Sunday 21 April 2024

स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

 

स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी 

हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पाठ करने वाले महान गीत कवि यश भारती सम्मान प्राप्त  माहेश्वर तिवारी को विनम्र श्रद्धांजलि 


गीतों की 

सधी हुई बांसुरी 

डूब गयी नदिया की धार में.

कौन सुबह 

हँसकर के जल देगा 

द्वार खिले फूल हरसिंगार में.


गंगा, जमुना, 

सरयू, नर्मदा 

सतुपड़ा, हिमालय नवगीत का,

छंद का हितैषी 

यायावर 

गीत लिखा मन के जगजीत का.

गीतों की

गन्ध रहे बाँटते 

रेत, नदी, धूप में कछार में.


हँस दे 

तो हँसे आसमान 

सारा घर आँगन, दालान,

सुधियों में था 

प्रयागराज 

गीतों में हरे धान -पान,

दूर किए 

सभी की उदासी 

बीते दिन छंद के श्रृंगार में.


कवि जयकृष्ण राय तुषार 

घर पर एक कवि गोष्ठी में 



कवि जयकृष्ण राय तुषार

Tuesday 26 March 2024

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -


कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ 
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ 

ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ 

कमा लेता हूँ इतना  मिल सके दो जून की रोटी 
मैं बटुआ देखकर बाज़ार का सामान लिखता हूँ 

कभी फूलों की घाटी से कभी दरिया से मिलता हूँ 
कभी महफ़िल में बंज़ारों की, रेगिस्तान लिखता हूँ 

कवि /शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


Friday 22 March 2024

एक होली गीत -आम कुतरते हुए सुए से

 



चित्र -गूगल से साभार 

आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ 
एक गीत -होली 

आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत  है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले 
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रुमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर 
बांचेंगे कविता शमशेर की |

कवि जयकृष्ण राय तुषार
[मेरे इस गीत को आदरणीय अरुण आदित्य द्वारा अमर उजाला में प्रकाशित किया गया था मेरे संग्रह में भी है |व्यस्ततावश नया लिखना नहीं हो पा रहा है |

चित्र -गूगल से साभार 

Saturday 2 March 2024

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता


सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता

इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता


बताता हाल मैं दरियाओं के परिंदो का

मुझे भी नाव चलाने का कुछ हुनर आता


शहर में खिड़कियाँ, पर्दे हैं आसमान कहाँ

हमारे गाँव में सूरज सुबह ही घर आता


तमाम रेत है, दरिया न पेड़ का साया

हमारी राह में कैसे कोई बशर आता


मकान रिश्ते भी पुरखों के बाँट डाले गए

खिलौना देख के बच्चा नहीं इधर आता


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


सभी चित्र साभार गूगल

Sunday 25 February 2024

एक गीत -जंगल कुछ दिन मौन रहेगा

चित्र साभार गूगल 



एक गीत -इस चिड़िया के उड़ जाने पर


इस चिड़िया के
उड़ जाने पर
जंगल कुछ दिन मौन रहेगा.
धूप -छाँह, बारिश
मौसम के
इतने किस्से कौन कहेगा.

दरपन -दरपन
चोंच मारती
ढके हुए परदे उघारकर,
सूर्योदय से
प्रमुदित होकर
हमें जगाती है पुकारकर,
धूल भरी आँधी में
टहनी टहनी
उड़कर कौन दहेगा.

इसी नदी में
हँसकर -धंसकर
हमने उसे नहाते देखा,
आँख मूँदकर
मंत्र बोलकर
घी का दिया जलाते देखा,
खुले हुए
जूड़े से गिरकर कब 
तक जल में फूल बहेगा.

हिरण भागते
मोर नाचते
वन का है चलचित्र सुहाना,
पथिकों से मत
मोह लगाना
जीवन यात्रा आना -जाना,
प्यार तुम्हारे
हिस्से में था
बिछुड़न प्यारे कौन सहेगा.

कवि गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 

Thursday 22 February 2024

एक होली गीत -रंग वो क्या जो छूट गया

चित्र साभार गूगल 


यह गीत 24 मार्च को अमर उजाला 
के मनोरंजन पृष्ठ पर प्रकाशित हो गया 



एक होली गीत -रंग वो क्या जो छूट गया


रंग वो क्या जो छूट गया
फिर क्या होली के माने जी.
असली रंग मिले वृंदावन
या गोकुल, बरसाने जी.

मन तो रंगे किशोरी जू से
लोकरंग से नश्वर काया,
श्याम रंग की चमक है असली
बाकी सब है उसकी माया,
यमुना में भी रंग उसी का
आओ चलें नहाने जी.

इत्र, ग़ुलाल, फूल टेसू के
निधि वन, गोकुल गलियों में
देव, सखी बनकर आते हैं
महारास, रंगरलियों में,
स्याम से मिलने चलीं गोपियाँ
सौ सौ नए बहाने जी.

कोई ब्रज रज, कोई लट्ठ मारती
कोई रंग, यमुना जल से,
कोई सम्मुख पिचकारी लेके
कोई रंग फेंके छल से,
सूरदास, हरिदास समझते
नन्द नंदन के माने जी.

कवि गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार
बरसाने की लट्ठमार होली चित्र साभार गूगल 


Wednesday 21 February 2024

एक गीत -हर पथ में पावन राग लिए

माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी 


एक गीत -बजता सुन्दर इकतारा है


शिव भक्त राम का सेवक है
वह संतों का रखवाला है.
दुनिया उसकी जय बोल रही
इस युग का मुरलीवाला है.

काशी, उज्जयिनी, महाकाल
सबकी आभा लौटाता है,
रघु कुल की प्राण प्रतिष्ठा से
भी उसका गहरा नाता है,
दुनिया का तम हर लेता है
सूरज की ऐसी ज्वाला है.

सम्मान सभी को देता है
सबके मस्तक का चंदन है,
भारत की सुप्त धमनियों में
वह लोहू का स्पंदन है,
षड़यंत्र न उसको तोड़ सके
ऐसे मनकों की माला है.

सबका साथ विकास सभी का
उसका पावन नारा है,
तूफ़ान कठिन कितना भी हो
वह मांझी कभी न हारा है,
संतुलन विश्व का साधे है
वह नीलगगन का तारा है.

जिसमें भारत की संस्कृति हो
उस देशगान को सुनना है,
भारत माता के मंदिर का
बस उसे पुजारी चुनना है,
हर पथ में पावन राग लिए
बजता सुन्दर इकतारा है.

कवि /गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


Monday 12 February 2024

एक ग़ज़ल -मौसम रातरानी हो गया

चित्र साभार गूगल 

स्मृतिशेष कथा लेखिका उषाकिरण खां 


इस ग़ज़ल के मतले का शेर कथा लेखिका उषाकिरण खां को समर्पित है

एक ग़ज़ल -मैंने दिल से कुछ कहा 

भाप में तब्दील इक दरिया का पानी हो गया
एक किस्सागो शहर का ख़ुद कहानी हो गया

खुशबुओं की शाल ओढ़े आ गया छत पर ये कौन 
चाँद निकला और मौसम रातरानी हो गया

इक खड़ाऊं रखके भी सारी अयोध्या थी ग़रीब
राम जब लौटे  नगर फिर राजधानी हो गया

राग, बंदिश, ताल, सुर, लय का पता कुछ भी न था 
मिल गयी महफ़िल तो गायक खानदानी हो गया

मन के सारे रंग भी फूलों से फागुन में खिले
बाग का मंज़र गुलाबी, पीला, धानी हो गया

मांगकर छल से भिखारी देवता भी बन गए
देने वाला कर्ण जैसा वीर दानी हो गया

इस सियासत को समझने का सलीका और है
मैंने दिल से कुछ कहा कुछ और मानी हो गया

कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


Saturday 10 February 2024

एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है


चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है 

जंगल पर कब्जा है लकड़ी चोरों का
ज़ुर्म अकेले कहाँ है आदमखोरों का

सावन में भी कहाँ घटाएँ निकली थीं
नृत्य मयूरी देखे कैसे मोरों का

वर्षो की साधना,नहीं आलाप मधुर
अब संगीत समागम केवल शोरों का 


जो उड़ान पर उसे गिराने की साजिश
दोष नहीं उड़ती पतंग की डोरों का

फल वाले  पेड़ों पर सारे पंछी हैं 
कोई देता साथ कहाँ कमजोरों का 


सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है
किस्सा पढ़कर देखो चाँद -चकोरों का

थैले में सामान फ्लैट में आता है
गया ज़माना क्विंटल वाले बोरों का

आज़ादी है संविधान की शोहरत है
दिल दिमाग़ पर कब्जा अब भी गोरों का 


कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 



Friday 9 February 2024

एक ग़ज़ल -तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिए साहब

संगम शाही स्नान चित्र साभार गूगल 


आज मौनी अमावस्या का पावन स्नान पर्व है सभी कल्पवासियों, स्नानर्थियों को शुभकामनायें.माँ गंगा, यमुना, सरस्वती सबका कल्याण करें.


एक पुरानी ग़ज़ल


फक़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिए साहब

तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिए साहब


यहाँ पर जो सुंकू है वो कहाँ है भव्य महलों में

ये संगम है यहाँ तम्बू लगाकर देखिए साहब


हथेली पर उतर आयेंगे ये संगम की लहरों से

मोहब्बत से परिंदो को बुलाकर देखिए साहब


ये गंगा फिर बहेगी तोड़कर मजबूत चट्टानें

जो कचरा आपने फेंका हटाकर देखिए साहब


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Saturday 3 February 2024

एक गीत -मन की खुशबू कहाँ पुरानी होती है

चित्र साभार गूगल 


एक गीत -मन की खुशबू कहाँ पुरानी होती है 

मन की

खुशबू कहाँ

पुरानी होती है.

चित्रों की

भी प्रेम -

कहानी होती है.


फूल नहीं

देखा

खुशबू पहचान गया,

भौँरा

जंगल, बस्ती

सबको जान गया,

फागुन की

हर शाम 

सुहानी होती है.


वंशी की

आवाज़

नदी की लहरों में,

अक्सर

चाँद रहा

मेघोँ के पहरों में,

आँखों की

भी बोली

बानी होती है.


पहली-

पहली भेंट 

युगों के किस्से हैं '

धूप -छाँह

सुख दुःख

जीवन के हिस्से हैं,

किस्मत वाली

बिटिया

रानी होती है.


कवि /गीतकार

 जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Tuesday 23 January 2024

एक ग़ज़ल -रामलला की मूर्ति मनोहर अप्रतिम है

प्रभु श्रीराम अयोध्या 


एक ग़ज़ल -

राष्ट्र धर्म फ़रवरी अंक में
प्रकाशित 


दौलत, शोहरत, ओहदा सब बेकार गया

जिसकी किस्मत वही राम दरबार गया


इफ़्तारी में शामिल हिन्दू घर बैठे

राम के दर पर असली रोज़ेदार गया


ईश्वर कैसे मिलता जीवन यात्रा में

सैलानी बनकर बद्री -केदार गया


रामलला की मूर्ति मनोहर, अप्रतिम है

इसे देखने प्रभु का हर अवतार गया 


धर्म, राष्ट्र को किया प्रतिष्ठित सम्मानित

जिस नगरी में अपना चौकीदार गया


रामकाज में जो शहीद हैं कोटि नमन

उन्हें निमंत्रण बिना तार उस पार गया 


सरयू के तट पर हर मत हर फिरक़ा था

कुछ लोगों के नफ़रत का बाज़ार गया


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

अयोध्या प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा 

Monday 22 January 2024

एक गीत -प्रभु श्रीराम

प्रभु श्रीराम 


जय श्रीराम

आज विश्व का सर्वश्रेष्ठ दिन है जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की नवनिर्मित दिव्य भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी. राम विश्व का मंगल करेंगे. यह मंदिर सनातन धर्म के लिए गौरव का विषय तो है इसमें सर्वधर्म की झलक भी है. समाज के हर वर्ग का अतुलनीय योगदान है. देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी को भी बहुत बहुत बधाई जो एक अपराजेय योद्धा हैं. माननीय मुख्यमंत्री जी समस्त संत समाज को भी बधाई और शुभकामनायें.
आप सभी का दिन राममय हो. शुभ हो.

एक गीत -शुभ धन्य आज की भोर

शुभ, धन्य आज की भोर
धन्य भारत वासी.
हो गए राममय संत, मनुज
सरयू तट वासी.

जल उठे करोड़ों दीप
स्वागतम सियाराम का,
जग साक्षी है इस प्राण -
प्रतिष्ठा पुण्य धाम का,
लौटा विजयी मुद्रा में
फिर से वनवासी.

सब धर्म, पंथ कर रहे
राम का अभिनंदन,
यह भूमि अलौकिक है
इसमें खुशबू चन्दन,
सरयू माँ का सुख
देख रही शबरी दासी.

प्रभु राम हमारी संस्कृति
के रक्षक नायक,
कण -कण समाज से प्रेम
उन्हें, सबके सुखदायक,
दर्शन को आतुर गृहस्थ
वैष्णव सन्यासी.

हे कमल नयन हर घर
शुभ मंगल गान रहे,
बस लिखूँ आपकी महिमा
जब तक प्रान रहे,
है धन्य अवध की शाम
सुबह की काशी.

गीतकार -
जयकृष्ण राय तुषार

श्रीराम 


Thursday 11 January 2024

एक ग़ज़ल -कौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं


श्रीराम जी बाल रूप में 


दैनिक हिंदुस्तान में 21 जनवरी को प्रकाशित 


एक ग़ज़ल -कौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं 

मनुज, गंधर्व,सुर, किन्नर, तपस्वी, अप्सराएं हैं
प्रभु श्रीराम के स्वागत में सब दीपक जलाए हैं

अभी भी पंचवटियों में कई मारीचि बैठे हैं
हमारे दौर में भी कैकयी और मंथराएं हैं

कोई भूखा न सोये रात में सरयू की गोदी में
हमारे सिक्ख भाई प्यार से लंगर सजाए हैं

भरत, हनुमान, शबरी, नील नल, सुग्रीव प्रमुदित हैं
चलो स्वागत करें पाहुन कई मिथिला से आए हैं

सनातन धर्म के माथे का चंदन अब नहीं छूटे 
यशस्वी हो ये भारत भूमि सबकी प्रार्थनाएं हैं

निगाहें साफ़ कर देखो तो मेरे राम सबके हैं
उन्हीं से सृष्टि का सौंदर्य वेदों की ऋचाएँ हैं

कमल से नैन, मृदु भाषा, सुकोमल देह श्यामल सी
कौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं

ग़ज़लकर /कवि
जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Tuesday 9 January 2024

एक ग़ज़ल -फूल से मिलना तो फूलों सी तबीयत रखना


चित्र साभार गूगल 


एक पुरानी ग़ज़ल


एक गज़ल -फूल से मिलना तो फूलों सी तबीयत रखना


खार से रिश्ता भले खार की सूरत रखना 

फूल से मिलना तो फूलों सी तबीयत रखना 


जब भी तकसीम किया जाता है हँसते घर को 

सीख जाते हैं ये बच्चे भी अदावत रखना 


हम किसे चूमें किसे सीने पे रखकर रोयें 

दौर -ए -ईमेल में मुमकिन है कहाँ खत रखना 


जिन्दगी बाँह में बांधा  हुआ  तावीज नहीं 

गर मिली है तो इसे जीने की कूवत  रखना 


रेशमी जुल्फ़ें ,ये ऑंखें ,ये हँसी के झरने 

किस अदाकार से सीखा ये मुसीबत रखना 


चाहता है जो तू दरिया से समन्दर होना 

अपना अस्तित्व मिटा देने की फितरत रखना 


जिसके सीने में सच्चाई के सिवा कुछ भी नहीं 

उसके होठों पे उँगलियों को कभी मत रखना 


जब उदासी में कभी दोस्त भी अच्छे न लगें 

कैद -ए -तनहाई की इस बज्म में आदत रखना  


इसको सैलाब भी रोके तो कहाँ रुकता है 

इश्क की राह, न दीवार, न ही छत रखना


[ मेरी यह ग़ज़ल नया ज्ञानोदय के ग़ज़ल महाविशेषांक  एवं हिन्दी की बेहतरीन ग़ज़लें -सम्पादक भारतीय ज्ञानपीठ में प्रकाशित है ]



चित्र -गूगल से साभार

Monday 8 January 2024

एक भक्ति गीत -त्रेता का श्रीराम हूँ मैं

प्रभु श्रीराम 


एक भक्ति गीत -श्रीराम हूँ मैं


चारो युग, चारो वेद सृष्टि

संतों का सुख अभिराम हूँ मैं

मैं सदा धर्म का रक्षक हूँ

त्रेता युग का श्रीराम हूँ मैं


इस लोक में मैं लीलाधर हूँ 

द्वापर का मुरलीवाला हूँ

सतयुग का वामन ब्राह्मण हूँ

मैं परशुराम की ज्वाला हूँ

गंगा यमुना मेरे पग में

सरयू का पावन धाम हूँ मैं


मैं बाल्मीकि के छंदों में

मैं तुलसी की चौपाई हूँ

मैं कर्म ज्ञान हूँ गीता का

मैं सीतापति रघुराई हूँ

जिस जगह निरंकुश पाप बढ़े

उस धरती पर संग्राम हूँ मैं 


सब भक्त मुझे पा जाते हैं

मैं भक्तों का उद्धारक हूँ

बस अहंकार भोजन मेरा

मैं रावण का संहारक हूँ

मैं आदि, अनंत, अजन्मा हूँ

निर्गुण भी सगुण निष्काम हूँ मैं


संतों ऋषियों की रक्षा में
मैं बल्कल में बनवासी हूँ

दुनिया के मंगल के खातिर
मैं राजा से सन्यासी हूँ

मैं ही त्रिदेव सैकड़ों सूर्य
अनगिन देवों का नाम हूँ मैं

कवि जयकृष्ण राय तुषार 


चित्र साभार गूगल 


स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...