Monday 30 May 2016

नयी सदी के नवगीत -तृतीय खण्ड सम्पादक -डॉ ० ओमप्रकाश सिंह

नयी सदी के नवगीत -तृतीय खण्ड
सम्पादक -डॉ ० ओमप्रकाश सिंह 


नयी सदी के नवगीत -सम्पादक -डॉ ओमप्रकश सिंह 


जिस तरह विश्व विद्यालयों में ,पत्र -पत्रिकाओं में आलोचनाओं में एक साजिश के अंतर्गत हिंदी गीत को खारिज़ कर दिया गया लगा कि हिंदी गीत अब खत्म हो जायेगा |हालाँकि हिंदी गद्य कविता अपनी पीठ थपथपाती है लेकिन न कोई नागार्जुन बन सका न ही निराला न कविता आम जन में स्वीकार्य है |हिंदी गीत और गीत कवि भी दूध के धुले नहीं हैं उनमें भी आत्मश्लाघा मंच की भड़ैती और कुछ की अतिशय लोकप्रियता भी उन्हें लिखने पढ़ने से दूर करती गयी |लेकिन हाल में कई साझा नवगीत के संकलन आये जो गीत को बचाने या मुख्य धारा में जोड़ने के प्रयास में लगे रहे | तमाम  असहमतियों और विसंगतियों के साथ मैं उनके प्रयासों की सराहना करता हूँ |आदरणीय निर्मल शुक्ल ,भाई नचिकेता और राधेश्याम बंधू का प्रयास हाल के दिनों में सराहनीय रहा |दिनेश सिंह जीवन पर्यन्त नवगीत के लिए समर्पित रहे |हाल में एक उल्लेखनीय प्रयास आदरणीय ओमप्रकाश सिंह जी ने नयी सदी के नवगीत निकालकर किया है |मुझे तीसरा अंक प्राप्त हुआ है जिसमें कुल पन्द्रह गीत कवि शामिल किये गए हैं |इन गीत कवियों के आत्मकथ्य भी प्रकाशित हैं | अनिल कुमार ,रमेश दत्त गौतम ,उदय शंकर सिंह गौतम ,उदय ,बृजनाथ श्रीवास्तव ,राघवेन्द्र तिवारी ,शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान रमेश चन्द्र पन्त ,मधु प्रसाद ,ओम धीरज ,जय चक्रवर्ती ,अजय पाठक ,जगदीश व्योम ,यशोधरा राठौर विनय मिश्र और मैं जयकृष्ण राय तुषार |

निसंदेह अग्रज ओमप्रकाश सिंह का यह कार्य हिंदी गीत के लिए संजीवनी का कार्य करेगा |हिंदी प्रकृति की हर लय में हर कंकण -कण में समाहित है यह मजदूर को स्त्री को चरवाहे को शोक में संयोग में वियोग में उल्लास में हर जगह मनुष्य का साथी है |इसकी मोहक छाया में हमारी संस्कृति सभ्यता हमारे संस्कार तीज त्यौहार सभी पुष्पित -पल्लवित होते हैं |यह गीत कभी नहीं मरेगा जब तक हम रहेंगे हमारी धरती रहेगी तब तक हमारे होठों पर गीत भी रहेंगे ये गीत कोमल भी होंगे कठोर भी होंगे प्रेम के भी होंगे रोटी के भी होंगे |मगर हर हाल में रहेंगे गीत ही |ओमप्रकाश सिंह जी को शतायु होने की कामना के साथ |

कवि /सम्पादक डॉ ० ओमप्रकाश सिंह 

Thursday 26 May 2016

नवगीत संग्रह 'रिश्ते बने रहें कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम -एक अवलोकन माहेश्वर तिवारी की नज़र में

समकालीन गीत संग्रह -रिश्ते बने रहें
कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम 


पुस्तक समीक्षा -रिश्ते बने रहें [नवगीत संग्रह कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम ]

कोमल गांधार में पगे नवगीत -
सुप्रसिद्ध नवगीत कवि माहेश्वर तिवारी की कलम से -

अपने किसी आत्मीय की रचना धर्मिता पर लिखना एक जोखिम भरा काम है ,इसमें अतिश्लाघा होने का खतरा बराबर बना रहता है |ऐसे क्षणों में तटस्थ भाव से मुल्यांकन एक कसौटी बन जाता है |मेरे सामने कुछ ऐसी ही कसौटी आकर खड़ी हो गयी है 'रिश्ते बने रहें 'की भूमिका के संदर्भ में |यह व्योम की दूसरी काव्य कृति है समकालीन गीत संग्रह के रूप में पहली काव्य कृति 'इस कोलाहल में 'के बाद |कोलाहल से भरे समय में भी रिश्तों को बनाये रखने की आकांक्षा एक रचनात्मक प्रयास ही कहा जायेगा |समय की आपाधापी में रिश्ते छूटते -टूटते जाते हैं ,लेकिन एक सजग संवेदनशील रचनाकार अपनी रचनात्मक तुरपाई का कौशल दिखा सकता है |हिंदी नवगीत ने अपनी आधी सदी से अधिक कालावधि की यात्रा में रिश्तों की तलाश ,जड़ों की तलाश और उन्हें बनाए रखने की कोशिश ही तो की है|

इस दृष्टि से भी रिश्ते बने रहें की रचनाएँ आमजन और कविता के बीच के क्षत -विक्षत पुल की मरम्मत कर उसे आवाजाही के लिए सुगम बनाने की रचनात्मक प्रक्रिया में एक सार्थक पहल है |मुझे विश्वास है कि हिंदी जगत व्योम के पूर्व संग्रह की तरह रिश्ते बने रहें 'की रचनाओं से नए सृजनात्मक सम्बन्ध -सेतु बनाकर भविष्य की रचनाशीलता को सम्बल प्रदान करेगा |
कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम 


[पुस्तक की भूमिका से कुछ अंश मात्र ]

पुस्तक -रिश्ते बने रहें 

कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम 

प्रकाशक -गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद 

मूल्य दो सौ रूपये 

Sunday 15 May 2016

पुस्तक समीक्षा -संवत बदले नवगीत संग्रह -कवि गणेश गम्भीर

नवगीत संग्रह -संवत बदले
कवि -गणेश गम्भीर 
पुस्तक परिचय -संवत बदले 

मई की चिलचिलाती धूप में नीम की घनी छांह सरीखा है भाई गणेश गम्भीर का नया नवगीत संग्रह 'संवत बदले 'इसे अंजुमन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है |नवगीतों की फिर से और अधिक मजबूती से वापसी हो रही है |कुछ समय पूर्व लग रहा था की यह समयातीत हो जायेगा लेकिन अपने कंटेंट की दमदारी की वजह से यह जन सामान्य की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है |यह अलग बात है इस विधा को फेसबुकिया कवियों ने जरुर नुकसान पहुँचाया है |इस संग्रह में कुल 64 गीत हैं जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं |पुस्तक का मूल्य थोड़ा अखरने वाला है जिसे दो सौ रखा गया है |भाई गणेश गम्भीर जी को इस संग्रह हेतु बधाई |

एक गीत -नहीं लिखूंगा गीत [इसी संग्रह से ]

विज्ञापन से वाक्य सरीखे 
चपल -चटपटे ,मीठे -तीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

जीवन के अमृत पल का 
अन्वेषण करना है 
समय कथा का 
शब्द -शब्द विश्लेषण करना है 
आगामी युग तक 
उसका पारेषण करना है |

धारा में बहती लाशों- सा 
जो न करे प्रतिरोध न चीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

मन पर अनुभव के निशान हैं 
तन पर स्थितियों के 
हिंसक वार हुआ करते हैं 
जब- तब स्म्रतियों के 
किन्तु विरुद्ध खड़ा होना है 
मुझको विकृतियों के |

जो अनीति का करे समर्थन 
और क्रन्तिकारी सा दीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

Friday 13 May 2016

एक कविता -प्यार अकेले हो जाने का नाम है कवि -अज्ञेय

कवि -अज्ञेय 

महान कवि -सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 

की  एक लघु कविता-

प्यार अकेले हो जाने का एक नाम है 

प्यार अकेले हो जाने का एक नाम है
यह तो बहुत लोग जानते हैं
पर प्यार 
अकेले छोड़ना भी होता है इसे
जो
वह कभी नहीं भूली
उसे
जिसे मैं कभी नहीं भूला ......नई दिल्ली 1980
[अज्ञेय संकलित कविताएँ -चयन और भूमिका नामवर सिंह प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट से 

चित्र /पेंटिंग्स गूगल से साभार 

Friday 6 May 2016

एक गीत -रामधनी की दुलहिन -कवि कैलाश गौतम



कवि -स्व० कैलाश गौतम 

एक गीत -रामधनी की दुलहिन -कवि कैलाश गौतम 


मुंह पर उजली धूप 
पीठ पर काली बदली है |
रामधनी की दुलहिन 
नदी नहाकर निकली है |

इसे देखकर जल जैसे 
लहराने लगता है ,
थाह लगाने वाला 
थाह लगाने लगता है ,
होंठो पर है हंसी 
गले चाँदी की हंसली है |

गाँव -गली अमराई से 
खुलकर बतियाती है ,
अक्षत रोली और नारियल 
रोज चढ़ाती है ,
ईख के मन में पहली -पहली 
कच्ची इमली है |

लहरों का कल -कल 
इसकी मीठी किलकारी है ,
पान की आँखों में रहती 
यह धान की क्यारी है ,
क्या कहना है परछाई का 
रोहू मछली है |

दुबली -पतली देह बीस की 
युवा किशोरी है ,
इसकी अंजुरी जैसे 
कोई खीर कटोरी है ,
रामधनी कहता है हंसकर 
कैसी पगली है |
चित्र /पेंटिंग्स गूगल से साभार 



एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...