Monday 30 December 2013

एक गीत -तारीख़ें बदलेंगी सन् भी बदलेगा

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -
तारीख़ें बदलेंगी सन् भी बदलेगा 
तारीख़ें 
बदलेंगी 
सन्  भी बदलेगा |
सूरज 
जैसा है 
वैसा ही निकलेगा |

नये रंग 
चित्रों में 
भरने वाले होंगे ,
नई कहानी 
कविता 
नये रिसाले होंगे ,
बदलेगा 
यह मौसम 
कुछ तो बदलेगा |

वही 
प्रथाएं 
वही पुरानी रस्में होंगी ,
प्यार 
मोहब्बत -
सच्ची ,झूठी क़समें  होंगी ,
जो इसमें 
उलझेगा  
वह तो फिसलेगा |

राजतिलक 
सिंहासन की 
तैयारी होगी ,
जोड़- तोड़ 
भाषणबाजी 
मक्कारी होगी ,
जो जीतेगा 
आसमान 
तक उछलेगा |

धनकुबेर 
सब पेरिस 
गोवा जायेंगे ,
दीन -हीन 
बस 
रघुपति राघव गायेंगे ,
बच्चा 
गिर गिर कर 
जमीन पर सम्हलेगा  |

Sunday 22 December 2013

एक गीत -खिड़कियों के पार का मौसम

चित्र -गूगल से साभार 
खिड़कियों के पार का मौसम 


खिड़कियों के 
पार का 
मौसम बदलता है |
मगर 
मन के शून्य में 
कुछ और चलता है |

यह दिसम्बर 
रहे या फिर 
जनवरी आये ,
भीड़ को 
गोवा या केरल ,
मदुरई भाये ,
जहाँ 
दरिया है वहीं 
टापू निकलता है |

फूल से 
जादा उँगलियों की 
महक भाती ,
धुंध में 
आकाश में 
चिड़िया नहीं गाती ,
घने बादल 
चीरकर 
सूरज निकलता है |

ये पेड़ 
आंधी या 
बवंडर से नहीं डरते ,
विषम 
मौसम में 
नहीं ये ख़ुदकुशी करते ,
मौन से 
संवाद 
कर लेना सफलता है |
चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...