चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल- बुजुर्गों से अदब के साथ मिलना चाहिए हमको हरे पत्ते,महकते फूल ये मौसम सुहाना है यहाँ खुशबू के होठों पर तितलियों का ठिकाना है मैं उसके हाथ से तस्वीर उसकी छीन लाया हूँ सलीके से उसे अपनी किताबों में छिपाना है हरे नाखून,आँखें झील सी चंदन का टीका है सुना कल से उसे मेरे सहन से आना-जाना है वो मिलना चाहती मुझसे मुझे भी फ़िक्र है उसकी न मिलने की क़सम उसकी,उसे भी तो निभाना है तुम्हारी हो कोई मन्नत तो धागा बाँध कर जाना दुआ देता ये पीपल और ये बरगद पुराना है कभी दहलीज़ से बाहर निकलने पर थी पाबन्दी बदलते दौर में अब बेटियों का ही ज़माना है बुज़ुर्गों से अदब के साथ मिलना चाहिए हमको हमें भी एक दिन चलकर इसी रस्ते पे आना है लहर ढूँढो नहीं यमुना की तुम सरयू के पानी में
तुम अपनी बाँसुरी रख दो ये ठुमरी का घराना है जो छाता लेके चलता था उसे अब धूप की चाहत उसे सावन के मौसम में कोई कपड़ा सुखाना है ये नाटक खूबसूरत है इसे बस देखिए साहब हमें मालूम है कि कब हमें पर्दा गिराना है कवि/शायर - जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल पद्मश्री गिरिजा देवी |
वो मिलना चाहती मुझसे मुझे भी फ़िक्र है उसकी
ReplyDeleteन मिलने की क़सम उसकी,उसे भी तो निभाना है।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
आपको सादर अभिवादन |हार्दिक आभार
Deleteवाह ! वाह ! वाह ! तुषार जी, आपकी इस ग़ज़ल को पढ़कर दिल से बेसाख़्ता यही निकलेगा ।
ReplyDeleteआपका निरंतर उत्साहवर्धन करते रहने के लिए आभार |आपको असीम और अशेष शुभकमनाएं
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक गीतिका।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक http://motriael.com/9a75
ReplyDelete"ये नाटक खूबसूरत है इसे बस देखिए साहब
ReplyDeleteहमें मालूम है कि कब हमें पर्दा गिराना है"
वाह !! बहुत खूब,सादर नमन आपको
आपका हृदय से आभार आदरणीया
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