चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
पर ज़माने को यकीं है वो मेरे प्यार में है
चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल
फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है
उससे मैं किस तरह अपने गम -ए -हालात कहूँ
आज वो खुश है बहुत दावत -ए -इफ़्तार में है
डूबना है तो चलो गहरे समन्दर में चलें
देख लें हौसला कितना मेरी पतवार में है
ऐ हरे पेड़ जरा सीख ले झुकने का हुनर
आज तूफान बहुत तेज है ,रफ़्तार में है
मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है
बाढ़ में बर्फ़ सा गल जायेगा ये तेरा मंका