एक सामयिक गीत
फिर बनो योगेश्वर कृष्ण
फिर बनो
योगेश्वर कृष्ण
उठो हे पार्थ वीर ।
हे सूर्य वंश के
राम
उठा कोदण्ड- तीर ।
जल रहा
शरीअत की
भठ्ठी में लोकतंत्र,
अब भारत
ढूंढे विश्व-
शान्ति का नया मन्त्र,
भर गयी
राक्षसी
गन्धों से पावन समीर।
इन महाशक्तियों
के प्रतिनिधि
अन्धे, बहरे,
ये सभी
दशानन हैं
इनके नकली चेहरे,
सब अपने
अपने स्वार्थ
के लिए हैं अधीर।
इतिहास
लिखेगा कैसे
इस युग को महान,
नरभक्षी
रक्तपिपासु
घूमते तालिबान,
रावलपिंडी
दे रही
इन्हें मुग़लई खीर ।