Monday 30 August 2021

एक गीत सामयिक-फिर बनो योगेश्वर कृष्ण

 


एक सामयिक गीत

फिर बनो योगेश्वर कृष्ण


फिर बनो

योगेश्वर कृष्ण

उठो हे पार्थ वीर ।

हे सूर्य वंश के

राम

उठा कोदण्ड- तीर ।


जल रहा

शरीअत की

भठ्ठी में लोकतंत्र,

अब भारत

ढूंढे विश्व-

शान्ति का नया मन्त्र,

भर गयी

राक्षसी 

गन्धों से पावन समीर।


इन महाशक्तियों

के प्रतिनिधि

अन्धे, बहरे,

ये सभी

दशानन हैं

इनके नकली चेहरे,

सब अपने

अपने स्वार्थ

के लिए हैं अधीर।


इतिहास

लिखेगा कैसे

इस युग को महान,

नरभक्षी

रक्तपिपासु

घूमते तालिबान,

रावलपिंडी

दे रही

इन्हें मुग़लई खीर ।



Monday 23 August 2021

एक गीत-रख गया मौसम सुबह अंगार फूलों पर

 


एक गीत-रख गया मौसम सुबह अंगार फूलों पर


रख गया

मौसम 

सुबह अंगार फूलों पर ।


वक्त पर

लम्बे-घने

तरु भी हुए बौने,

रेत 

नदियों में

पियासे खड़े मृगछौने,

ताक में

अजगर

शिकारी नदी कूलों पर ।


सूर्य भी

छिपने लगा 

है बादलों के घर,

हो गए हैं

सभ्यता के

आज कातर स्वर,

घोसलों पर,

चील के 

कब्जे बबूलों पर ।


हो गयी

दुनिया तमाशा

वक्त भी बुज़दिल,

अब अहिंसा से

विजय का

पथ हुआ मुश्किल,

इस सदी में

कौन कायम

है उसूलों पर ।

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


एक देशगान-फिर शांति अचम्भित,विस्मित है

 


देशगान-फिर शांति अचंभित,विस्मित है


जागो भारत के

भरतपुत्र

सरहद पर कर दो शंखनाद ।

फिर शांति 

अचम्भित, विस्मित है

फिर मानवता के घर विषाद ।


हो गयी 

अहिंसा खण्ड-खण्ड

हे बामियान के बुद्ध देख,

स्त्री,बच्चों 

लाचारों से

अब कापुरुषों का युद्ध देख,

बन शुंग,शिवाजी

गोविन्द सिंह,रण में

दाहिर को करो याद ।


बीजिंग,लाहौर

कराची का फिर

आँख मिचौनी खेल शुरू,

घर में सोए

गद्दारों का

षणयंत्र शत्रु से मेल शुरू,

इस बार 

शत्रु का नाम मिटा

हो अंतरिक्ष तक सिंहनाद।


वीटो वाले

दुबके घर में

इनको पसंद कोलाहल है,

नेतृत्व बने

अब महाकाल

दुनिया विष उदधि हलाहल है,

असुरों पर

फेंकों अब त्रिशूल

ताण्डव हो डमरू का निनाद ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल


Wednesday 18 August 2021

एक सांकेतिक गीत-वह राम विजय ही पाएगा

 


एक सामयिक सांकेतिक गीत-वह राम विजय ही पाएगा


रावण कितना

बलशाली हो

हर युग में मारा जाएगा ।

जिसका

चरित्र उज्ज्वल होगा

वह स्वयं राम हो जाएगा ।


सिंहासन का

परित्याग किये,

अपहरण राम कब करते हैं,

केवट से

विनती करके ही

गंगा के पार उतरते हैं,

जो सबका

आँसू पोछेगा

वह राम विजय ही पाएगा ।


स्त्री,बच्चों पर

जुल्म करे जो

कायर ,नहीं प्रतापी है,

जो खड़ा 

समर्थन में इनके

वह युगों-युगों का पापी है,

मुट्ठी भर

सूरज का प्रकाश 

मीलों तक तम को खाएगा ।


वह नहीं

राष्ट्र का नायक है

जो रण में पीठ दिखाता है,

जो मरे 

राष्ट्र की रक्षा में

युग-युग तक पूजा जाता है,

तूफ़ान 

गिरा दे पेड़ भले

पर्वत से क्या टकराएगा ।


हर भाँति

प्रजा के मंगल

के खातिर होता सिंहासन है,

कुछ दूर

हमारी सरहद से

धृतराष्ट्र,शकुनि,दुःशासन है,

फिर चीरहरण

से महाशक्तियों

का मस्तक झुक जाएगा ।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

Saturday 14 August 2021

 

साहित्य मनीषी और आज़ादी के महानायक
पुरुषोत्तम दास टंडन

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान को समर्पित एक गीत


माँ भारती का गर्व है ये भाषा का विहान है

यह अवध की शान है ये हिंदी संस्थान है 


यह काव्य की उपासना है मन्दिरों की आरती

श्रेष्ठ हैं सम्मान सब, शिखर है भारत भारती

यह भाषा ,छंद,व्याकरण,विमर्श को सँवारती

परंपरा के साथ धर्म ,ज्ञान और विज्ञान है

यह अवध की शान है यह हिंदी संस्थान है ।


पुरुषोत्तम दास टण्डन जी के स्वप्न का शिखर यही

हिंदी के साथ-साथ सभी बोलियों का घर यही

भक्ति,रीतिकाल और वर्तमान स्वर यही

यह हिंदी राष्ट्र एकता की प्रेरणा महान है

यह अवध की शान है ये हिंदी संस्थान है


भाषा यह गूँजी विश्व में अटल जी का प्रयास है

इस हिंदी पुष्प गन्ध का अनन्त में सुवास है

परिचर्चा,खंडकाव्य शोधग्रन्थ का लिबास है

इस राष्ट्र के गौरव का उसकी सभ्यता का गान है

यह अवध की शान है ये हिंदी संस्थान है


कवि-जयकृष्ण राय तुषार



साहित्य मनीषी और आज़ादी के महानायक पुरुषोत्तमदास टंडन जी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ।चित्र साभार गूगल

Friday 13 August 2021

एक गीत-बाढ़ की विभीषिका पर /पानी में डूब गए पेड़ हरसिंगार के

 


एक गीत -बाढ़ की विभीषिका पर 


डूब गए

पानी में

पेड़ हरसिंगार के।

स्वप्न गिरे

औंधे मुँह

पूजा और प्यार के ।


द्वार-द्वार

गंगा और

जमुना की लहरें हैं,

बस्ती में

नावें हैं

मदद और पहरे हैं,

कजली चुप

फीके रंग

सावनी फुहार के ।


नदियों के

पेटे में

एक नया प्रयाग है,

चूल्हों में

पानी है

बुझी हुई आग है,

मछली सा

तैर रहे

आदमी कछार के ।


जिनके 

घर-बार

हुए वो भी बंजारों से,

खतरा है

नदियों के

टूटते किनारों से,

चाँदनियों 

के चेहरे

हैं बिना सिंगार के ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल


Tuesday 10 August 2021

एक आस्था का गीत लोकभाषा में राम कै बखान करै तुलसी कै बानी

 


एक आस्था का गीत-लोकभाषा में

सरयू माँ तोहरे संग राम कै कहानी


युग-युग तक उमर बढै

घटै नहीं पानी ।

सरयू माँ तोहरे संग

राम कै कहानी ।


राम,लखन सबके

तू गोद में खेलवलू 

जनकसुता सीता कै

माँग भी सजवलू

राम कै बखान

करै तुलसी कै बानी ।


रक्खे लू खबर मइया

सबही के प्यास कै

कइसे तू दृश्य देखि

जियलू बनवास कै

जोगी औ जोगन

होइ गएन राजा रानी।


पंचवटी,ऋष्यमूक

पग-पग भटकावै

भवसागर पार करै

जे दरसन पावै

प्रभु कै प्रसाद 

कन्दमूल और पानी ।


सबरी कै भक्ति भाव

देखि के अघइलें

राम जी कै हनुमत

सुग्रीव सखा भइलैं 

सोने के लंका कै

मिटल सब निशानी।


साधु,संत औ गृहस्थ

तोहरे तट आवै

आपन सुख-दुःख

तोहरे लहर से सुनावै

तोहईं से अन-धन ,वन

खेत औ किसानी ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल सरयू नदी


Saturday 7 August 2021

एक गीत-जंगल के फूल कहाँ जूड़े में खिलते हैं

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत-जंगल के फूल कहाँ जूड़े में खिलते हैं


धूप-छाँह 

बारिश 

हर मौसम में खिलते हैं ।

जंगल के

फूल कहाँ

जूड़े में मिलते हैं ।


इनको

झुलसाते हैं

आँधी, लू और आग,

उज्जयिनी

बोधगया

जाने ये क्या प्रयाग,

गर्द भरी

आँखों को

जब-तब ये मलते हैं ।


प्यास लगी

तो इनको

नदियों के घाट मिले,

गमले के

फूलों सा

कहाँ ठाट-बाट मिले,

आसपास

इनके कब

सगुन दिए जलते हैं ।


दूर प्रेम पत्रों से

वक्त की 

किताबों से,

भरे हुए

ख़्वाब सभी

शहर के गुलाबों से,

मौसम को

गंधों के 

कुर्ते ये सिलते हैं ।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Tuesday 3 August 2021

एक गीत-हरे धान के इन फूलों में

 

चित्र साभार गूगल



एक गीत-हरे धान के इन फूलों में


हरे धान के

इन फूलों में

चावल होंगे काले-गोरे ।


बादल-बिजली

धूप-छाँह में

हँसते हैं,बतियाते हैं ये,

चिकनी,भूरी

करइल,दोमट

सबमें गीत सुनाते हैं ये,

बच्चे उड़ते

पंख लगाकर

दूध -भात के देख कटोरे ।


कभी मूँगारी

हो जाते हैं कभी

जलप्रलय में बहते हैं,

पक जाने पर

रंग सुनहरे

लिए हमेशा ये रहते हैं,

इनकी आमद से

भर जाते कितने

कोठिला,कितने बोरे ।


मजदूरिन

होठों की लाली

इनसे ही कंगन औ बाली,

चिरई -चुनमुन

कजरी गैया

सबकी भरती इनसे थाली,

अक्षत,तिलक

यजन की वेदी

रस्म निभाते चावल कोरे ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...