चित्र -साभार गू |
इस बदले
मौसम से जादा
फूलों की आँखों में जल है |
हदें पार
कर गयी सियासत
राजनीति में छल ही छल है |
अहि जा लिपटे
वन मयूर से
घोरी से मिल गए अघोरी ,
नैतिकता
ईमान खूटियों पर
संध्याएँ गाती लोरी ,
गंगा में
टेनरियों का जल
पूजाघर में गंगा जल है |
जंगल के
सीने पर आरी
क्या होगा इस नंदन वन का ,
दूषित समिधा
हवनकुंड में
उँगलियों में नकली मनका .
ग्रह गोचर शुभ
विजय भाव है
फिर माथे पर कैसे बल है |