Tuesday 26 March 2024

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -


कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ 
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ 

ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ 

कमा लेता हूँ इतना  मिल सके दो जून की रोटी 
मैं बटुआ देखकर बाज़ार का सामान लिखता हूँ 

कभी फूलों की घाटी से कभी दरिया से मिलता हूँ 
कभी महफ़िल में बंज़ारों की, रेगिस्तान लिखता हूँ 

कवि /शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


Friday 22 March 2024

एक होली गीत -आम कुतरते हुए सुए से

 



चित्र -गूगल से साभार 

आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ 
एक गीत -होली 

आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत  है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले 
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रुमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर 
बांचेंगे कविता शमशेर की |

कवि जयकृष्ण राय तुषार
[मेरे इस गीत को आदरणीय अरुण आदित्य द्वारा अमर उजाला में प्रकाशित किया गया था मेरे संग्रह में भी है |व्यस्ततावश नया लिखना नहीं हो पा रहा है |

चित्र -गूगल से साभार 

Saturday 2 March 2024

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता


सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता

इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता


बताता हाल मैं दरियाओं के परिंदो का

मुझे भी नाव चलाने का कुछ हुनर आता


शहर में खिड़कियाँ, पर्दे हैं आसमान कहाँ

हमारे गाँव में सूरज सुबह ही घर आता


तमाम रेत है, दरिया न पेड़ का साया

हमारी राह में कैसे कोई बशर आता


मकान रिश्ते भी पुरखों के बाँट डाले गए

खिलौना देख के बच्चा नहीं इधर आता


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


सभी चित्र साभार गूगल

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