Tuesday 28 January 2020

एक गीत-वासंती पाठ पढ़े मौसम


एक गीत-वासंती पाठ पढ़े मौसम

नयनों के
खारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वासंती
पाठ पढ़े मौसम
परदेसी राह गया भूल ।

भ्रमरों के
घेरे में धूप
गाँठ बँधी हल्दी से दिन,
खिड़की में
झाँकते पलाश
फूलों की देह चुभे पिन,
माँझी के
साथ खुली नाव
धाराएँ,मौसम प्रतिकूल ।

सपनों में
खोल रहा कौन
चिट्ठी में टँके हुए पाटल,
प्रेममग्न
सुआ हरे पाँखी
छोड़ गए शाखों पे फल,
पियराये
सरसों के खेत
मेड़ों पे
टूटते उसूल ।
(सभी चित्र साभार गूगल)

Saturday 25 January 2020

एक ग़ज़ल -तूने जिस पर होंठ रखे थे / कवि /शायर पवन कुमार

शायर /कवि -श्री पवन कुमार  [I.A.S.]
परिचय -
हिंदी में कहें या कहें उर्दू में ग़ज़ल हो ---[जयकृष्ण राय तुषार ] प्रशासन में रहते हुए कुछ लोग कवि लेखक बनने का श्रमसाध्य प्रयास करते हैं ,वहीँ कुछ नाम ऐसे हैं जो अपनी  कलम ,अपनी उम्दा लेखनी से साहित्य को बड़े मुकाम तक पहुंचा देते हैं | |पवन कुमार जी का ओहदा अलग है और शायरी अलग | बेहतरीन सोच ,कहन ,अंदाजे बयाँ ,कहन की नवीनता सबकुछ लाजवाब है पवन कुमार की शायरी में | आदरणीय पवन कुमार की शायरी तब तक सुनी और सराही जाती रहेगी जब तक साहित्य का एक भी पाठक या श्रोता जीवित रहेगा |एक अनूठी ग़ज़ल आपके साथ आज मैं साझा कर रहा हूँ |सादर 

एक ग़ज़ल -कवि / शायर श्री पवन कुमार 

इक इक चुस्की चाय की फिर तो होश उड़ाने वाली हो
तूने जिस पर होंठ रखे थे काश वही ये प्याली हो

आधे सोये,आधे जागे पास में तेरे बैठे हैं
जैसे हमने शाम से पहले नींद की गोली खा ली हो

ग़ैर ज़रुरी बातें करना भी अब बहुत ज़रूरी है
मुझ को फ़ौरन फ़ोन लगाना जैसे ही तुम खाली हो

ढूंढ रहा हूँ शह्र में ऐसा होटल जिसके मेन्यू में
बेसन की चुपड़ी रोटी हो दाल भी छिलके वाली हो

तुम क्या समझो उस माहौल में हम ने उम्र गुज़ारी है
जिस माहौल में इक पल जीना जैसे गन्दी गाली हो

यादों के कुछ जुगनू रख लो शायद वक़्त पे काम आएं
उजले उजले चाँद के पीछे देखो रात न काली हो
कवि /शायर पवन कुमार 
चित्र -साभार गूगल 

Tuesday 21 January 2020

एक आस्था का गीत- यह प्रयाग है

परमपूज्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी
महामंडलेश्वर स्वामी रामानन्द पीठ

एक आस्था का गीत-
 कुम्भ गीत-यह प्रयाग है

यह प्रयाग है
यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है।
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है ।

संगम की यह रेत
साधुओं ,सिद्ध,फ़कीरों की,
यह प्रयोग की भूमि
नहीं यह महज लकीरों की,
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है ।

महाकुम्भ का योग यहाँ
वर्षों पर बनता है,
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियन्ता है,
यमुना जल में
सरस्वती वाणी में मिलती है ।

रचे-बसे हनुमान
यहाँ जन-जन के प्राणों में,
नागवासुकी का भी
वर्णन मिले पुराणों में,
यहाँ शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है ।

यहाँ कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है,
अक्षय वट में
धर्म-मोक्ष का दीपक जलता है,
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।

यहाँ अलोपी,झूँसी ,भैरव,
ललित माता हैं,
माँ कल्याणी भी
भक्तों की भाग्य-विधाता हैं,
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।

स्वतन्त्रता, साहित्य
यहीं से अलख जगाते हैं,
लौकिक प्राणी यहाँ
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहाँ
ब्रह्म की छाया मिलती है ।

(इस गीत को अकाशवाणी प्रयाग राज द्वारा संगीत बद्ध किया गया है,यह उत्तर प्रदेश के प्रयाग अंक,हिंदुस्तानी ेेकेडमी के कुम्भ अंक और मेरे दूसरे गीत संग्रह में प्रकाशित है। इसे मैंने 2001के प्रयाग महाकुम्भ में शब्द दिया था।



Saturday 18 January 2020

एक गीत-बँधी हुई पोथी सा मैं

चित्र-साभार गूगल

एक गीत-बँधी हुई पोथी सा मैं 

बँधी हुई
पोथी सा मैं,
तुमने खोल दिया ।
नारंगी
होठों से
वेद मन्त्र बोल दिया ।

मौसम
प्रतिकूल और
नाव,नदी, धारा है,
मद्धम
अँगीठी की
आँच में ओसारा है,
बन्दीगृह,
रातों को
किसने पेरोल दिया ।

मौसम का
हर गुनाह
फूलों ने माफ़ किया,
धूल जमी
वंशी को
फिर किसने साफ किया,
गहरे
सन्नाटे में
पंचम सुर घोल दिया 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र-साभार गूगल

Wednesday 8 January 2020

एक देशगीत-दुनिया भर में सबसे अच्छा अपना हिंदुस्तान


एक देशगान-
दुनियाभर में सबसे अच्छा अपना हिंदुस्तान

नेताओं,अख़बार नवीसों,
सुधरो फिल्मिस्तान ।
दुनिया भर में सबसे अच्छा
अपना हिन्दुस्तान ।

मातृभूमि को गाली देते
मन में भरी हताशा,
सत्ता के ख़ातिर आये दिन
होता एक तमाशा,
आज़ादी के माने समझो
जाकर पाकिस्तान ।

शिक्षालय कुछ भ्रष्ट हो गए
कैसे हैं आचार्य,
दुर्योधन के साथ खड़े हैं
अब भी द्रोणाचार्य,
सेनाओं की निन्दा करते
भेदी को सम्मान ।

एक आँख से अनुच्छेद
ये संविधान का पढ़ते,
षडयन्त्रों की नई कहानी
देश विरोधी गढ़ते,
भारत माँ अब खोल
तीसरा नेत्र इन्हें पहचान।

बन्ध्या रहना ,जन्म न देना
कोख़ से अब गद्दारों को,
भारत माता खत्म करो
अब देश विरोधी नारों को,
इसे हिमालय कभी न
बनने देना नखलिस्तान।

जन्म नहीं लेते क्यों फिर से
वीर शिवाजी ,राना?
छत्रसाल,वन्दा वैरागी,
लक्ष्मीबाई, नाना,
गुरुगोविंद,कब पैदा होंगे
पृथ्वीराज महान ?

Saturday 4 January 2020

डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त कार्यकारी अध्यक्ष उ ० प्र ० हिंदी संस्थान -व्यक्तित्व एवं कृतित्व

डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त कार्यकारी अध्यक्ष उ०प्र०हिन्दी संस्थान ,लखनऊ 

सबसे दायें माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ
सबसे बाएं श्री शिशिर सिंह निदेशक हिंदी संस्थान
 सबसे मध्य में डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी 

साहित्य मनीषी डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त 

बिहार से अलग हुआ राज्य झारखण्ड केवल बेशकीमती खनिजों की खान नहीं है अपितु यह देश की मेधा और साहित्यिक मनीषियों और बुद्धिजीवियों की भी खान है |उसी पवित्र मिटटी में जन्म लेकर उत्तर प्रदेश को अपना कर्मक्षेत्र बनाया आदरणीय डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी ने |कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन में विश्वास रखने वाले साहित्य मनीषी डॉ ०  गुप्तजी को माननीय मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश ने 15 सितम्बर 2017 को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान  के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया | सन्त साहित्य के मर्मग्य ,स्वभाव से मृदुभाषी डॉ ० सदानन्द जी ने हिंदी संस्थान को स्तरीय कार्यकमों से जोड़ा ही नहीं अपितु साहित्य भूषण पुरष्कारों की संख्या 10 से 20 कर दिया | पुरस्कार में शामिल विधाओं की कुल संख्या 34 से 38 कर दी गयी | संस्थान में तमाम उच्च स्तरीय साहित्यिक सेमिनार आयोजित हुए और गम्भीर प्रकाशन हुए |वैदिक वांग्मय का परिशीलन ,भारतीय संस्कृति की अविराम यात्रा और भोजपुरी के संस्कार गीत | स्मृति संरक्षण योजना के अंतर्गत नवगीत कवि देवेन्द्र कुमार बंगाली पर पुस्तक प्रकशित |

माननीय प्रधानमन्त्री भारत सरकार श्री नरेंद्र मोदी जी
 के साथ  डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी  
पुरस्कार /सम्मान -
पुरस्कारों और सम्मानों की राजनीति से दूर इस साहित्य मनीषी को मात्र दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी का सम्मान /पुरस्कार  मिला है |

साहित्यिक विदेश यात्रा - वर्ष 2018में पोर्ट लुई मारीशस में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में शामिल हुए 



डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी का जन्म गिरिडीह [ झारखण्ड ] के मकडीहा ग्राम में 19 फरवरी 1952 को हुआ था | शिक्षा एम० ए० हिंदी और पी ० एच ० डी ० | गोरखपुर विश्व विद्यालय में अध्यापन करते हुए 30 जून  2013 को डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त हुए | विभाग में रहते हुए लगभग २८ शोधार्थियों को पि० एच ० डी ० की उपाधि प्रदान किये |लगभग 60-65 शोध पत्र प्रकाशित हुए | डॉ ० सदानन्द प्रसाद जी की हिंदी सेवा अतुलनीय है |राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय विचारधारा इनके आचरण और रक्त में प्रवाहित होती है | मैं ईश्वर से डॉ ० सदानन्द प्रसाद जी के  उत्तम स्वास्थ्य के साथ यश -कीर्ति की मंगलकामनाएं करता हूँ | हिंदी संस्थान में और राष्ट्र भाषा हिंदी के लिए कुछ और बड़ा स्मरणीय कार्य आपके द्वारा सम्पन्न हो |

प्रमुख कृतियाँ / सम्पादन 

हिन्दी साहित्य :विविध परिदृश्य [2001]
राष्ट्रीय अस्मिता और हिंदी साहित्य [2008]
संस्कृति का कल्पतरु :कल्याण [सम्पादन 2004 ]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल [सम्पादन 2005 ]
निर्मल वर्मा का रचना संसार [सम्पादन 2007 ]
सुमित्रानंदन पन्त [सम्पादन 2007 ]
अज्ञेय :सृजन के आयाम [सम्पादन 2012 ]
राष्ट्रीयता के अनन्य साधक :महंत अवैद्यनाथ [सम्पादन 2012 ]
संस्कृति -सम्वाद [सम्पादन 2015 ]
राष्ट्रसंत महंत अवैद्यनाथ [सम्पादन 2016 ]
समन्वय [अनियतकालीन ]पत्रिका का सम्पादन 2000 -2012 ]
वैचारिक स्वराज और हिंदी साहित्य [2017 ]
हिंदी साहित्य :विविध आयाम 

सम्पर्क -ईमेल 
guptasadanand52@gmail.com


डॉ ० सदानन्द प्रसाद गुप्त जी की पारिवारिक तस्वीर 



डॉ ० सदानन्दप्रसाद गुप्त जी की पारिवारिक तस्वीर 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...