तमाम भावनाओं को समेटे हुए..खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार भाई संजय जी
Deleteअगर हो हौसला दिल में अपाहिज मत उसे कहना
ReplyDeleteसुधा चन्द्रन जमाने को भरतनाट्यम सिखाती है
prerna wali line
हार्दिक आभार भाई
Deleteसुन्दर ग़ज़ल ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
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