Thursday 23 June 2011

एक गीत-सन्दर्भ बेटियाँ

मेरी बेटी  -सौम्या राय 
यह गीत मेरी बेटी सौम्या सहित देश की सभी बेटियों को समर्पित हैं 

बेटियाँ तो भोर की 
पहली किरन सी हैं |
ये कभी थकती नहीं 
नन्हें हिरन सी हैं |

जिन्दगी में पर्व ये 
त्यौहार लाती  हैं ,
सुर्ख रँगोली बनाकर 
गीत गाती हैं ,
यज्ञ की वेदी यही 
पूजा- हवन सी हैं |

हँस पड़ें तो फूल 
रो दें झील होती हैं ,
ये अँधेरी रात में 
कंदील होती हैं ,
ये जमीनों ,आसमानों 
के मिलन सी हैं |

जब तलक होतीं 
पिता का घर सजातीं हैं ,
ये समय पे धूप 
घर में छाँव लती हैं ,
ये तपन में ग्रीष्म की 
शीतल पवन सी हैं |

Monday 13 June 2011

एक नवगीत -मानसून कब लौटेगा बंगाल से

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
ये सूखे बादल 
लगते बेहाल से |
मानसून कब 
लौटेगा बंगाल से ?

कजली रूठी ,झूले गायब 
सूने गाँव ,मोहल्ले ,
सावन -भादों इस मौसम में 
कितने हुए निठल्ले ,
सोने -चांदी के दिन 
हम कंगाल से |

आंखें पीली 
चेहरा झुलसा धान का ,
स्वाद न अच्छा लगता 
मघई पान का ,
खुशबू आती नहीं 
कँवल की ताल से |

नहीं पास से गुजरी कोई 
मेहँदी रची हथेली ,
दरपन मन की बात न बूझे 
मौसम हुआ पहेली ,
सिक्का कोई नहीं 
गिरा रूमाल से |

फूलों के होठों से सटकर 
बैठी नहीं तितलियाँ ,
बिंदिया लगती है माथे की 
धानी -हरी बिजलियाँ ,
भींगी लटें नहीं
टकरातीं गाल से |


भींगी देह हवा से सटकर 
जाने क्या बतियाती ,
चैन नहीं खूंटे से बंधकर 
कजरी गाय रम्भाती ,
अभी नया लगता है 
बछड़ा चाल से |
चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...