चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -डाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन
कोयले की आँच जैसे
हो गए दहके हुए दिन |
डाल के
फूलों हमें
फिर बाँटना महके हुए दिन |
इन हवाओं
के थपेड़े
हो गए आघात वाले ,
पीतवर्णी
हो गए पत्ते
हरी सी गाछ वाले ,
ये चुप्पियाँ
तोड़ो परिन्दों
बाँटना चहके हुए दिन |
ओ प्रिये !
तुम वायलिन पर
फिर मिलन के गीत गाना ,
पथरा गयी
सम्वेदना के
पांव में घुँघरू सजाना ,
फिर साँझ
होते लौट आयें
भोर के बहके हुए दिन |
पारदर्शी
आसमानों में
धुँए छाने लगे हैं ,
बस्तियों में
तेन्दुए वन
छोड़कर आने लगे हैं ,
खून के
छींटे न जिसमें ,