चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना
मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना
अँगीठी तेज हो जाए तो कुछ दूरी बना लेना
तुम्हारे साथ मिलकर मैं यमन का राग गाऊँगा
अभी से शाम का मंज़र ये सिंदूरी बना लेना
तवे की रोटियों का स्वाद ढाबों में नहीं मिलता
मगर जब भूख हो रोटी को तन्दूरी बना लेना
ये जंगल ,आग ,बारिश ,धूप ,आँधी से है बाबस्ता
यहाँ जब सैर करना खुद को कस्तूरी बना लेना
जिसे मैं ख़्वाब में देखा उसे वैसा ही रहने दो
तुम अपने चित्र में इस दौर की नूरी बना लेना
नशे की बोतलों को अलमारी में सजाना मत
जरूरी हो तो अपने लब को अंगूरी बना लेना
समन्दर की तहों में यदि तुम्हें भी शोध करना है
समन्दर के किनारों से अभी दूरी बना लेना
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
किस शेर की तारीफ़ करूँ..समझ नहीं आया..लाजवाब ग़ज़ल..शब्द और लय दोनों की निरंतरता की बेजोड़ अभिव्यक्ति..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका ।सादर अभिवादन
Deleteबहुत खूब । अंगूरी बना लेना ज़बरदस्त है ।
Deleteहार्दिक आभार आपका
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७-०२-२०२१) को 'नर हो न निराश करो मन को' (चर्चा अंक- ३९९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete"मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना
ReplyDeleteअँगीठी तेज हो जाए तो कुछ दूरी बना लेना"
क्या बात है !बहुत खूब,सादर नमन आपको
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत शानदार गजल
ReplyDeleteवाह
हार्दिक आभार आदरणीय |सादर प्रणाम
Deleteवाह अभिनव प्रयोग ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।