Saturday 31 July 2021

 

चित्र साभार गूगल


एक प्रेम गीत-

खुशबुओं की शाम कोई


हमें तो

फूल,तितलियों

की याद आती रही ।

वो घर

सजाने में

हर ग़म-खुशी भुलाती रही ।


उसे मिली ही

नहीं खुशबुओं 

की शाम कोई,


बदलती

ऋतुएँ भी

देती कहाँ आराम कोई,

हमारी भूख

हमेशा ही

तिलमिलाती रही ।


वो चाँदनी है

मगर 

बादलों में घिरती रही,

हरेक 

झील,नदी 

मछलियों सी तिरती रही,

कोई भी

रस्म हो वो

रस्म को निभाती रही ।


कभी न थकती

न बुझती

है एक जलता दिया,

हुनर इस

सृष्टि ने औरत को

जाने  कितना दिया,

सियाह 

रातों को

तारों से जगमगाती रही।


वो भक्ति

प्रेम की बलिदान 

की कथाओं में है,

तमाम गीत

ग़ज़ल ,मन्त्र

औ ऋचाओं में है।

युगों-युगों से

सुरों को भी 

वो सजाती रही ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


चित्र साभार गूगल

Tuesday 27 July 2021

एक गीत -भारत की नारी

 

कृष्ण भक्त मीराबाई

एक गीत-भारत की नारी


हर युग में

भारत की नारी

शिखरों को चूमा करती है।

वह दीप शिखा

बनकर जीवन पथ

का सारा तम हरती है ।


लिखती है

गीत 'सुभद्रा' बन

रण में झाँसी की रानी है,

'भारती'सरीखी

विदुषी वह

अनुसूया जैसी दानी है,

जब भक्ति

प्रेम का भाव उठे

मीरा कब विष से डरती है ।


सावित्री

सीता माता ने

सुंदर पति धर्म निभाया है,

यशगान

नारियों का अनुपम

वेदों,ग्रन्थों ने गाया है,

सब भार

उठाये जीवों का

स्त्री ही माता धरती है।


कल्पना चावला बन

तारों में पँख

लगाकर उड़ती है,

विजयी मुद्रा में

स्वर्ण पदक लेकर

ही पीछे मुड़ती है,

इसरो में बैठे

चन्द्रयान का

स्वप्न सजाया करती है ।


गंगा,यमुना

नर्मदा और

सरयू जीवन की रेखा है,

इस रम्य सृष्टि में

हम सबने

इनकी महिमा को देखा है,

हर नदी

हरापन लाती है

खाली सागर को भरती है ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

महारानी लक्ष्मीबाई


Sunday 25 July 2021

एक गीत-महीयसी महादेवी वर्मा के लिए

महीयसी महादेवी वर्मा


एक गीत-

महीयसी महादेवी वर्मा को समर्पित


आधुनिक मीरा

महादेवी थीं

छायावाद की ।

काव्य संगम

की सरस्वती

वह इलाहाबाद की।


गीत,निबन्ध

कहानियों से

सजीं सुन्दर दीपमाला,

घन तिमिर में

चाँदनी बनकर

रहीं देती उजाला,

'सप्तपर्णा'

कृति अनूठी

काव्य के अनुवाद की ।


सदा चिन्ता

स्त्रियों के

मान और सम्मान की,

वह थीं

शुभचिंतक,निराला

पंत से दिनमान की,

दार्शनिक

चिंतन,कभी

कविता लिखीं अवसाद की।


मोर,गिल्लू 

और गौरा से

अनूठा प्यार उनका,

खग-विहग

कुछ फूल,तितली

बन गए परिवार उनका,

जिन्दगी भर

रही कोशिश

प्रकृति से संवाद की ।


कवि-जयकृष्ण राय तुषार

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...