Thursday 27 May 2021

एक गीत -हर चूल्हे में जले उदासी

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत-
हर चूल्हे में जले उदासी

रोटी ताजी
हो या बासी ।
हर चूल्हे में
जले उदासी ।

सावन गाए
मौसम झूले,
घर-आँगन में
गुड़हल फूले
यादों में हो
पटना,काशी ।

मान-प्रतिष्ठा
बढ़े देश की,
सीता-गीता
पढ़ें देश की,
सबकी बातें
लगें दुआ सी।

कुशल-क्षेम हो
सबके घर में,
शंखनाद हो
सबके स्वर में,
बैठक गाए
बारहमासी ।

डाल-डाल पर
कोयल बोले,
हरी घास पर
चिरई डोले,
जले खेत में
सत्यानाशी ।

हँसे समुन्दर
पर्वत-घाटी,
दावत में हो
चोखा बाटी,
खुशी रहे
हर घर की दासी।

जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल 


Friday 21 May 2021

एक गीत -मेड़ों पर वसन्त

 

चित्र -साभार गूगल 
एक गीत -मेड़ों पर वसन्त 

लोकरंग 
में वंशी लेकर 
गीत सुनाता है |
मेड़ों पर 
वसन्त का 
मौसम स्वप्न सजाता है |

सुबह -सुबह
उठकर आँखों 
का काजल मलता  है ,
संध्याओं को 
जुगनू बनकर 
घर -घर जलता है ,
नदियों के 
जूड़े -तितली 
के पंख सजाता है |

हल्दी के 
छापे -कोहबर
हुडदंग इसी का है ,,
फूलों की
हर शाख
फूल में रंग इसी का है ,
आँखों की 
भाषा पढ़ने का 
हुनर सिखाता है |

पीला कुर्ता 
पहने सूरज 
डूबे झीलों में ,
यादों की 
खुशबू फैली है 
कोसों -मीलों में ,
यह जीवन 
का सबसे  
अच्छा राग सुनाता है |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

Wednesday 19 May 2021

एक गीत -ऐसा मौसम फिर कब आयेगा

 

चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

बंजर में फूल की कहानी हो 
बेला महके या रातरानी हो 
नदियों में निर्मल सा पानी हो 
पानी में पारियों की रानी हो 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

आँगन में उतरा इक बादल हो 
मृगनयनी आँखों में काजल हो 
झीलों में खिला -खिला शतदल हो 
सूनेपन में वंशी -मादल हो 
बजरे पर तानसेन गायेगा 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

खेतों में बासमती धान हो 
मेड़ों की दूब पर किसान हो 
होंठो के बीच दबा पान हो 
मंदिर में यज्ञ और दान हो 
कोई तो शंख को बजाएगा 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

मेघों में नाचती बदलियाँ हो 
फूलों पर भ्रमर हों, तितलियाँ हों 
तालों में तैरती मछलियाँ हों 
झूलों के होंठ पर कजलियाँ  हों
सावन फिर चूड़ियाँ सजायेगा 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

छत तोड़ें कहकहे दालानों के 
शटर उठें बंद सब दुकानों के 
झुमके हों रत्नजड़ित कानों के 
नुक्कड़ फिर सजें चाय -पानों के 
धूपी चश्मा दिल छू जायेगा 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

संध्या को रोज दिया -बाती हो 
धूप-छाँह आती हो जाती हो 
शुभ का संदेश लिए पाती हो 
नींद सुखद स्वप्न को सजाती हो 
सूरज फिर किरन को सजायेगा 
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 



Saturday 15 May 2021

एक गीत -नदिया तो पानी के गीत सिर्फ़ गाती है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -नदिया तो पानी के गीत सिर्फ़ गाती है 


यह दुनिया 
प्यासी है 
प्यास लिए आती है |
नदिया तो 
पानी के  
गीत सिर्फ़ गाती है |

नदिया तो 
मेघों की 
आँखों का पानी है ,
कंकड़ ,पत्थर
राख और
रेत की कहानी है ,
कौन इसे 
बाँचेगा 
बिना लिखी पाती है |

खुश रहे 
बबूलों में, 
वासंती फूलों में ,
इसने कब 
फर्क किया 
पर्वत और धूलों में ,
लहरों पे 
पान -फूल 
और दिया -बाती है |

मछ्ली 
मल्लाहों की 
यह जीवन रेखा है ,
मौसम ने 
इसका 
हर रंग -रूप देखा है ,
रामकथा 
केवट 
संवाद यह सुनाती है|

तट पर 
उत्सव -तीरथ 
आरती ,शिवाले हैं ,
कटे -फटे 
कूल कहीं 
पंछी ,मृगछाले हैं ,
ज्ञानी 
अज्ञानी को 
मंत्र यह सिखाती है |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


Tuesday 11 May 2021

एक प्रेमगीत -हो न हो मौसम बदल जाये

 

चित्र -साभार गूगल 

एक प्रेम गीत -हो न हो मौसम बदल जाये 

भींगते 
इन फूल ,पत्तों में 
चाँदनी  हँसकर फिसल जाये |
थाम लूँ 
मैं दौड़कर उसको 
हो न हो मौसम बदल जाये |

यह उदासी 
तोड़ दे शायद 
घास पर बैठी हुई तितली ,
हमें तिरना 
भी सिखा देगी 
धार में बहती हुई मछली ,
होंठ से छूना  
मेरी वंशी   
प्रेम भींगा स्वर निकल जाये |

पी रहे हैं
हम हवा में विष 
ख़ुशबुओं का द्वार खुल जाये ,
फिर जवाबी 
ख़त मिले कोई 
अजनबी का प्यार मिल जाये ,
माथ  पर 
बालार्क सी टिकुली 
गहन अँधेरा निगल जाये |

फिर सिन्दूरी 
मेघ संध्या के 
इंद्रधनु की याद में खोये ,
अंकुरित 
होने लगे सपने 
जो किसी ने नयन में बोये ,
हमें सागर 
तट मिले मोती 
ज्वार सा यह मन उछल जाये |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
   
चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -गमले पर मत उछलो भाई

 

चित्र -साभार गूगल भारत माता 

एक गीत -गमले पर मत उछलो भाई 

मिल जुल  कर सब हाथ बढ़ाओ 
इस भारत को बदलो भाई |
सूरज उगने में देरी हो 
तो मशाल ले निकलो भाई |

भारत अब लाचार नहीं हो 
सिस्टम अब बीमार नहीं हो 
कहीं कोई व्यभिचार नहीं हो  
घर घर हाहाकार नहीं हो 
टीवी पर विज्ञापन केवल 
नेता का किरदार नहीं हो 
संकट में जब देश फँसा हो 
तब विपक्ष गद्दार नहीं हो 
आज़ादी है लोकतन्त्र है 
अब क्या दिक्कत सम्हलो भाई |

नकली दावा दूध में पानी 
बदले कितने राजा रानी 
बिकती हवा सिलिन्डर चोरी 
नर्सिंग होम की सीनाजोरी 
प्यास लगी तब कुआँ खोजते 
ढूँढ रहे सब लोटा डोरी 
कुछ तो हो ईमान देश में 
कौन बने भगवान देश में 
गीता ,ग्रंथ कुरान ,बाइबिल 
सिर पर अपने रख लो भाई |

जनता भी कुछ सुधरे थोड़ा 
बीच सड़क पर बिगड़ा  घोड़ा 
वोटर का ईमान बिका है 
लोकतन्त्र यह मगर टिका है 
स्वार्थ लोभ की राजनीति में 
गोमुख वाली गंगा छोड़ो 
सरहद हो या घर के अंदर
हर दुश्मन की बाँह मरोड़ो
पीपल ,बरगद ,नीम लगाओ 
गमले पर मत उछलो भाई |

सेना से अनुशासन सीखो 
संस्कार योगासन सीखो 
राजनीति में कदम रखो तो 
बोली ,बानी ,भाषन सीखो 
सोने की चिड़िया गूँगी है
जंगल उसका होंठ सी गया
कौन खा गया दाना उसका
उसका पानी कौन पी गया 
खुद भी बचो बचाओ सबको 
कोरोना से निकलो भाई |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल पीपल वृक्ष 


Sunday 9 May 2021

एक गीत -माँ तुम गंगाजल होती हो

 

मेरी पत्नी के स्मृतिशेष पिता और माँ 
मेरी माँ   की कोई तस्वीर  नहीं है 
एक पुराना गीत मेरे प्रथम संग्रह सदी को सुन रहा हूँ मैं 'से 

मातृदिवस पर  सभी माताओं को समर्पित शब्द पुष्प 


माँ तुम गंगाजल होती हो 
मेरी ही यादों में खोयी 
अक्सर तुम पागल होती हो 
माँ तुम गंगाजल होती हो 

जीवन भर दुख के पहाड़ पर 
तुम पीती आँसू के सागर 
फिर भी महकाती फूलों सा 
मन का सूना संवत्सर 
जब -जब हम गति लय से भटकें 
तब -तब तुम मादल होती हो 

व्रत -उत्सव मेले की गणना 
कभी न तुम भूला करती हो 
सम्बन्धों की डोर पकड़कर 
आजीवन झूला करती हो 
तुम कार्तिक की धुली -
चाँदनी से ज्यादा निर्मल होती हो 

पल -पल जगती सी आँखों में 
मेरी खातिर स्वप्न सजाती 
अपनी उमर हमें देने को 
मंदिर में घंटियाँ बजाती 
जब -जब ये आँखें धुंधलाती 
तब -तब तुम काजल होती हो 

हम तो नहीं भागीरथ जैसे 
कैसे  सिर से कर्ज उतारें 
तुम तो खुद ही गंगाजल हो 
तुझको हम किस जल से तारें 
तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे 
तुम तो स्वयं कमल होती हो 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


Saturday 8 May 2021

एक गीत - फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी नग्न शाखें

 

चित्र -साभार गूगल 




एक गीत -
फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी  नग्न शाखें 

फिर  गुलाबी 
फूल ,कलियों से
लदेंगी  नग्न शाखें   |
पर हमारे 
बीच होंगी नहीं 
परिचित कई आँखें |

यह अराजक 
समय ,मौसम 
भूल जाएगा जमाना ,
फिर किताबों में 
पढ़ेंगे गाँव का 
मंज़र  सुहाना ,
देखकर 
हम मौन होंगे 
तितलियों की कटी पाँखेँ |

झील में 
खिलते कंवल,  
मछली नदी में जाल होंगे ,
नहीं होगा 
स्वर तुम्हारा 
साज सब करताल होंगे ,
गाल पर रूमाल 
होंगे 
डबडबाई हुई आँखें |

ज्ञान और विज्ञान 
का सब दम्भ 
कैसे है पराजित ,
प्रकृति के 
उपहास का यह 
लग रहा  परिणाम किंचित ,
अब घरों की 
खिड़कियाँ हैं 
जेल की जैसे सलाखें |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


Thursday 6 May 2021

एक गीत -बंजारा टीले पर बाँसुरी बजाए

 

चित्र -साभार गूगल 

ईश्वर आपको पूरे मुल्क को डर ,भय और विषाद से मुक्त करे |देश का मौसम फिर से पहले जैसा हो |अनहोनी पर विराम लगे सबके घर शुभ और मंगल हो |सादर 

एक गीत -बंजारा टीले पर बाँसुरी बजाए 

बंजारा 
टीले पर 
बाँसुरी बजाए |
विद्यापति 
सूरदास 
मीरा बन गाए |

कच्ची हल्दी 
उबटन 
मेंहदी का संग रहे ,
पेड़ों पर 
पात हरे 
फूलों में रंग रहे ,
पचमढ़ी 
शिमला 
फिर यादों में आए |

मौसम फिर 
पहले सा 
मदभरी हवाएँ हों ,
कुछ सच्ची 
कुछ झूठी 
प्रेम की कथाएँ हों ,
अधखुली 
किवाड़ 
मधुर चूड़ी खनकाए |

हुक्का -पानी 
खैनी 
चाँदी के पानदान ,
कोहबर के 
छापे हों 
खपरैलों के मकान ,
औचक ही 
बैठक में 
अतिथि कोई आए |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

एक गीत -इन्द्रधनुओं को सजा दो फिर दिशाओं में

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -

इन्द्रधनुओं को सजा दो फिर दिशाओं में 


जिसे देखा 
सुना था 
अब है कथाओं में |
चाँदनी 
सूरज कोई 
तारा चिताओं में |

चौंकता हूँ 
सुबह ज़िंदा 
देखकर ख़ुद को ,
अब नहीं 
इससे भयावह 
दृश्य कोई हो ,
कब हँसेगा 
वक्त फिर 
जलसे ,सभाओं में |

प्रकृति मत 
रूठो सुहाने 
स्वप्न दिखलाओ ,
शुभ करो 
अब यह 
मरण का गीत मत गाओ ,
वेदपाठी 
ज़िंदगी 
ढूंढो ऋचाओं में |

लौट  आओ 
ओ गुलाबी 
गन्ध वाले  दिन ,
मौसमों से 
हरे पत्ते 
डर रहे पल -छिन ,
इन्द्रधनुओं को 
सजा दो 
फिर दिशाओं में |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

एक गीत -वैभवशाली देश हमारा क्यों इतना बदहाल है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -वैभवशाली देश हमारा क्यों इतना बदहाल है 

वैभवशाली 
देश हमारा 
क्यों इतना बदहाल है |
रामकृष्ण 
टैगोर को भूला 
हिंसा में बंगाल है |

अब ज़्यादा 
उम्मीद न करना 
बच्चों उजली खादी से ,
हिन्दू संस्कृति 
ख़तरे में है 
डायन की आज़ादी से ,
गंगासागर 
और हाबड़ा 
ब्रिज पर फिर बेताल है |

नहीं माब -
लिंचिंग का हल्ला 
चुप क्यों है हर चीनी दल्ला ,
अवसरवादी 
निर्वचनों से 
संविधान हो गया निठल्ला ,
धमकी 
और पैसों पर बिकता 
लोकतन्त्र कंगाल है |

सिस्टम वही 
गुलामी वाला 
मंथर गति से चलता है ,
फाइल पर 
फाइल बैठाकर 
जन मानस को छलता है ,
आगजनी है 
तोड़फोड़ है 
सुनियोजित हड़ताल है |


वृक्ष पी गए 
हवा नदी भी 
अपना जल पी जाती है ,
खुशबू वाले 
फूलों पर भी 
अब तितली मर जाती है ,
काजल वाली 
मृगनयनी 
आँखों में टूटा बाल है |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जी 


Wednesday 5 May 2021

एक गीत -नीलकंठ कौन बने   

 


चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -नीलकंठ कौन बने 
नीलकंठ 
कौन बने 
विषभरी हवाएँ  हैं |

भोर की 
किरन पीली 
संध्यायेँ  तेजहीन ,
औषधियों ,
फूलों की 
गन्ध खा गई जमीन ,
जंगल में 
नरभक्षी 
बाघ की कथाएँ हैं |

दरपन पे 
धूल जमी 
दिन का श्रृंगार गया ,
मौसम 
ज्वर बाँट रहा 
सगुन दिवस हार गया ,
कौन पढ़े 
कौन सुने 
बोझिल कविताएं हैं |

गरजो 
बरसो मेघों 
विपदाएं बह जाएँ ,
जीवन के 
राग लिए 
सुख के क्षण रह जाएँ ,
हवन कुण्ड 
धुआँ भरे 
सीली समिधाएँ हैं |

कवि-जयकृष्ण राय तुषार 



चित्र -साभार गूगल 

Monday 3 May 2021

एक गीत -नदी के तट पर पियासे हिरन मरते हैं


चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -
नदी के तट पर पियासे हिरन मरते हैं 

हरे पत्ते 
शाख से 
अब फूल झरते हैं |
नदी के 
तट पर 
पियासे हिरन मरते हैं |

अब उजाले 
हो गए हैं 
क़ैदखानों  से ,
चीखता है 
सिर्फ़ 
सन्नाटा मकानों से ,
नींद में 
अब आँख से 
भी स्वप्न डरते हैं |

मौन हैं सारे 
फरेबी 
सत्यवादी दल ,
क्या पता 
बहुरूपिए 
मौसम करेंगे छल ,
फेफड़ों में 
हम कृत्रिम 
सी साँस भरते हैं |

खाँसती है 
मास्क पहने 
चाँदनी  पीली ,
आग कैसे 
जले माचिस 
हो गयी गीली ,
ये बुझे 
चूल्हे हवा में 
धुएँ भरते हैं |

वायदे 
दिन के अधूरे 
बहस जारी है ,
आदमीयत 
पोल पर 
रस्सी -मदारी है ,
इन्हीं सँकरे 
रास्तों  से 
हम गुजरते हैं |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...