मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ
हँसकर के सारे ग़म को भुलाती हैं लड़कियाँ
खतरा सभी को रहता है यूँ अपने आस-पास
जब भी कटी उँगलियाँ, तो थीं अपनी खुरपियाँ
मिलती है गालियाँ उन्हें ईनाम कम मिले
सीने में ग़म छिपाये निकलती हैं वर्दियाँ
जो बुझ गए चराग़ उन्हें पूछता है कौन
जलते हुए दियों को बुझाती हैं आँधियाँ
मुश्किल बहुत है सच में पहाड़ों की जिन्दगी
फिर भी सभी के मन को लुभाती हैं वादियाँ
अच्छे भविष्य के लिए माँ डाँटती भी है
बच्चों को सिर्फ़ किस्से सुनाती हैं दादियाँ
अच्छे भविष्य के लिए माँ पीटती भी है
ReplyDeleteबच्चों को सिर्फ़ किस्से सुनाती हैं दादियाँ
बहुत ही उम्दा शेरों से सजी रचना तुषार जी👌👌👌।
हार्दिक आभार आदरणीय रेणु जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा" (चर्चा अंक-3952) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका तृप्ति जी
Deleteवाह
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार सर
Deleteमौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ
ReplyDeleteहँसकर के सारे ग़म को भुलाती हैं लड़कियाँ
बहुत खूब !!!
शानदार ग़ज़ल 🌹🙏🌹
आदरणीया आपका बहुत बहुत आभार
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteमिलती है गालियाँ उन्हें ईनाम कम मिले
ReplyDeleteसीने में ग़म छिपाये निकलती हैं वर्दियाँ
वाह...
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteहर शेर बहुत कमाल का है ... जुदा बात कहता हुआ ...
हार्दिक आभार
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