Tuesday 31 January 2023

डॉ सदानंदप्रसाद गुप्त को राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

महामहिम राज्यपाल महोदय से सम्मान ग्रहण
करते हुए डॉ सदानंदप्रसाद गुप्त जी पूर्व-
कार्यकारी अध्यक्ष
 उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 


डॉ 0 सदानंदप्रसाद गुप्त को राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

सम्मान का क्षण महामहिम राज्यपाल, संस्कृति मंत्री
मध्यप्रदेश और प्रोफ़ेसर सदानंदप्रसाद गुप्त जी 



मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा दिया जानेवाला प्रतिष्ठित राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान 2021 इस वर्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डॉ सदानंदप्रसाद गुप्त जी को महामहिम राज्यपाल मध्य प्रदेश के द्वारा प्रदान किया गया. इस सम्मान की राशि दो लाख रूपये है. प्रोफ़ेसर गुप्त गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक से सेवानिवृत्त हुए थे और संत साहित्य के मर्मज्ञ हैं. मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री श्रीमती उषा ठाकुर जी  भी इस अवसर पर उपस्थित थीं. डॉ सदानंदप्रसाद गुप्त जी का जन्म झारखण्ड राज्य में तत्कालीन बिहार में हुआ था किन्तु वह स्थायी रूप से गोरखपुर में बस गए.

इस सम्मान का अलंकरण समारोह 26 जनवरी की सायं 7-30 बजे रवीन्द्र भवन के मुक्ता काश मंच भोपाल में आयोजित किया गया. डॉ सदानंदप्रसाद जी के सम्मानित होने पर राष्ट्र के हिन्दी प्रेमियों को गर्व हैं. हार्दिक बधाई और शुभकामनायें सर

महामहिम राज्यपाल मध्य प्रदेश से सम्मान ग्रहण करते हुए
डॉ सदानंदप्रसाद गुप्त जी 


Wednesday 25 January 2023

एक देशगान -आज़ादी के दिन वसंत है



एक देशगान -आज़ादी के दिन वसंत है 

सबसे ऊँचा रहे तिरंगा
अपना नीलगगन में.
वन्देमातरम, राष्ट्र गान
की महिमा रहे वतन में.

आम्र कुंज की मंजरियों से
सारा उपवन महके,
डाल -डाल पर फिर से
सोने वाली चिड़िया चहके,
आज़ादी के दिन वसंत है
खुशबू रहे चमन में.

वतनपरस्ती जन -जन में हो
देशभक्त हो माली,
सरहद पर अपनी सेना की 
गाथा गौरवशाली,
फर्ज़ निभाते बारिश, आंधी
ओले, ग्रीष्म तपन में.

शस्त्र -शास्त्र से रहे सुसज्जित 
अपनी भारत माता,
गंगा -यमुना और हिमालय
सरयू माँ से नाता,
यह ऋषियों का ज्ञान पिटारा
वैदिक ऋचा पवन में.

दिल्ली का सिंहासन उसका
जो पी-ओ -के लाये,
उसे न देना जो दुश्मन को
घर का भेद बताये,
आज़ादी के दीवानों की
आभा रहे वतन में.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 

एक पुराना गीत -अबकी शाखों पर वसंत तुम

सर्वप्रथम मेरा यह गीत नवनीत में आदरणीय श्री विश्वनाथ सचदेव जी ने प्रकाशित किया था |फिर मेरे गीत संग्रह में प्रकाशित हुआ |विगत वर्ष फरवरी अंक में इंदौर से प्रकाशित वीणा में यह प्रकाशित है | 

 

चित्र -साभार गूगल 


अबकी शाखों पर वसंत तुम 

एक गीत -

अबकी शाखों पर 

वसंत तुम 

फूल नहीं रोटियाँ खिलाना |

युगों -युगों से 

प्यासे होठों को 

अपना मकरंद पिलाना |


धूसर मिट्टी की 

महिमा पर 

कालजयी कविताएं लिखना ,

राजभवन 

जाने से पहले

होरी के आँगन में दिखना ,


सूखी टहनी 

पीले पत्तों पर 

मत अपना रौब जमाना |


जंगल ,खेतों 

और पठारों को 

मोहक हरियाली देना ,

बच्चों को 

अनकही कहानी 

फूल -तितलियों वाली देना ,

चिंगारी -लू 

लपटों वाला 

मौसम अपने  साथ न लाना |


सुनो दिहाड़ी 

मज़दूरिन को 

फूलों के गुलदस्ते देना ,

बंद गली 

फिर राह न रोके 

खुली सड़क चौरस्ते देना ,

साँझ ढले 

स्लम की देहरी पर 

उम्मीदों के दिए जलाना |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -गूगल से साभार 

Tuesday 17 January 2023

एक पुरानी ग़ज़ल -नए घर में

गंगा मैया 


एक ग़ज़ल -नए घर में


नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो

दिया बनकर वहीं से माँ हमेशा रौशनी देगी


ये सूखी घास अपने लॉन की काटो न तुम भाई

पिता की याद आएगी तो ये फिर से नमी देगी


फ़रक बेटे औ बेटी में है बस महसूस करने का

वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चाँदनी देगी


ये माँ से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो

ये गंगा है यही दुनिया को फिर से ज़िन्दगी देगी

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Sunday 15 January 2023

एक आस्था का गीत -संगम की जलधार



एक आस्था का गीत -

संगम की जलधार

गीतकार -जयकृष्ण राय तुषार

गायक स्वर

श्री रत्नेश दूबे

डॉ 0 अंकिता चतुर्वेदी

एवं साथी स्वर

चित्र साभार गूगल 


एक प्रेम गीत -इत्र से भींगे हुए रुमाल वाले दिन

चित्र साभार गूगल 


एक प्रेम गीत

इत्र से भींगे

हुए रुमाल

वाले दिन .

लौट आ

ओ आरती के

थाल वाले दिन.


तुम्हें देखा

याद आए

खुशबुओं के ख़त,

चाँदनी रातें

सुहानी

और सूनी छत,

राग में

डूबे हुए

करताल वाले दिन.


झील में

गौरांग परियों की

कथाओं की,

मंदिरों के

शिखर मंगल -

ध्वनि, ऋचाओं की,

स्वप्न में

कश्मीर, केसर

शाल वाले दिन.


देर तक

एकांत में

भूले कहाँ वो दिन,

दरपनों में

मुस्कुराहट

और जूड़े पिन,

लाल, पीले

बैगनी से

गाल वाले दिन.


कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


कुम्भ गीत -प्रयागराज की,संगम की महिमा



यह प्रयाग है

गीत रचना -जयकृष्ण राय तुषार

गायक स्वर

आकाशवाणी प्रयागराज के कलाकार ऑडिओ

वीडियो निर्माण दिव्यांश द्विवेदी कानपुर

संगीत -श्री लोकेश शुक्ल कार्यक्रम प्रमुख आकाशवाणी

प्रयागराज

यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है 

प्रयाग में [इलाहाबाद में धरती का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण अध्यात्मिक मेला लगता है चाहे वह नियमित माघ मेला हो अर्धकुम्भ या फिर बारह वर्षो बाद लगने वाला महाकुम्भ हो |इस गीत की रचना मैंने २००१ के महाकुम्भ में किया था और इसे जुना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज को भेंट किया था |इसे आकाशवाणी इलाहाबाद द्वारा संगीत वद्ध किया गया है |आप सभी के लिए सादर 

यह प्रयाग है

यहां धर्म की ध्वजा निकलती है

यमुना आकर यहीं

बहन गंगा से मिलती है।


संगम की यह रेत

साधुओं, सिद्ध, फकीरों की

यह प्रयोग की भूमि,

नहीं ये महज लकीरों की

इसके पीछे राजा चलता

रानी चलती है।


महाकुम्भ का योग

यहां वर्षों पर बनता है

गंगा केवल नदी नहीं

यह सृष्टि नियंता है

यमुना जल में, सरस्वती

वाणी में मिलती है।


यहां कुमारिल भट्ट

हर्ष का वर्णन मिलता है

अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का

दीपक जलता है

घोर पाप की यहीं

पुण्य में शक्ल बदलती है।


रचे-बसे हनुमान

यहां जन-जन के प्राणों में

नागवासुकी का भी वर्णन

मिले पुराणों में

यहां शंख को स्वर

संतों को ऊर्जा मिलती है।


यहां अलोपी, झूंसी,

भैरव, ललिता माता हैं

मां कल्याणी भी भक्तों की

भाग्य विधाता हैं

मनकामेश्वर मन की

सुप्त कमलिनी खिलती है।


स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से

अलख, जगाते हैं

लौकिक प्राणी यही

अलौकिक दर्शन पाते हैं

कल्पवास में यहां

ब्रह्म की छाया मिलती है।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

Wednesday 11 January 2023

एक गीत -तुम हँसोगी धुंध से तब सूर्य निकलेगा

चित्र साभार गूगल 


दैनिक जागरण पुनर्नवा में प्रकाशित दिनांक 20 फ़रवरी 2023

एक गीत -कौन कहता है कि मौसम नहीं बदलेगा

कौन कहता है

कि मौसम

नहीं बदलेगा.

तुम हँसोगी

धुंध से तब

सूर्य निकलेगा.


सिर झुकाये

फूल, झीलें

मौन दिखती हैँ,

तितलियाँ अब

कहाँ कोई

पत्र लिखतीं हैँ,

ओस पर

अब कौन नंगे

पाँव टहलेगा.


गाँव, घाटी

खेत फिर से

खिलखिलाएंगे,

फिर यही

सोये परिंदे

गीत गाएंगे,

फागुनी ऋतु

में भ्रमर का

झुण्ड उछलेगा.


हवा ठिठुरी

खुशबुओं का

द्वार खोलेगी,

सांध्य बेला

दर्पनों से

राग बोलेगी,

जलेगी

समिधा

नहीं फिर धुंआ निकलेगा.


इन्द्र धनु से

स्वप्न होंगे

अभी जो सादा,

पूर्ण होगा

जो अधूरा

रह गया वादा,

प्रेम ही

पाषाण का

हर दर्प कुचलेगा.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...