Tuesday, 15 November 2016

एक गीत -बुन रही होगी शरद की चांदनी


चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -बुन रही होगी शरद की चांदनी 

बुन रही होगी 
शरद की 
चांदनी स्वेटर गुलाबी |

दबे पांवों 
सीढ़ियाँ चढ़ 
हम छतों पर टहल आयें ,
कनखियों 
से देखकर फिर 
होठ काटें मुस्कुरायें ,
चलो ढूंढें 
फिर दराजों में 
पुराने ख़त जबाबी |

बांसुरी से 
कहाँ मुमकिन 
कठिन ऋतुओं को रिझाना ,
शाल ओढ़े 
कहीं देवानंद 
बनकर गुनगुनाना ,
नहीं होते हैं 
कहीं संगीत 
चिड़ियों के किताबी |

शून्य में 
अपलक निहारे 
टिमटिमाते हुए तारे ,
अब दिशाओं में 
नहीं माँ बोल 
मीठे हैं तुम्हारे !
कहीं अपनापन 
नहीं है 
ढूंढ आया किचन ,लाबी |


Wednesday, 9 November 2016

एक गीत -ये बनारस है



काशी /बनारस 


एक गीत -ये बनारस है 

ये बनारस है 
यहाँ रेशम न खादी है |
अष्टकमलों से 
महकती हुई वादी है |

वस्त्र तो इसके 
विचारों और मन्त्रों से बुने हैं 
इसे अपना घर स्वयं 
भगवान शंकर भी चुने हैं ,
यहाँ का कण -कण 
अघोरी या नमाजी है |

यहीं पर रैदास की वाणी 
पिघलती है 
गोद में लेकर इसे 
गंगा मचलती है 
यहाँ पूजा ,अर्चना 
प्रातः मुनादी है |

यहाँ घाटों पर 
चिलम के धुंए सजते हैं 
यहीं जीवन -मोक्ष के 
भी छंद रचते हैं 
यहाँ की हर एक सीढ़ी 
सरल -सादी है |

यह समय को रंग 
कितने रूप देता है 
यहाँ तुलसी छाँव 
कबिरा धूप देता है 
सभ्यताओं की 
यही माँ यही दादी है |

आरती गंगा जी की /सभी चित्र गूगल से साभार 

Wednesday, 19 October 2016

दो रचनाएँ -करवा चौथ -देख लेना तुम गगन का चाँद


चित्र -गूगल से साभार 

ये रचनाएँ दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ सन २०१० में इन्हें पोस्ट कर चुका हूँ 
एक आज करवा चौथ का दिन है
आज करवा चौथ
का दिन है
आज हम तुमको संवारेंगे।
देख लेना
तुम गगन का चांद
मगर हम तुमको निहारेंगे।

पहनकर
कांजीवरम का सिल्क
हाथ में मेंहदी रचा लेना,
अप्सराओं की
तरह ये रूप
आज फुरसत में सजा लेना,
धूल में
लिपटे हुए ये पांव
आज नदियों में पखारेंगे।

हम तुम्हारा
साथ देंगे उम्रभर
हमें भी मझधार में मत छोड़ना,
आज चलनी में
कनखियों देखना
और फिर ये व्रत अनोखा तोड़ना ,
है भले
पूजा तुम्हारी ये
आरती हम भी उतारेंगे।

ये सुहागिन
औरतों का व्रत
निर्जला, पति की उमर की कामना
थाल पूजा की
सजा कर कर रहीं
पार्वती शिव की सघन आराधना,
आज इनके
पुण्य के फल से
हम मृत्यु से भी नहीं हारेंगे।

दो 
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है

कभी सूरत कभी सीरत से हमको प्यार होता है
इबादत में मोहब्बत का ही इक विस्तार होता है

तुम्हीं को देखने से चांद करवा चौथ होता है
तुम्हारी इक झलक से ईद का त्यौहार होता है

हम करवा चौथ के व्रत को मुकम्मल मान लेते हैं
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है

निराजल रह के जब पति की उमर की ये दुआ मांगें
सुहागन औरतों का स्वप्न तब साकार होता है

यही वो चांद है बच्चे जिसे मामा कहा करते
हकीकत में मगर रिश्तों का भी आधार होता है

शहर के लोग उठते हैं अलार्मों की आवाजों पर
हमारे गांव में हर रोज ही जतसार होता है

हमारे गांव में कामों से कब फुरसत हमें मिलती
कभी हालीडे शहरों में कभी इतवार होता है।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार [स्वयं मैं ]


Sunday, 2 October 2016

जिलाधिकारी इलाहाबाद संजय कुमार की इलाहाबाद संग्रहालय में त्रिदिवसीय फोटो प्रदर्शनी



जिलाधिकारी इलाहाबाद -श्री संजय कुमार [I.A.S.]
संजय कुमार जिलाधिकारी इलाहाबाद की पुस्तक 

जिलाधिकारी संजय कुमार के फोटोग्राफ 
पेशेवर फोटोग्राफर्स को भी मात देते हुए -आज प्रदर्शनी का समापन 

कला और साहित्य किसी  पेशे के  मोहताज नहीं होते |यह हुनर जिसमें भी होगा उसे अभिव्यक्त करेगा ही चाहे कितनी भी मुश्किल हो |आमतौर पर प्रशासनिक सेवाओं में काम के दबाव में यह उम्मीद नहीं की जाती कि कोई जिलाधिकारी अपने साहित्य और कला को समय दे सकता है |लेकिन इस असम्भव को सम्भव कर दिखाया श्री संजय कुमार जी ने जो जिलाधिकारी इलाहाबाद के पद पर तैनात हैं |विगत तीन दिनों से इलाहाबाद संग्रहालय में उनके फोटोग्राफ की प्रदर्शनी लगी है ,आज उसका समापन है |आज मैं भी गया संयोग वश उसी समय उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त आदरणीय न्यायमूर्ति संजय मिश्र जी और न्यायमूर्ति श्री पंकज मित्तल भी आये थे |जिलाधिकारी महोदय एक  पेशेवर फोटोग्राफर की तरह उनको चित्रों की बारीकियां समझा रहे थे | संग्रहालय में निदेशक राजेश पुरोहित जी और उत्तर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता श्री सी ० बी ० यादव भी साथ में थे | संजू मिश्र ने जिलाधिकरी मोहदय की चित्रों की बुकलेट भी मुझे दिया |ये चित्र संगम से लेकर पर्वतों ,अभ्यारण्यों तक के हैं नदी ,समुद्र चिड़िया ,वन्य जीव सभी जीवंत हैं |स्वभाव से हंसमुख मिलनसार माननीय जिलाधिकारी के फोटोग्राफ किसी भी पेशेवर फोटोग्राफर को मात दे रहे हैं | संजय कुमार 2002 बैच के  I.A.S.हैं और मूलतः औरंगाबाद बिहार के निवासी हैं |

उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त को अपने फोटोग्राफ दिखाते संजय कुमार 
वन्य जीव -फोटोग्राफी संजय कुमार [I.A.S.]
पुस्तक के फ्लैप से -[ इलाहाबाद की पक्षी विविधता ]
भारतीय प्रशासनिक सेवा २००२ बैच के अधिकारी संजय कुमार को वन्य जीवन तथा उसके छायांकन में विशेष रूचि है |इन्होने देश तथा विदेशों के अनेक राष्ट्रीय उद्यानों का भ्रमण कर वन्यजीवों एवं प्रकृति का अनगिनत छायांकन किया है और बहुत कम समय में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है | इनके छायाचित्रों की कई प्रदर्शनियाँ भी आयोजित हुई हैं व् विभिन्न मंचों पर इनको छाया चित्रों के लिए पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है |वन्य जीव विषय पर इनके अनेकों आलेख विभिन्न प्रतिष्ठित पर्यावरण एवं वन्य जीव पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं |

फोटो प्रदर्शनी में संजय कुमार जिलाधिकारी इलाहाबाद 


संजय कुमार के फोटोग्राफ प्रदर्शनी से साभार 
उपरोक्त सभी फोटोग्राफ जिलाधिकारी संजय कुमार जी के हैं प्रदर्शनी से साभार 


Saturday, 1 October 2016

एक गीत -यह मुल्क हमारा सबको गले लगाता है

चित्र -गूगल से साभार 




एक गीत -यह मुल्क हमारा सबको गले लगाता है 

आना जी यह मुल्क हमारा 
सबको गले लगाता है |
दुनिया के हर सैलानी से 
इसका रिश्ता नाता है |

हिन्दू जैसे फूल कमल का 
मुस्लिम यहाँ गुलाब है ,
अपना हिन्दुस्तान 
समूची कायनात का ख़्वाब है ,
हिंसा नहीं सिखाता सूफ़ी 
गीत प्रेम के गाता है |

यह तीर्थों का देश 
पर्व सबको खुशहाली देते हैं ,
बोली -भाषा ,पंथ कई 
सब भारत माँ के बेटे हैं ,
विविध रंग वाला यह उपवन 
अनगिन फूल खिलाता है |

यह अब्दुल हमीद की माटी 
बलिदानों की गाथा है ,
भगत सिंह, आज़ाद 
तुम्हीं से इसका उन्नत माथा है ,
यह भटके- भूले लोगों को 
राह बताने आता है |

क्षमा मांग ले शत्रु अगर 
हम उसको गले लगाते हैं ,
संविधान से संकट में हम 
अपनी ताकत पाते हैं ,
अब कोई सम्राट नहीं 
जन भारत भाग्य विधाता है |


चित्र -गूगल से साभार 

Friday, 30 September 2016

एक देशगान -आज दिवस है सेनाओं के साहस के जयगान का

चित्र -गूगल से साभार 
यह समय भारतीय विदेश नीति में बदलाव का समय है इसका श्रेय हमारे कर्मठ प्रधानमन्त्री मोदी जी को जाता है जिन्होंने थकी हुई भारतीय विदेश नीति को रक्षात्मक से आक्रामक बना दिया |आज यह समय की जरूरत है |यह समय है भारतीय सेनाओं के शौर्य और अनुशासन के यशोगान का |मित्रों युद्ध कभी अच्छा नहीं होता लेकिन एकतरफा प्रेम और अधिक खतरनाक होता है |हमारे देश ने पड़ोसी देशों को छोटे भाई की निगाह से देखा लेकिन छोटे भाई ने हमेशा विश्वासघात किया | जय हिन्द जय भारत 


चित्र -गूगल से साभार 

एक देशगान -आज दिवस है सेनाओं के साहस के जयगान का 
खौल रहा है खून 
बुद्ध की धरती हिन्दुस्तान का |
हुक्का -पानी बन्द करो 
मोदी जी  पाकिस्तान का |

हमने जितनी भी कोशिश की 
सबकी सब बेकार गई ,
रावलपिंडी की मक्कारी से 
मानवता हार गई ,
चीख रहा है बच्चा -बच्चा 
आज बलूचिस्तान का |

चक्र सुदर्शन वाले हैं हम 
मत समझो गुब्बारे हैं ,
माथा ठनका तो  
दुश्मन को उसके घर में मारे हैं 
आज दिवस है सेनाओं के 
साहस के जयगान का |

खतरे में जिसका वजूद  
वह देश हमें धमकाता है ,
अब सुनो कराची कान खोल 
माँ काली भारत माता है ,
सदियों से युग देख 
रहा है साहस हिंदुस्तान का |

नहीं खिलौने देते  बच्चों को 
बन्दूक थमाते हैं  ,
एक  पड़ोसी जहाँ रोज 
आतंकी पाले जाते हैं  ,
हर प्यासे को स्वप्न बेचते 
केवल नखलिस्तान का |

चित्र -गूगल से साभार 

Thursday, 29 September 2016

एक गीत -यह ऋषियों की भूमि -तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर


चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -यह ऋषियों की भूमि
 [तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर ]
[यह गीत बहुत पहले पोस्ट किया था दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ,सादर ]

यह ऋषियों की भूमि 
यहाँ की कथा निराली है |
गंगा की जलधार यहाँ 
सोने की प्याली है |

हरिद्वार ,कनखल ,बद्री 
केदार यहीं मिलते ,
फूलों की घाटी में मोहक 
फूल यहीं खिलते ,
नीलकंठ पर्वत की 
कैसी छवि सोनाली है |

शिवजी की ससुराल 
यहीं पर मुनि की रेती है ,
दक्ष यज्ञ की कथा 
समय को शिक्षा देती है ,
मंशा देवी यहीं ,यहीं 
माँ शेरावाली है |

हर की पैड़ी जलधारों में 
दीप जलाती है ,
गंगोत्री ,यमुनोत्री 
अपने धाम बुलाती है ,
हेमकुंड है यहीं 
मसूरी और भवाली है |

पर्वत -घाटी झील 
पहाड़ी धुन में गाते हैं ,
देव -यक्ष ,गंधर्व 
इन्हीं की कथा सुनाते हैं ,
कहीं कुमाऊँ और कहीं 
हँसता गढ़वाली है |

लक्ष्मण झूला ,शिवानन्द की 
इसमें छाया है ,
शांति कुञ्ज में शांति 
यहाँ ईश्वर की माया है ,
यहीं कहीं पर कुटिया 
काली कमली वाली है |

उत्सवजीवी लोग यहाँ 
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ 
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन 
कैसी हरियाली है |

कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -गूगल से साभार 

Friday, 23 September 2016

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी



पेंटिंग्स गूगल से साभार 

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी 
गीत नहीं 
मरता है साथी 
लोकरंग में रहता है |
जैसे कल कल 
झरना बहता 
वैसे ही यह बहता है |

खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |

इसको गाती 
तीजनबाई 
भीमसेन भी गाता है ,
विद्यापति 
तुलसी ,मीरा से 
इसका रिश्ता नाता है ,
यह कबीर की 
साखी के संग 
लिए लुकाठी रहता है |

यही गीत था 
जिसे जांत के-
संग बैठ माँ गाती थी ,
इसी गीत से 
सुख -दुःख वाली 
चिट्ठी -पत्री आती थी ,
इसी गीत से 
ऋतुओं का भी 
रंग सुहाना रहता है |

सदा प्रेम के 
संग रहा पर 
युद्ध भूमि भी जीता है ,
वेदों का है 
उत्स इसी से 
यह रामायण, गीता है ,
बिना शपथ के 
बिना कसम के 
यह केवल सच कहता है |
पेंटिंग्स गूगल से साभार 

Monday, 12 September 2016

एक गीत- माहेश्वर तिवारी जी के लिए -उसका होना उज्जयिनी में कालिदास के होने जैसा


वरिष्ठ हिंदी गीत कवि -श्री माहेश्वर तिवारी 



वरिष्ठ गीत कवि  आदरणीय  माहेश्वर तिवारी जी के लिए जिन्हें बीमारी के बाद नया जीवन मिला है अब स्वस्थ होकर घर पर आ गये हैं -शतायु होने की शुभकामनाओं के साथ 

माहेश्वर तिवारी जी के लिए एक गीत -
उसका होना उज्जयिनी में कालिदास के होने जैसा 

फूलों सा 
मुरझा करके भी 
लौटा जो वह गीतकार है |
उसका हँसना 
छन्द सरीखा 
उसका लिखना चमत्कार है |

पीतल की 
नगरी में रहकर 
जिसका दिल है सोने जैसा ,
उसका होना 
उज्जयिनी में 
कालिदास के होने जैसा ,
सब ऋतुओं का 
रंग समेटे 
मेघदूत की वह पुकार है |

उसकी कलम 
कनेरों वाली 
शब्दों में जादुई छुवन है ,
कविता के 
निःस्सीम क्षितिज पर 
इन्द्रधनुष सा उसका मन है |
गीतों को भी 
वह प्यारा है 
उसे गीत से बहुत प्यार है |

सोंधी मिटटी का 
माहेश्वर 
हिम शिखरों का नहीं पुजारी ,
वह बसंत के 
फूलों जैसा 
उसका घर फूलों की क्यारी ,
कवि शतायु 
तक लिखते जाना 
जीवन गीतों का उधार है |
कनेर के फूल 

Sunday, 14 August 2016

एक गीत -राष्ट्रीय एकता के नाम -वह देश बड़ा हो जाता है

चित्र -गूगल से साभार 
चित्र -गूगल से साभार 



कोई भी देश मात्र अपनी भौगोलिक सीमाओं ,नदियों ,विशाल पर्वतों से बड़ा नहीं होता बड़ा होता है वह अपनी समरसता विविधता से बड़ा होता है सर्वधर्म समभाव से ,बड़ा होता है वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ,बड़ा होता है अपनी कला और संस्कृति से ,बड़ा होता है अपनी अच्छी परम्पराओं से ,लोकरंगों से ,बड़ा होता है सबको साथ लेकर चलने से |भारत भी ऐसा एक विविध रंगों वाला देश है जो सदियों से अतिथि प्रेमी रहा है |यहाँ विविधता है और यही हमारी सबसे बड़ी पहचान है |जय हिन्द जय भारत |
एक गीत -
वह देश बड़ा हो जाता है

सब धर्म जहाँ 
मिलकर रहते 
वह देश बड़ा हो जाता है |
जिसकी मिटटी 
में कई रंग 
समझो वह भारत माता है |

जिसके होठों पर 
हिंदी संग उर्दू 
बांग्ला गुजराती है ,
जो तमिल ,तेलगू ,
मलयालम ,
कन्नड़ में गीत सुनाती है ,
उत्तर -पूरब 
का लोकरंग 
सबकी आँखों को भाता है |

चकबस्त ,फ़िराक 
जहाँ उर्दू के 
शायर  माने जाते हैं ,
जिसमें नज़ीर 
रसखान कृष्ण की 
लीलाओं को गाते हैं ,
कुछ है इसमें 
जहाँ   मार्क टुली भी 
आकर  के बस जाता है |

यह ताना -बाना 
बना रहे सब 
मिलकर यही दुआ करना ,
इसके सांचे में 
चुन- चुनकर 
जितना सम्भव हो रंग भरना ,
हो मिलन प्रेम का 
जहाँ क्षितिज पर 
इन्दधनुष बन जाता है |


चित्र -गूगल से साभार

Saturday, 13 August 2016

एक गीत -मानवता का गान रहेगा



चित्र -गूगल से साभार 



एक गीत -मानवता का गान रहेगा 

जब तक 
भारत देश रहेगा 
मानवता का गान रहेगा |
विश्व गुरू 
कहलाने लायक 
केवल हिन्दुस्तान रहेगा |

यह भारत 
दरवेशों का है 
सन्तों और फ़कीरों का ,
मातृभूमि पर 
प्राण निछावर 
करने वाले वीरों का ,
भगतसिंह 
आज़ाद तुम्हारी 
गाथा पर अभिमान रहेगा |

ज्ञान- योग ,
अध्यात्म यहीं से 
दुनिया वाले पाते हैं ,
हम यमुना 
गंगा के तट पर 
वंशी मधुर सुनाते हैं ,
सत्य -अहिंसा का 
दुनिया में 
युग -युग तक सम्मान रहेगा |

Friday, 12 August 2016

एक कविता -थर्राती स्वप्निल संध्याएँ



चित्र -गूगल से साभार 



क गीत -थर्राती स्वप्निल संध्याएँ 

लहू -लहू 
अख़बार सुबह का 
थर्राती स्वप्निल संध्याएँ |
शहर गए 
बच्चों  के खातिर 
दुआ मांगती हैं माताएं |

राजपथों पर 
आदमखोरों के 
पंजों की छाप देखिए ,
हर घटना पर 
वही पुराना जुमला 
साहब आप देखिए |
एक नहीं अब 
कई दुःशासन क्या 
होगा कल आप बताएं ?

कला -संस्कृति 
भूल गये हैं 
दरबारों के नए सभासद ,
सूर्य -राहू के 
पंजे में है आने -
वाला हर दिन त्रासद  ,
रुमालें थक गयीं 
पोंछते अब ये 
आंसू कहाँ छिपाएं |

लिखने बैठा 
प्रेम गीत तो 
शोक गीत भर गए जेहन में ,
एक तरफ़ आंतकवाद है ,
एक तरफ़ 
अपराध वतन में ,
काशी ,मगहर 
अवध सभी चुप 
नहीं सुरक्षित अब महिलाएं |

Friday, 5 August 2016

एक देशगान -यह भारत बहुत महान है







चित्र -गूगल से साभार 

सभी देशवाशियों और सीमा पर तैनात हमारे देश के वीर जवानों के लिए 
स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाओं के साथ 
एक देशगान -यह भारत बहुत महान है 

लाल किले पर लगा तिरंगा 
भारत का अभिमान है |
युगों -युगों से मानवता का 
रक्षक हिन्दुस्तान है |

केसर ,चन्दन की खुशबू 
जिसकी मिटटी महकाती है ,
यह सोने की चिड़िया 
केवल गीत प्रेम का गाती है ,
लेकिन संकट आये तो 
यह दुनिया का सुल्तान है |

सरहद पर हर मुश्किल में 
जो सीना ताने गाते हैं ,
हम उन वीर जवानों के 
सम्मुख यह शीश झुकाते हैं ,
मातृभूमि के लिए जिए जो 
समझो वह भगवान है |

यहाँ का बच्चा वीर भगत 
बेटी झाँसी की रानी है ,
है यहाँ अतिथि के लिए स्वर्ग 
दुश्मन को काला पानी है ,
दुनिया भर में सम्मानित 
यह भारत बहुत महान है |

युद्ध लड़ें हम तो दुश्मन की 
परछाईं  डर जाती है,
म्रत्यु हमारे पास पहुँचने 
से पहले मर जाती है ,
सब धर्मों का मेल यहाँ पर 
यही हमारी जान है |
चित्र -गूगल से साभार 

Tuesday, 26 July 2016

लोकप्रिय गीत कवि माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन पर सम्मानित हुए कवि

सबसे बाएं श्री माहेश्वर तिवारी ,यश मालवीय ,ब्रज भूषण सिंह गौतम
 हरिपाल त्यागी फिर मैं जयकृष्ण राय तुषार पीछे भाई योगेन्द्र व्योम 


माहेश्वर तिवारी के रचना कर्म की षष्ठिपूर्ति और 
अस्सीवें जन्मदिन पर सम्मानित हुए पांच रचनाकार 

२२ जुलाई की शाम मुरादाबाद में बहुत ही यादगार रही अवसर था गीत /नवगीत के वरिष्ठ और लोकप्रिय हस्ताक्षर आदरणीय माहेश्वर तिवारी जी के जन्मदिन और उनके रचनाकर्म की षष्ठिपूर्ति मनाये जाने का | किसी कवि के रचनाकर्म की षष्ठिपूर्ति मनाये जाने का संभवतः यह प्रथम अवसर रहा होगा | इस सुखद अवसर पर उनके गीतों की संगीतमय प्रस्तुति उनकी धर्मपत्नी संगीत मर्मग्य श्रीमती बालसुन्दरी तिवारी जी ने किया |इसके बाद 'माहेश्वरतिवारी नवगीत सृजन सम्मान' से डॉ राजेन्द्र गौतम दिल्ली ,श्री हरिपाल त्यागी दिल्ली ,श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम मुरादाबाद यश मालवीय और मुझको [जयकृष्ण रायतुषार] को शाल सम्मान पत्र वाग्देवी की प्रतिमा और पांच हजार की राशि से सम्मानित किया गया | कार्यक्रम का अद्भुत संचालन श्री योगेन्द्र व्योम और कृष्ण कुमार नाज़ ने किया |फोटो सौजन्य श्री योगेन्द्रव्योम |कार्यक्रम की अध्यक्षताश्री डी०पी० सिंह नेकिया था| कार्यक्रम में शानदार कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया |जिया ज़मीर ने माहेश्वर जी पर एक नज़्म पोर्ट्रेट पर लिख कर भेंट किया | आयोजन को शानदार बनाया भाषा ,अक्षरा और भाई समीर तिवारी ने केक सजाकर चार केक पर चार पुस्तकों के नाम लिखे थे |हरसिंगार कोई तो हो ,सच की कोई शर्त नहीं ,नदी का अकेलापन और फूल आये हैं कनेरों में [चार नवगीत संग्रह तिवारी जी के हैं ]आयोजन अक्षरा साहित्यिक संस्था की ओर से किया गया था |कार्यक्रम में डॉ स्वदेश भटनागर ऋचा पाठक के साथ अन्य स्थानीय कवि मौजूद रहे | हम माहेश्वर जी के शतायु होने की कामना करते हैं |



माहेश्वर तिवारी के दो नवगीत संग्रह [दो ही मेरे पास उपलब्ध हैं ]

Thursday, 23 June 2016

एक गीत -मछली तो चारा खायेगी

चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -मछली तो चारा खायेगी 

कोई भी 
तालाब बदल दो 
मछली तो चारा खायेगी |
एक उबासी 
गंध हवा के 
नाम वसीयत कर जायेगी |

सत्ता का शतरंज /
बिसातों पर उजले -
काले मोहरे हैं ,
आप हमें 
अनभिज्ञ न समझें 
सबके सब परिचित चेहरे हैं ,
आप सभी 
छल -छद्म करेंगे 
जिससे की सत्ता आयेगी |

आप सदन 
कहते हैं जिसको 
वह लाक्षागृह से बदतर है ,
आज प्रजा की 
चिंता किसको 
राज सभा का दिल पत्थर है ,
राजगुरू को 
लाभ मिलेगा जिससे-
वही युक्ति भायेगी | 

Monday, 30 May 2016

नयी सदी के नवगीत -तृतीय खण्ड सम्पादक -डॉ ० ओमप्रकाश सिंह

नयी सदी के नवगीत -तृतीय खण्ड
सम्पादक -डॉ ० ओमप्रकाश सिंह 


नयी सदी के नवगीत -सम्पादक -डॉ ओमप्रकश सिंह 


जिस तरह विश्व विद्यालयों में ,पत्र -पत्रिकाओं में आलोचनाओं में एक साजिश के अंतर्गत हिंदी गीत को खारिज़ कर दिया गया लगा कि हिंदी गीत अब खत्म हो जायेगा |हालाँकि हिंदी गद्य कविता अपनी पीठ थपथपाती है लेकिन न कोई नागार्जुन बन सका न ही निराला न कविता आम जन में स्वीकार्य है |हिंदी गीत और गीत कवि भी दूध के धुले नहीं हैं उनमें भी आत्मश्लाघा मंच की भड़ैती और कुछ की अतिशय लोकप्रियता भी उन्हें लिखने पढ़ने से दूर करती गयी |लेकिन हाल में कई साझा नवगीत के संकलन आये जो गीत को बचाने या मुख्य धारा में जोड़ने के प्रयास में लगे रहे | तमाम  असहमतियों और विसंगतियों के साथ मैं उनके प्रयासों की सराहना करता हूँ |आदरणीय निर्मल शुक्ल ,भाई नचिकेता और राधेश्याम बंधू का प्रयास हाल के दिनों में सराहनीय रहा |दिनेश सिंह जीवन पर्यन्त नवगीत के लिए समर्पित रहे |हाल में एक उल्लेखनीय प्रयास आदरणीय ओमप्रकाश सिंह जी ने नयी सदी के नवगीत निकालकर किया है |मुझे तीसरा अंक प्राप्त हुआ है जिसमें कुल पन्द्रह गीत कवि शामिल किये गए हैं |इन गीत कवियों के आत्मकथ्य भी प्रकाशित हैं | अनिल कुमार ,रमेश दत्त गौतम ,उदय शंकर सिंह गौतम ,उदय ,बृजनाथ श्रीवास्तव ,राघवेन्द्र तिवारी ,शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान रमेश चन्द्र पन्त ,मधु प्रसाद ,ओम धीरज ,जय चक्रवर्ती ,अजय पाठक ,जगदीश व्योम ,यशोधरा राठौर विनय मिश्र और मैं जयकृष्ण राय तुषार |

निसंदेह अग्रज ओमप्रकाश सिंह का यह कार्य हिंदी गीत के लिए संजीवनी का कार्य करेगा |हिंदी प्रकृति की हर लय में हर कंकण -कण में समाहित है यह मजदूर को स्त्री को चरवाहे को शोक में संयोग में वियोग में उल्लास में हर जगह मनुष्य का साथी है |इसकी मोहक छाया में हमारी संस्कृति सभ्यता हमारे संस्कार तीज त्यौहार सभी पुष्पित -पल्लवित होते हैं |यह गीत कभी नहीं मरेगा जब तक हम रहेंगे हमारी धरती रहेगी तब तक हमारे होठों पर गीत भी रहेंगे ये गीत कोमल भी होंगे कठोर भी होंगे प्रेम के भी होंगे रोटी के भी होंगे |मगर हर हाल में रहेंगे गीत ही |ओमप्रकाश सिंह जी को शतायु होने की कामना के साथ |

कवि /सम्पादक डॉ ० ओमप्रकाश सिंह 

एक युद्धगान -अब धर्मयुद्ध छोड़ो अर्जुन

  श्री कृष्ण अर्जुन अब धर्मयुद्ध छोड़ो अर्जुन  केशव की गीता  कहती है  युग के जैसा व्यवहार करो. अब धर्मयुद्ध  छोड़ो अर्जुन  दुश्मन पर प्रबल प्र...