एक गीत -बापू ! रहे हिमालय
बापू रहे
हिमालय ,उनका
दर्शन गोमुख धारा है ।
यह जलती
मशाल जैसा है
जहाँ-जहाँ अँधियारा है ।
रंगभेद के
प्रबल विरोधी
गिरमिटिया कहलाते थे,
चरखा-खादी
लिए साथ में
रघुपति राघव गाते थे,
सत्य अहिंसा
मानवता का नारा है ।
छुआछूत
अभिशाप बताते
रहे स्वदेशी को अपनाते,
हिन्दू-मुस्लिम
सिक्ख-ईसाई
सादर सबको गले लगाते,
आज़ादी के
अनगिन तारों में
गाँधी ध्रुवतारा है ।
लड़े गुलामी
और दासता की
अभेद्य प्राचीरों से,
एक लुकाठी
लड़ी हजारों
बन्दूकों-शमशीरों से,
चम्पारण
दांडी का नायक
विजयी था,कब हारा है?
कवि -जयकृष्ण राय तुषार