Monday 25 November 2013

एक गीत -बहुत दिनों से इस मौसम को बदल रहे हैं लोग

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -बहुत दिनों से इस मौसम को 
बहुत दिनों से 
इस मौसम को 
बदल रहे हैं लोग |
अलग -अलग 
खेमों में बंटकर 
निकल रहे हैं लोग |

हम दुनिया को 
बदल रहे पर 
खुद को नहीं बदलते ,
अंधे की 
लाठी लेकर के 
चौरस्तों पर चलते ,
बिना आग के 
अदहन जैसे 
उबल रहे हैं लोग |

धूप ,कुहासा ,
ओले ,पत्थर 
सब जैसे के तैसे ,
दुनिया पहुंची  
अन्तरिक्ष में 
हम आदिम युग जैसे ,
नासमझी में 
जुगनू लेकर 
उछल रहे हैं लोग |

गाँव सभा की 
दूध ,मलाई 
परधानों के हिस्से ,
भोले भूखे 
बच्चे सोते 
सुन परियों के किस्से ,
ईर्ष्याओं की 
नम काई पर 
फिसल रहे हैं लोग |

हिंसा ,दंगे 
राहजनी में 
उलझी है आबादी ,
कितनी कसमें 
कितने वादे 
सुधर न पायी खादी ,
नागफ़नी वाली 
सड़कों पर 
टहल रहे हैं लोग |

Wednesday 13 November 2013

एक गीत -धरती की उलझन सुलझाओ -तब साथी मंगल पर जाओ

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -तब साथी मंगल पर जाओ 
धरती की 
उलझन सुलझाओ |
तब साथी 
मंगल पर जाओ |

दमघोंटू 
शहरों से ऊबे ,
गाँव अँधेरे में 
सब डूबे ,
सारंगी लेकर 
जोगी सा 
रोशनियों के 
गीत सुनाओ |

जाति -धरम 
रिश्तों के झगड़े ,
पत्थर रोज 
बिवाई रगड़े ,
बाजों के 
नाखून काटकर 
चिड़ियों को 
आकाश दिखाओ |

नीली ,लाल 
बत्तियां छोड़ो ,
सिंहासन से 
जन को जोड़ो ,
गागर में 
सागर भरने में 
मत अपना 
ईमान गिराओ |

मंगल पर 
मत करो अमंगल ,
वहां नहीं 
यमुना ,गंगाजल ,
विश्व विजय 
करने से पहले 
खुद को 
तुम इन्सान बनाओ |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...