Sunday 30 June 2013

एक गीत -फूलों की घाटी में मौसम

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत 
फूलों की घाटी में मौसम 

फूलों की 
घाटी में मौसम की 
हथेलियाँ रंगीं खून से |
ओ सैलानी !
अब मत जाना 
प्रकृति रौदने इस जूनून से |

बे-मौसम 
फट गए झील में 
कालिदास के विरही बादल ,
नहीं आचमन 
के लायक अब 
मंदाकिनियों के पवित्र जल ,
मंगल कलश 
अमंगल लेकर 
लौटे घाटी और दून से |

देवदार से 
आच्छादित वन 
शोक गीत गाने में उलझे ,
इस रहस्यमय 
जलप्लावन के 
प्रश्न अभी भी हैं अनसुलझे ,
ओ हिमगिरि 
क्यों इतनी नफ़रत 
तुम्हेँ हो गयी मई -जून से |

ओ बदरी -केदार !
तुम्हारी शांति -भंग 
के हम हैं दोषी ,
अब बुरुंश के 
फूलों ने भी 
तोड़ दिया अपनी ख़ामोशी ,
रस्ते वही 
अगम्य हो गए 
बरसों तक जो थे प्रसून से |

इन्द्रधनुष की 
मोहक आभा 
पल-भर में ही प्रलय हो गई ,
अंतहीन 
लालच मानव की 
देख प्रकृति की भृकुटी तन गई ,
दर्द पहाड़ों का 
भी पढ़ना होगा 
अब हमको सुकून से |
चित्र -गूगल से साभार 

Sunday 2 June 2013

एक ग़ज़ल -अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे

चित्र -गूगल से साभार 
ग़ज़ल -इस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है 
इन आँखों ने देखा है अफ़साना भी नहीं है 
वो यारों मोहब्बत का दीवाना भी नहीं है 

अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे 
इस बार किसी ज़ाल में दाना भी नहीं है 

इक दिन की मुलाकात से गफ़लत में शहर है 
सम्बन्ध मेरा उससे पुराना भी नहीं है 

वो ढूंढ़ता फिरता है हरेक शै में ग़ज़ल को 
अब मीर ओ ग़ालिब का जमाना भी नहीं है 

फूलों से भरे लाँन में दीवार उठा मत 
मुझको तो तेरे सहन में आना भी नहीं है 

हर मोड़ पे वो राह बदल लेता है अपनी 
गर दोस्त नहीं है तो बेगाना भी नहीं है 

इस सुबह की आँखों में खुमारी है क्यों इतनी 
इस शहर में तो कोई मयखाना भी नहीं है 

[कुछ दिनों से व्यस्तता वश लिखना नहीं हो पा रहा है ,एक पुरानी कामचलाऊ ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ ]

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...