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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
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गंगा माँ |
एक ग़ज़ल -कहीं पे गंगा, कहीं पर बनास लगती है
कहीं पे गंगा, कहीं पर बनास लगती है
सफ़र में अब तो नदी को भी प्यास लगती है
न वैसे वन, न परिंदे न वैसा पानी रहा
हमारी माँ अब,भगीरथ उदास लगती है
नदी से मिलके नदी का वजूद बाकी रहा
प्रयागराज में धारा समास लगती है
कभी समंदरों की बाँह में सुकूँ था इसे
अब अपनी गाद में बैठी हताश लगती है
जहाँ पे धार धवल है ये खिलखिलाती भी है
वहाँ पे फूल तितलियाँ पलाश लगती है
नदी पहाड़ से उतरी कमल के फूल सी थी
सफ़र के आखिरी क्षण में कपास लगती है
तमाम आस्था, उत्सव के दीप जलते रहें
नदी तो सृष्टि का मोहक सुवास लगती है
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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संगम प्रयागराज |
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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -भींगे वदन के साथ
भींगे वदन के साथ मुसाफ़िर सफ़र में था
उसकी नज़र झुकी थी वो सबकी नज़र में था
बारिश, हवाएं, बिजलियां सब छेड़ते रहे
खुशबू लिए ये फूल सभी की ख़बर में था
ख़त भी लिखा तो मेरा ठिकाना गलत लिखा
वरना मैं डाकिए के मुताबिक शहर में था
दौलत तमाम, बेटे थे शोहरत भी कम न थी
तनहा तमाम उम्र वो बूढ़ा ही घर में था
साया, दातून, घोंसला सब लेके गिर गया
बस्ती बहुत उदास थी कुछ तो शज़र में था
संतूर का वो शिव था उसे अलविदा कहो
हिन्दोस्ताँ का रंग उसी के नज़र में था
चेहरे को सच बता दिया लेकिन तमाम रात
आईना हर दीवार पे दहशत में, डर में था
बुझता हुआ चराग वहीं देखता रहा
दुनिया के साथ मैं भी हवा के असर में था
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल
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स्मृति शेष पंडित शिव कुमार sharma |
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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -आपको लगता है ये मुज़रा बहुत आसान है
आँधियों से अब दरख़्तों को बचाना चाहिए
हमको मीठे फल परिंदो को ठिकाना चाहिए
आपकी दिल्ली में बांग्लादेशी,रोहिंग्या बसे
आप समझें मुल्क को कैसे बचाना चाहिए
बादलों में चाँदनी छिपती रही हर चौथ में
चाँद की साजिश से अब पर्दा उठाना चाहिए
आपके गमले में पौधे बोनसाई हैँ सभी
और घटाएं जलभरी मौसम सुहाना चाहिए
धूप को उसने खबर में धुंध का मौसम लिखा
आँख में अख़बार को काजल लगाना चाहिए
अब सियासत भी स्वयंवर घूमती मछली वही
जीतना है अगर अर्जुन सा निशाना चाहिए
नींद में हूँ चाँद ,परियों की कहानी मत सुना
अब तुम्हें कुछ भूख का किस्सा सुनाना चाहिए
आपको लगता है ये मुज़रा बहुत आसान है
एक दिन घुँघरू में इस महफ़िल में आना चाहिए
कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार
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गीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी जी धर्मपत्नी संग |
एक गीत -वरिष्ठ गीतकवि माहेश्वर तिवरी के गीत
गीत,ग़ज़लें
नज़्म,
भाषा के सरल अनुवाद में।
एक वंशी
बज रही
अब भी मुरादाबाद में।
गीत का
डमरू
बजाते यहीं माहेश्वर,
भाव,भाषा
को सजाते
स्वर्ण के अक्षर,
इन्हें पढ़ना
खुली छत पर
पंचमी के चांद में ।
गीत वन हैँ
ये कनेरों,
हरसिंगारों के
उड़ रहे
हारिल
यहाँ मौसम बहारों के,
आरती की
चाय टेबल पर
मुख़र संवाद में ।
भोर में
मासूम सा
दिनमान उगता है,
यहाँ बस्ती
का सुनहरा
स्वप्न जगता है,
नया पंछी
पंख खोले
उड़ रहा आहलाद में।
पीतलों का
शहर अपने
पर्व,उत्सव जी रहा है,
बुन रहा है
वस्त्र सुंदर
खोंच को भी सी रहा है,
आज की
यह बज़्म है
त्यागी ज़िगर की याद में।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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कुटुंब की देखभाल करने वाली आरती |
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चित्र सभार गूगल |
एक देशगान -फिर सोने की चिड़िया कर दो
जागो हिंदुस्तान
के वीरों
जागो साधू-
संत,फ़क़ीरों
फिर सोने की
चिड़िया कर दो
प्यारे हिंदुस्तान को ।
वन्देमतरम,वन्देमातरम,वन्देमातरम्
पहचानों
दुश्मन की मंशा
साजिश और फरेबों को
वीर शिवाजी
बनकर कुचलो
सारे औरंगजेबों को,
तोड़ न पाये
सारी -दुनिया
भारत के अभिमान को ।
हिमगिर,हिमनद
सागर,नदियाँ
हरे-भरे हैँ खेत ये,
माथ लगा
मेवाड़ की मिट्टी
कितनी पावन रेत ये,
याद करो
ज़ौहर की गाथा
राणा के सम्मान को ।
झलकारी,
झाँसी की रानी
याद करो बुन्देलों को,
भगत सिंह
सुखदेव,राजगुरु
के फाँसी के खेलों को,
उधम सिंह बन
कभी न सहना
डायर के अपमान को ।
उनको माला क्यों
जिनके सम्बन्ध
रहे गद्दारों से,
ऐसी हर
तस्वीर हटा दो
संसद के गलियारों से,
सबको
मंत्र समझना होगा
जन गण मन के गान को ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक गीत - अँगारों से फूल न मांगो
अँगारों से
फूल न माँगो
दरिया से बरसात नहीं ।
सफऱ
धूप में जब हो अपना
शोख चाँदनी रात नहीं ।
नंगे पाँव
कंटीले पथ में
उफ़ मत करना चलते जाना,
शोक गीत
मत लिखना प्यारे
हँसकर सबसे मिलते जाना,
बुझ बुझ कर भी
जलना दीपक
जीवन भर यह मात नहीं ।
वंशी छूटे
नहीं होंठ से
जग दीवाना हो जाएगा,
सूरज तो
कल निकलेगा ही
तम का दानव खो जाएगा
दुनिया आँसू
नहीं पोछती
पढ़ती है जज़्बात नहीं ।
नींद रहे या
रहे जागरण
कभी छोड़ना मत सपना,
मौसम कोई
राग सुनाये
तुम आशा के स्वर लिखना,
मिट्टी की
महिमा से बेहतर
चन्दन की सौगात नहीं ।
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक प्रेमगीत-डाकिए पढ़ने लगे हैँ
(मै दक्षिण भारत देखा नहीं हुँ बस मन की कल्पना है)
सादर
मदुरई,
मीनाक्षी के
खूबसूरत हैं नज़ारे ।
आबनूसी
बंधे जूड़े में
सुगन्धित फूल सारे ।
हाथ में
दर्पण उठाए
नींद जागी सज रही है,
एक घंटी-
पंखुरी सी
उँगलियों में बज रही है,
कर नहीं
सकता सहज
अनुवाद कितने बिम्ब सारे ।
रेत के प्यासे
अधर भी
छू रहीं लहरें सयानी,
हंस के जोड़े
मनोहर,वृद्ध
योगी और ज्ञानी,
दूर तक
जलयान सुंदर
मोर मुख वाले शिकारे।
हर नगर का
शिल्प अपना
सभ्यताओं की कहानी,
प्रेम की हर
लोकगाथा
पढो नूतन या पुरानी,
डाकिये
पढ़ने लगे हैं
प्रेम के अब पत्र सारे ।
पर्ण केले के
हरे हैं नयन
खंजन,माथ चंदन ,
द्वार आये
अतिथियों है
कर रही मुस्कान वंदन,
रात्रि में
मौसम सुहाना
चाँदनी के संग सितारे ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक ग़ज़ल -जिसमें वतनपरस्ती थी बिस्मिल की हो गयी
हुस्न-ओ-शबाब की ग़ज़ल महफ़िल की हो गई
जिसमें वतनपरस्ती थी बिस्मिल की हो गई
उड़ता रहे हवा में या उतरे ज़मीन पर
जो भी हरी थी टहनी वो हारिल की हो गई
फ़रियाद अपनी लेके अदालत से लौट आ
मुंसिफ़ से गुफ़्तगू सुना क़ातिल की हो गई
बेवक्त तेरे घर पे अब आता तो किस तरह
शोहरत शहर में अब तेरी महफ़िल की हो गई
काशी कभी ये तुलसी,कबीरा के नाम थी
अब तो प्रसाद,शुक्ल और धूमिल की हो गई
बैठे थे आज हम भी इसी शाम के लिए
तुमने कही जो बात मेरे दिल की हो गई
सब चैट कर रहे हैँ मगर अजनबी के संग
अब चाँदनी छतों की भी संगदिल की हो गई
कवि/शायर
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
ग़ज़ल को परिभाषित करने की एक छोटी कोशिश
एक ग़ज़ल -सुर्खाब ग़ज़ल
शोख इठलाती हुई परियों का है ख़्वाब ग़ज़ल
झील के पानी में उतरे तो है महताब ग़ज़ल
वन में हिरनी की कुलांचे है ये बुलबुल की अदा
चाँदनी रातों में हो जाती है सुर्खाब ग़ज़ल
उसकी आँखों का नशा ,जुल्फ की ख़ुशबू,टीका
रंग और मेहंदी रचे हाथों का आदाब ग़ज़ल
ये तवायफ की,अदीबों की,है उस्तादों की
हिंदी,उर्दू के गुलिस्ताँ में है शादाब ग़ज़ल
कूचा-ए-जानाँ,भी मज़दूर भी,साक़ी ही नहीं
एक शायर की ये दौलत यही असबाब ग़ज़ल
खुल के सावन में मिले और बहारों में खिले
ग़म समंदर का है दरियाओं का सैलाब ग़ज़ल
इसमें मौसीक़ी भी दरबारों की महफ़िल भी यही
अपने महबूब के दीदार को बेताब ग़ज़ल
मेरे सीने में भी कुछ आग,मोहब्बत है तेरी
मेरी शोहरत भी तुझे करती है आदाब ग़ज़ल
कवि/शायर
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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माननीय योगी जी माँ जी से आशीर्वाद लेते हुए |
एक गीत -माँ तुम गंगाजल होती हो
मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो
मां तुम गंगा जल होती हो!
मां तुम गंगा जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आंसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों सा
मन का सूना संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चांदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती सी आंखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती
जब-जब ये आंखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो खुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ायें कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
ऐसी महफ़िल में खुदा उनसे मुलाक़ात न हो
सिर्फ़ नज़रें ही मिलें और कोई बात न हो
हाथ में फिर से कोई फूल लिए लौट गया
और ऐसा भी नहीं था की उसे याद न हो
ज़िंदगी पहले मोहब्बत की कहानी लिखना
वक्त के साथ ये मंज़र ये ख़यालात न हो
इस तरह पेड़ हरे कटते रहे तो शायद
अबकी सावन के महीने में ये बरसात न हो
मुझसे वो पूछता है मेरी कहानी अक्सर
और खुद चाहता है उससे सवालत न हो
फिर नहीं मिलने के वादे को निभाते हैँ चलो
फैसला करते समय फ़िर वही जज्बात न हो
बिक रहे फूल,हवा,पानी ये शायर ये कलम
चांद बाज़ार में बिक जाए ये हालात न हो
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक ग़ज़ल -झीलों में सुर्खाब
गालों पर गेसू बिखरे हैँ आँखों में कुछ ख़्वाब
खिड़की में हैँ चांद चांदनी दरिया में सुर्खाब
देख रहे थे हम भी जादू मंतर महफ़िल में
उसकी मुट्ठी में सिक्का था कैसे हुआ गुलाब
उससे मेरा रिश्ता -नाता फिर भी दूरी है
नज़रें नीचे करके वो भी करती है आदाब
उसको अब भी खत लिखता हूँ लेकिन मुश्किल ये
खत भी लौटा नहीं नहीं है खत का कोई जवाब
उसकी आँखे झील सी उस पर दरिया में पानी
फूलों वाली कश्ती उसकी लाती है सैलाब
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक गज़ल- तमाम यादों की ख़ुशबू
बिछड़ गया है वो लेकिन इसी ज़हान में है
तमाम यादों की ख़ुशबू अभी मकान में है
बहुत करीब से हँसकर किसी ने बात किया
जरा सी बात मोहब्बत की अब भी कान में है
तमाम चाँद नदी की लहर में पाँव धरे
कोई है काँजीवरम में कोई शिफ़ान में है
जो बात सादगी अपनी सलोनी मिट्टी में
नहीं सुकून वो पेरिस नहीं मिलान में है
अभी तो पंख खुले हैँ गिरेगा,सम्हलेगा
अभी जमीं पे परिंदा नई उड़ान में है
कोई कबीर कहीं हो तो उससे बात करें
यहाँ की सुबह तो कीर्तन में या अज़ान में है
चलो सुनाओ किसी की ग़ज़ल अदा से मगर
तमाम रंग की ख़ुशबू तुम्हारे पान में है
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
राष्ट्र को समर्पित एक ग़ज़ल -
हर लाइलाज मर्ज़ का अब तो निदान हो
सबके लिए समानता का संविधान हो
हिन्दु,मुसलमाँ, सिक्ख,ईसाई न हो कोई
पहले वो हिंदुस्तानी हो ऐसा विधान हो
सत्ता के लोभ में जो यहाँ मुल्क बेचते
उनके लिए फिर काला पानी अंडमान हो
इस देश को बचाइये मजहब की आग से
भारत की जिसमें जय हो वो पूजा अज़ान हो
उसको सदन में भेजिए हरगिज न आप भी
जिसकी ज़ुबाँ पे देश विरोधी बयान हो
जलसे,जुलुस,दंगे न शाहीन बाग़ हो
कानून की सड़क पे सभी का चालान हो
कुछ मानसिक विक्षिप्त जो सेना को कोसते
बुलडोज़रों की ज़द में अब उनका मकान हो
अब राम को अयोध्या न वनवास दे कभी
सरयू किनारे शंख बजे दीपदान वो
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक गज़ल-
हरे पेड़ों में,उड़ते वक्त ये चिड़िया जो गाती है
सफऱ के दरमियां हमको उदासी से बचाती है
तितलियाँ देखकर ये भूख की चिंता नहीं करते
परों के रंग से कैसे ये बच्चों को लुभाती है
न सरिया,रेत, शीशा और न कोई संगमरमर है
बस अपनी चोंच के तिनकों से बुलबुल घर बनाती है
वो माझी है मुसाफिर की उँगलियाँ थाम लेता है
किनारे पर उतरने में भी कश्ती डगमगाती है
उसे भी पर्व,रिश्तों का हमेशा मान रखना है
गरीबी गाय के गोबर से अपना घर सजाती है
कई बच्चे हैँ जो मेले में कोई ज़िद नहीं करते
कभी मुज़रिम कभी ये मुफ़लिसी हामिद बनाती है
लड़कपन में कभी माँ की नसीहत कौन सुनता है
वो इक तस्वीर दीवारों पे मुश्किल में रुलाती है
जयकृष्ण राय चित्र
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चित्र सभार गूगल |
चित्र सभार गूगल
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चित्र साभार गूगल |
एक गीत-पहले वाली काशी उसको और मुझे है याद
पहले वाली
काशी मुझको
और उसे है याद ।
अब वह
काशी नहीं
पढ़ रहा हूँ उसका अनुवाद।
बिना कचौड़ी गली
यहाँ का
मौसम फीका है,
वही बनारस
जहाँ घाट पर
चन्दन टीका है,
कोतवाल
भैरव,शिव जी का
दर्शन है अहलाद ।
इसमें कन्नड़
गुजराती,
मलयालम, उड़िया है,
यह संतों
का तीर्थ-
तीर्थ जादू की पुड़िया है,
वैष्णव
और अघोरी
का माँ गंगा से संवाद ।
नुक्कड़- नुक्कड़
इडली -सांभर
रसगुल्ला,छोला,
नृत्य -गीत
का परीलोक
है बंगाली टोला,
ठुमरी का
आलाप सिखाते
विदुषी को उस्ताद ।
करपात्री -
तैलंग,
विशुद्धानन्द नहीं है आज,
नहीं संत रविदास
न कीनाराम
और कविराज,
घाट -घाट पर
कैसे गूंजे
सुंदर अनहद नाद ।
भाषा बहुत
अनूठी,मौजी
काशी वाली है,
मुंह में
मघई पान दबाए
मीठी गाली है,
का हो गुरू
नमस्ते पहिले
हँसी -ठहाका बाद ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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स्वामी रामानंदाचार्य जी |
हर हर महादेव
इस वर्ष ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होना है इसलिए लगातार सृजन जारी है।आपको कमेंट के लिए परेशान करना मेरा उद्देश्य नहीं है। आप् सभी को कुछ अच्छा लगे तभी टिप्पणी करें।आपका दिन शुभ हो।
तुलसी की,रामानन्द की,काशी कबीर की
चन्दन,तिलक की,भस्म की,मिट्टी अबीर की
संतों के संग गृहस्थ की पूजा औ आरती
राजा के साथ रंक की काशी फ़क़ीर की
इसका महात्म्य वेद में,दर्शन,पुराण में
इसके हवन में गन्ध है खिलते पुंडीर की
शिव के त्रिशूल पर बसी काशी,अजर अमर
रैदास,कीनाराम की गोरख,गंभीर की
राजा विभूति सिंह की प्रजा बोलती थी जय
अस्सी,गोदौलिया की या फिर लहुरावीर की
शिक्षा की पुण्य भूमि यहीं मालवीय की है
संगीत, नृत्य,पान की,थाली ये खीर की
भैरव का घर है,बुद्ध भी,हनुमान राम के
ख़ुशबू है सारनाथ में बहते समीर या
संध्या को मंदिरों में नागाड़े भी शंख भी
भूली न आरती कभी गंगा के तीर या
इसमें प्रसाद,प्रेमचंद,भारतेन्दु हैँ
बिस्मिल्ला खां की शहनाई, ग़ज़लें नज़ीर की
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
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काशी नरेश स्वर्गीय विभूति नारायण सिंह |
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श्रीमद भागवत |
ग़ज़लें
एक
हर दरिया का आंसू दिन भर पीता है
खारा जीवन सिर्फ़ समन्दर जीता है
ईश्वर का दर्शन मुश्किल पर सच ये भी
ईश्वर की ही वाणी पावन गीता है
प्यार -मोहब्बत जीवन के संघर्षों की
शरत चन्द्र की सुन्दर कृति परिणीता है
फूल,तितलियाँ,घास,परिंदे गायब हैँ
महानगर का जीवन कितना रीता है
उसकी गर्दन पर नेता की कैंची है
उदघाटन के लिए सुनहरा फीता है
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चित्र साभार गूगल |
दो
धूप के चश्में से मौसम की कहानी लिखना
कितना मुश्किल है कभी रेत को पानी लिखना
लोकशाही है,न राजा , नहीं दरबार कोई
फिर भी बच्चों की कथाओं में तो रानी लिखना
जब भी तुम आये तो बरसात का मौसम था यहाँ
ये मई -जून है मेड़ों को न धानी लिखना
इसमें गंगा है,हिमालय है कई मौसम हैँ
शायरों मुल्क की तस्वीर सुहानी लिखना
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
चित्र साभार गूगल एक ग़ज़ल -हिन्दी ग़ज़ल को भी तो कोई मीर चाहिए अपनी ज़मीन पर नई तामीर चाहिए शेर-ओ- सुखन को इक नई तस्वीर चाहिए महफ़िल में अब भी सु...