चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
मेहँदी रचे गुलाबी हाथों ने फिर किया प्रणाम
पीले कंगन
नीलम पहने
सोने जैसी शाम |
मेहँदी रचे
गुलाबी हाथों
ने फिर किया प्रणाम |
गुलाबी हाथों
ने फिर किया प्रणाम |
डोल रहे
पीपल के पत्ते
बिना हवाओं के ,
संकोचों में
चाँद मेघ
चाँद मेघ
के घेरे बाहों के ,
निर्गुण राही
भटक गया है
भटक गया है
करके चारो धाम |
ब्रह्मकमल
सी खुशबू
फैली हुई ओसारे में ,
जाने क्या
सन्देश
छिपा है टूटे तारे में ,
स्मृतियाँ
सिरहाने बैठी
लगा रहीं हैं बाम |
पंचामृत से
मन की मूरत
कौन धो रहा है ,
अपनी ही
छाया में कोई
पेड़ सो रहा है |
एक निमन्त्रण
घर आया है
जाने किसके नाम |
नींद नहीं
आँखों में रह -
रह बादल घेर रहे ,
हरे बाँस
सीटियाँ बजाते
वंशी टेर रहे ,
बौछारों
की जद में जंगल ,
गाँव, शहर के पाम |
वंशी टेर रहे ,
बौछारों
की जद में जंगल ,
गाँव, शहर के पाम |