बुरांस |
एक गीत-
नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ
नदियों में
कंचन मृग
सुबहें वो शाम कहाँ ?
धुन्ध की
किताबों में
सूरज का नाम कहाँ ?
दुःख की
छायाएं हैं
पेड़ों के आस-पास,
फूल,गंध
बासी है
शहरों का मन उदास,
सिर थामे
बैठा दिन
ढूंढेगा बाम कहाँ ?
अल्मोड़ा
कौसानी
हाँफती मसूरी है,
प्यार भरा
रिश्ता भी
प्रकृति से जरूरी है,
पंचवटी में
आये फिर
जटायु,राम कहाँ ?
टूट रहे
अनगिन विस्फोटों से,
हिमगिरि
के मुखमण्डल
भरे हुए चोटों से,
इन बुरांस
फूलों का दर्द
पढ़े पाम कहाँ ?
कवि जयकृष्ण राय तुषार
सभी चित्र साभार गूगल |
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
09/02/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत सुंदर, बहुत प्रभावशाली ।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
वाह! सुंदर और सटीक ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सजन यथार्थ बयान करता ।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन।
वाह !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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