चित्र /पेंटिग्स गूगल से साभार |
एक गीत -माँ भी तो गंगा सी बहती है
रिश्तों का
दंश
रोज सहती है |
माँ भी
तो गंगा -
सी बहती है |
मौसम
से भी
पहले बदली है,
निर्गुण है
सोहर है
कजली है ,
दुविधा में
कभी
नहीं रहती है |
भोलापन
उसकी
कमजोरी है ,
लोककथा
बच्चों की
लोरी है ,
गीता है
माँ !
सच ही कहती है |
सब अपने
ही
उसको छलते हैं ,
थके हुए
पांव
मगर चलते हैं ,
पांव
मगर चलते हैं ,
अपना दुःख
कब
किससे कहती है |