Sunday 7 February 2021

एक गीत-नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ

 

बुरांस

एक गीत-

नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ


नदियों में

कंचन मृग 

सुबहें वो शाम कहाँ ?

धुन्ध की

किताबों में

सूरज का नाम कहाँ ?


दुःख की

छायाएं हैं

पेड़ों के आस-पास,

फूल,गंध

बासी है

शहरों का मन उदास,

सिर थामे

बैठा दिन

ढूंढेगा बाम कहाँ ?


अल्मोड़ा

कौसानी

हाँफती मसूरी है,

प्यार भरा

रिश्ता भी

प्रकृति से जरूरी है,

पंचवटी में

आये फिर

जटायु,राम कहाँ ?


शिलाखण्ड

टूट रहे

अनगिन विस्फोटों से,

हिमगिरि

के मुखमण्डल

भरे हुए चोटों से,

इन बुरांस

फूलों  का दर्द 

पढ़े पाम कहाँ ? 


कवि जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल



7 comments:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    09/02/2021 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर, बहुत प्रभावशाली ।

    ReplyDelete
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
  4. वाह! सुंदर और सटीक ।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सजन यथार्थ बयान करता ।
    अप्रतिम सृजन।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...